पेगासस जासूसी केसः समिति ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट, केंद्र पर सहयोग न करने का आरोप, जानिए पूरा मामला
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट की बनाई हुई कमेटी ने बताया कि उन्हें जासूसी के शक में 29 फोन दिए गए थे। इनमें से 5 फोन में मालवेयर मिला, लेकिन वो पेगासस था, ये कन्फर्म नहीं कहा जा सकता। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि केस में केंद्र सरकार की ओर से सहयोग नहीं किया जा रहा है। चीफ जस्टिस ने कहा कि रिपोर्ट बड़ी है और इसे पढ़ने में वक्त लगेगा, इसलिए अगली सुनवाई सितंबर के आखिरी हफ्ते में होगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तीन हिस्सों में है रिपोर्ट
सीजेआई ने कहा कि रिपोर्ट तीन भाग में है। समिति ने सिफारिश की है कि कानून में बदलाव कर सख्त बनाएं। साइबर सिक्योरिटी को मजबूत करें। सीजेआई ने रिपोर्ट पढ़कर छह पहलू बताए। उन्होंने कहा कि कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाएगी। 29 फोन थे, जिसमें मालवेयर पाया गया। इसका मतलब नहीं कि सभी में पेगासस था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
रिपोर्ट की जवाबदेही बनती है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जस्टिस रवींद्रन की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह के किसी भी सॉफ्टवेयर का दुरुपयोग और ऐसे दुरुपयोग से नागरिकों की रक्षा कैसे की जा सकती है। यह एक लंबी रिपोर्ट है, जिसकी जवाबदेही भी बनती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा रिपोर्ट में सिफारिश की गई है गोपनीयता के कानून को बेहतर बनाने और गोपनीयता के अधिकार में सुधार, राष्ट्र की साइबर सुरक्षा बढ़ाने, नागरिकों की निजता के अधिकार की सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने तथा गैर-कानूनी निगरानी से संबंधित शिकायत उठाने की व्यवस्था पर कानून अधिनियमित किया जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि मौजूदा कानून में संशोधन किया जाना चाहिए। नागरिकों को गैरकानूनी सर्विलांस के खिलाफ अपनी समस्या उठाने के लिए ग्रीवांस मैकेनिज्म होना चाहिए। पेगासस जासूसी मामले की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर गठित पैनल ने अपनी रिपोर्ट तीन हिस्सों में शीर्ष अदालत को सौंपी है. इसके एक हिस्से में नागरिकों की निजता के अधिकार की रक्षा के लिए कानून बनाने का सुझाव दिया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारत ने 2017 में इजराइल से खरीदा था स्पाईवेयर
भारत सरकार ने 2017 में इजराइली कंपनी NSO ग्रुप से जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस खरीदा था। इस सॉफ्टवेयर को पांच साल पहले की गई 2 अरब डॉलर (करीब 15 हजार करोड़ रुपए) की डिफेंस डील में खरीदा गया था। इसी डिफेंस डील में भारत ने एक मिसाइल सिस्टम और कुछ हथियार भी खरीदे थे। इस बात का खुलासा अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में किया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर को बनाई गई थी कमेटी
जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर 2021 को एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया था। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आर वी रवींद्रन इसके अध्यक्ष बनाए गए थे। कमेटी गठित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर किसी की प्राइवेसी की रक्षा होनी चाहिए। कमेटी में अध्यक्ष जस्टिस रवींद्रन के साथ पूर्व IPS अफसर आलोक जोशी और डॉक्टर संदीप ओबेरॉय शामिल हैं। डॉक्टर ओबेरॉय इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ स्टैंडर्डाइजेशन से जुड़े हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कई पत्रकारों और एक्टिविस्ट्स ने दायर की थी अर्जियां
इस मामले में कई पत्रकारों और एक्टिविस्ट्स ने अर्जियां दायर की थीं। इनकी मांग थी कि सुप्रीम कोर्ट के जजों की निगरानी में जांच करवाई जाए। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा है था कि हर किसी की प्राइवेसी की रक्षा होनी चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
केंद्र सरकार ने दायर किया था हलफनामा
केंद्र सरकार ने इस मामले पर कोर्ट में हलफनामा दायर किया और कहा कि वह कथित पेगासस जासूसी की जांच के लिए एक्सपर्ट की कमेटी बनाएगी। वहीं, कोर्ट ने सरकार को ट्रिब्यूनल में नियुक्ति के लिए 10 दिन का समय दिया। केंद्र ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेगासस को लेकर सरकार पर लगाए आरोपों को निराधार बताया था। याचिका में कहा गया था कि पत्रकारों, नेताओं पर स्टाफ की स्पाइवेयर से जासूसी का दावा अनुमानों पर आधारित है। इलेक्ट्रॉनिक्स और इंफॉर्मेशन मिनिस्ट्री के एडिशनल सेक्रेटरी ने दो पन्नों का एफिडेविट दायर किया था। इसमें कहा था कि इस मामले में फैलाई गई गलत धारणाओं को दूर करने के लिए जांच कराने का फैसला हुआ। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारत में ये थे संभावित टारगेट
बता दें, द वायर की रिपोर्ट में बताया गया था कि कांग्रस नेता राहुल गांधी, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, दो केंद्रीय मंत्री, टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी और 40 भारतीय पत्रकार जासूसी के संभावित टारगेट थे। यह लिस्ट भारत की एक अज्ञात एजेंसी की है, जो कि इयरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप का स्पाइवेयर Pegasus यूज करती है। एनएसओ का कहना है कि यह अपना Pegasus स्पाइवेयर केवल ‘जांची-परखी सरकारों’ को ही आतंक से लड़ने के मकसद से देती है. किसी भी प्राइवेट कंपनी को यह स्पाइवेयर नहीं दिया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारतीय सरकार ने किया इनकार
हालांकि, भारतीय सरकार ने इसमें अपनी भूमिका से साफ इनकार किया था। वहीं, कांग्रेस समेट विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को लेकर मोदी सरकार को घेर रही हैं। कांग्रेस ने सोमवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से इस्तीफे की मांग करते हुए पीएम मोदी की इसमें भूमिका की जांच की मांग भी की थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये हुआ था खुलासा
भारतीय मंत्रियों, विपक्षी नेताओं और पत्रकारों के फोन नंबर उस लीक डाटाबेस में पाए गए हैं, जिन्हें इजरायली स्पाईवेयर पेगासस Pegasus के इस्तेमाल से हैक किया गया है। द वायर सहित 16 मीडिया संस्थानों की पड़ताल में यह जानकारी सामने आई है। रविवार शाम को प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया था कि लीगल कम्यूनिटी मेंबर्स, बिजनेसमैन, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, कार्यकर्ताओं और अन्यों के नंबर इस लिस्ट में शामिल हैं। इस लिस्ट में 300 से ज्यादा भारतीय मोबाइल नंबर हैं। हिंदुस्तान टाइम्स, इंडिया टुडे, नेटवर्क 18, द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस सहित बड़े मीडिया संस्थानों के बड़े पत्रकारों को भी निशाना बनाया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
चुनावों के दौरान बनाया गया निशाना
द वायर (The Wire) के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2019 के लोकसभा आम चुनावों से पहले 2018 और 2019 के बीच ज्यादातर को निशाना बनाया गया। पेगासस को बेचने वाली इजरायली कंपनी NSO ग्रुप का दावा है कि वह अपने स्पाईवेयर केवल अच्छी तरह से जांची-परखी सरकारों को ही ऑफर करती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
क्या है पेगासस
पेगासस को बनाने वाले एनएसओ ग्रुप ने अपनी ट्रांसपेरेंसी और रिस्पॉसिबिलिटी रिपोर्ट 2021 में कहा है कि इसके उत्पाद सार्वजनिक सुरक्षा को बनाए रखने के लिए पूरी तरह से सत्यापित सरकारी एजेंसियों के इस्तेमाल के लिए ही बने हैं। कंपनी कहती है कि हम पेगासस का लाइसेंस केवल स्वीकृत, सत्यापित और अधिकृत सरकारों और सरकारी एजेंसियों को देते हैं। विशेष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रमुख कानूनी जांच में उपयोग किए जाने के लिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वर्ष 2016 से मौजूद है ये स्पाइवेयर
पेगासस को इज़राइल स्थित साइबर इंटेलिजेंस और सुरक्षा फर्म NSO ग्रुप की ओर से विकसित किया गया था। माना जाता है कि यह स्पाइवेयर 2016 से ही मौजूद है और इसे क्यू सूट और ट्राइडेंट जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। बाजार में उपलब्ध ऐसे सभी उत्पादों में सबसे परिष्कृत माना जाता है। यह ऐप्पल के मोबाइल फोन ऑपरेटिंग सिस्टम आईओएस और एंड्रॉइड डिवाइसों में घुस सकता है। पेगासस का इस्तेमाल सरकार की ओर से लाइसेंस के आधार पर किया जाना था। मई 2019 में, इसके डेवलपर ने सरकारी खुफिया एजेंसियों और अन्य के लिए पेगासस की बिक्री सीमित कर दी थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कंपनी का ये था दावा
एनएसओ ग्रुप की वेबसाइट के होम पेज के अनुसार कंपनी ऐसी तकनीक बनाती है जो दुनिया भर में हजारों लोगों की जान बचाने के लिए आतंकवाद और अपराध को रोकने और जांच करने में मदद के लिए सरकारी एजेंसियों की मदद करती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ऐसे काम करता है पेगासस स्पाईवेयर
– इज़रायल के NSO ग्रुप ने पेगासस स्पाईवेयर बनाया
– आईफ़ोन और एंड्रॉयड फोन में घुसपैठ करने में सक्षम
– Whatsapp में एक खामी का पेगासस ने इस्तेमाल किया
– हानिकारक लिंक या मिस्ड Whatsapp वीडियो कॉल से ऐक्टिवेट
– स्पाईवेयर फ़ोन के बैकग्राउंड में चुपचाप सक्रिय
– फ़ोन के कॉन्टैक्ट, मैसेज, डेटा तक पूरी पहुंच
– माइक्रोफ़ोन और कैमरा भी ऑन कर सकता है
– Whatsapp ने अपनी खामी अब सुधार ली है
फोन में घुसता है स्पाईवेयर
– Whatsapp पर वीडियो कॉल आती है
– एक बार फ़ोन की घंटी बजते ही हमलावर हानिकारक कोड भेज देता है
– ये स्पाईवेयर फ़ोन में इंस्टॉल हो जाता है
– ऑपरेटिंग सिस्टम पर कब्ज़ा कर लेता है
– मैसेज, कॉल, पासवर्ड तक स्पाईवेयर की पहुंच
– माइक्रोफ़ोन और कैमरा तक भी स्पाईवेयर की पहुंच
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।