पहाड़ की जिंदगी, पहाड़ सी जिंदगी, चार साल में चार आपदा के दंश की कहानी पंकज की जुबानी
मैं आपदाओं पर नहीं लिख सकता हूं, क्योंकि मुझे आपदाओं को लेकर निजी अनुभव के अलावा अन्य कोई ज्यादा जानकारी नहीं है। 2010 से लेकर 2013 तक लगातार चार साल हमारा क्षेत्र आपदाओं से जूझता रहा। उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से गंगोत्री की ओर 30 किमी की दूरी पर भटवाड़ी ब्लॉक तहसील मुख्यालय होने के साथ साथ क्षेत्र का प्रमुख बाजार भी था। ग्रामीणों की जरूरत का हर सामान भटवाड़ी में आसानी से मिल जाता, आम पहाड़ी सा यह बाजार 2010 में अचानक धंसना शुरू हो गया, अगले कुछ दिनों में बाजार का मुख्य हिस्सा धंस कर गंगा में समा गया। देखते ही देखते एक भरा पूरा बाजार एक मलबे के ढेर के सिवाय कुछ नहीं था।
अगले साल 2011 में गंगोत्री नेशनल हाईवे में सैंज के समीप पहाड़ी का बड़ा हिस्सा टूट गया, नेशनल हाईवे का 100 मीटर से अधिक का हिस्सा इसकी चपेट में आकर गायब हो गया। अगले कुछ दिन बेहद मुश्किल भरे थे, क्योंकि इस हिस्से के टूटने के बाद टकनौर व नाल्ड कठूड़ क्षेत्र के गांवों का संपर्क देश दुनिया से कट गया था। जरूरी रसद की आपूर्ति ठप पड़ गई थी। खैर, पहाड़ में रहने वालों का हौसला भी पहाड़ सा ही होता है। हाईवे का हिस्सा टूटने के बाद बेहद खतरनाक पहाड़ी से एक संकरी सी पगडंडी लोगों ने आवाजाही को बना दी। सीमा सड़क संगठन को हाईवे को उस हिस्से को बनाने और आवाजाही बहाल करने में महीने भर का समय लग गया, तब तक करीब ढाई से तीन किमी की पैदल दूरी बेहद खतरनाक संकरी पहाड़ी पंगडंडी से नापनी पड़ती थी, नीचे पूरे उफान में भागीरथी बहती, अगर संतुलन बिगड़ा तो लाश भी घरवालों को नसीब न होती।
2012 में 2 अगस्त को बारिश शुरू हुई। पूरी रात भारी बारिश होने से डोडीताल से निकलने वाली अस्सी गंगा और गोमुख से निकलने वाली भागीरथी गंगा नदी में भारी उफान आ गया। असी गंगा में रात को उफान आया तो केलसू क्षेत्र से लेकर गंगोरी तक इस अमूमन शांत सी बहने वाली नदी ने भारी तबाही मचाई। असी गंगा नदी पर कुछ लघु जल विद्युत परियोजनाओं का काम जारी था लिहाजा सैकड़ों मजदूर अस्थाई टैंट लगातार परियोजना क्षेत्र के समीप डेरा डाले हुए थे तो असी गंगा घाटी उस दौरान पर्यटकों की पसंदीदा जगह हुआ करती थी, घाटी की खूबसूरती से अभिभूत कई साधु संतों ने भी अपना डेरा इस घाटी में जमा रखा था। रक्षाबंधन के त्यौहार के दिन रात को आए उफान के बाद सुबह जब अंधेरा छटा तो गंगोत्री नेशनल हाईवे पर एक पुल के बहने के साथ गंगोरी में पुलिस चैकी, वन विभाग के दफ्तर का हिस्सा समेत, बड़ी संख्या में आवासीय भवन नदी के उफान में खो चुके थे।
असी गंगा घाटी कें कितना नुकसान हुआ इसके निशान आज भी इस घाटी में देखे जा सकते हैं। जल विद्युत परियोजनाओं में कितने मजदूर काम कर रहे थे उनका आधिकारिक आंकड़ा तो न था, न ही तब सरकार इतने बड़े स्तर पर खोज एवं बचाव का कोई अभियान चलाया कि गुमशुदा लाशों को ढूंढा जा सके। उस दौरान मैं उत्तरकाशी में दैनिक जागरण में कार्यरत था। तब एक व्यक्ति कई महीनों तक दैनिक जागरण के दफ्तर इस उम्मीद के साथ आता था कि एक उनके परिचित साधु जिनसे उनकी आखिरी बार बात उस सैलाब के आने से ठीक पहले हुई थी वह लापता थे। साथ ही साधु के साथ रहने वाले अन्य लोग। वह व्यक्ति अपने परिचित साधु की खोज खबर के सिलसिले में महीनों तक हमारे दफ्तर का चक्कर काटता रहा। भागीरथी में आए उफान ने भी खूब तबाही मचाई थी, नेशनल हाईवे का बड़ा हिस्सा गायब था, गंगा घाटी के करीब तीस से अधिक गांवों को महीनों तक कई किमी की पैदल दूरी तय कर जिला मुख्यालय पहुंचाना पड़ रहा था।
जून महीने में अमूमन उन दिनों उत्तरकाशी में खूब गर्मी पड़ती है, लेकिन 2013 को लगातार बारिश के बाद तब उत्तरकाशी में दैनिक जागरण के प्रभारी पुष्कर भाई के फोन से सुबह नींद खुली। असल में रात को दोस्तों के साथ चली लंबी दावत के चलते सुबह तड़के उठ नहीं पाया। बाहर बारिश की आवाज से गर्मी काफूर हो चुकी थी तो सुबह की नींद बड़ी प्यारी लग रही थी। खैर, पुष्कर रावत भाई का फोन आया तो उन्होंने सूचना दी कि भागीरथी नदी में भारी बाढ़ आ गई है। तिलोथ, जोशियाड़ा, उत्तरकाशी के तटवर्ती इलाकों को खाली कराया जा रहा है। बाहर निकला तो बारिश लगातार जारी थी। खैर छाता निकाल कर अगले दो दिनों उत्तरकाशी में भागीरथी नदी में आई बाढ़ से मचा तांडव देखा।
होटल आकाश गंगा, तिलोथ में एक विशाल भवन समेत दर्जनों छोटे बड़े भवनों को भागीरथी नदी में समाते देखा, पुष्कर भाई द्वारा होटल आकाश गंगा का भागीरथी नदी में समाने का रिकार्ड किया गया शॉट अगले साल हॉलीवुड में रीलीज हुई एक फिल्म में उपयोग किया गया था। 2013 में केदारनाथ में हुई तबाही की खबर हमें तीसरे दिन मिली थी। जब सरकार ने औपचारिक रूप से स्वीकार किया कि केदारनाथ में सब कुछ ठीक नहीं है। उत्तरकाशी में लगातार चौथा साल था जब बारिश की बूंदे आफत बनकर बरसी थी।
इन आपदाओं में कई लोग काल के ग्रास में समाए, जीवन भर की कमाई से बनाए आशियानों को नेस्तानाबूत होते हुए देखा। कभी आबाद रहने वाली बस्तियों को मलबे के ढेर में तब्दील होते हुए देखा। नुकसान कितना हुआ क्या हुआ यह आंकड़े कुछ दिनों बाद जारी होते। मरने लापता होने वाले महज आंकड़े ही होते, क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में नाम याद रहना तो संभव नहीं है।
रविवार को जोशीमठ घाटी में आई आफत ने फिर से उत्तरकाशी पर बरसी आफत की यादें ताजा कर दी। कुदरत का हिसाब किताब समझ से परे है। इतिहास पढ़ने पर पता चला कि सभ्यताएं नदी घाटियों में विकसित हुई। नदियों ने कई सभ्यताओं को इतिहास बना दिया। आज भी बदस्तूर जारी है। कहते हैं कि इंसान इनसे सबक नहीं लेता। कुदरत से क्या सबक लेगा। जून में बाढ़ का आ जाना, हिमपात वाले महीनों में ग्लेशियर खिसकने से बाढ़ आ जाना, कुदरत का अपना नियम है। वह किसी बंधे बंधाए हिसाब से तो संचालित होती नहीं है। वह बस बताती रहती है कि जो है बस वहीं है।
लेखक का परिचय
नाम-पंकज कुशवाल
मूल रूप से उत्तरकाशी निवासी हैं। रेडियो, समाचार पत्रों में काम करने का अनुभव के साथ ही वह बाल अधिकारों, बाल सुरक्षा के मुद्दों पर कार्य कर रहे हैं। विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ कार्य करने के साथ ही वह सुदूर क्षेत्रों में मुख्यधारा की मीडिया से छूटे इलाकों में वैकल्पिक मीडिया का युवाओं को प्रशिक्षण व वैकल्पिक मीडिया टूल्स विकसित करने का प्रयास करते हैं। वर्तमान में पत्रकारिता से पेट न पलने के कारण पर्यटन व्यवसाय से जुड़कर रोजी रोटी का इंतजाम कर रहे हैं। वह किसी विचारधारा का बोझ अपने कमजोर कंधों पर नहीं ढोते।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।