13 अक्टूबर को है करवा चौथ व्रत त्योहार, ये है पूजा का मुहूर्त, भूलकर भी पति और पत्नी ना करें ये काम
निष्ठा और नियमों के अनुरूप रखा जाए व्रत, होगी मनोकामना पूरी
हिंदू धर्म में करवा चौथ व्रत को बेहद पवित्र और खास माना गया है। करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं पूरी निष्ठा और पवित्रता के साथ करती हैंष मान्यता है कि अगर करवा चौथ का व्रत निष्ठा और नियमों के मुताबिक किया जाए तो दांपत्य जीवन में खुशहाली बनी रहती है। साथ ही व्रती के पति को दीर्घायु का वरदान प्राप्त होता है। यही वजह है कि सुहागिन महिलाएं करवा चौथ व्रत में किसी भी प्रकार की गलतियां नहीं करना चाहतीं। करवा चौथ व्रत के नियम में ऐसा कहा गया है कि इस दिन पति-पत्नी को कुछ काम नहीं करने चाहिए। दरअसल ऐसा करने से मानोकामनाएं पूरी नहीं होती हैं। इसके साथ ही दांपत्य जीवन में परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
करवा चौथ व्रत में होती है इनकी पूजा
करवा चौथ व्रत में मां पार्वती, गणेश और चंद्र देव की पूजा की जाती है। व्रती इस देवी-देवताओं की पूजा कर उनसे पति की दीर्घायु की प्रर्थना करती हैं। साथ ही वैवाहिक जीवन में खुशहाली की भी प्रार्थना करती हैं। करवा चौथ व्रत की शुरुआत 13 अक्टूबर 2022 को सुबह 06.25 मिनट से होगी और चांद निकलने तक यानी कि रात 8.19 तक व्रती को निर्जला व्रत करना होगा। करवा चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06.01 से रात 07 बजकर 15 मिनट तक है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भूलकर भी दंपती ना करें ये काम
धर्म शास्त्र के जानकारों की मानें तो करवा चौथ व्रत के दिन पति-पत्नी को शारीरिक संबंध नहीं बनना चाहिए। इस दिन मन में ऐसे विचारों को आने से भी व्रत भंग हो जाता है। परिणामस्वरूप करवा चौथ के निर्जला व्रत का कोई फल नहीं मिलता है। इसके अलावा इस दिन किसी के प्रति बुरे विचार भी नहीं लाने चाहिए। इस मन में गलत विचार लाने से व्रत की पवित्रता खत्म हो जाती है। ऐसे में हर करवा चौथ के व्रती को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। मान्यता है कि व्रत के दौरान अगर दंपती शारीरिक संबंध बानते हैं तो वे पाप के भागीदार बनते है। इसके अलावा उन्हें व्रत का पुण्य फल प्राप्त नहीं होता है। इसी वजह से धर्म शास्त्रों के जानकार किसी भी व्रत के दौरान पति-पत्नी को इस कार्य से दूरी बनाने की सलाह देते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ऐसे शुरू हुई करवा चौथ व्रत की परंपरा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध शुरू हो गया। जंग के मैदान में दानव देवताओं पर हावी हो गए थे। युद्ध में सभी देवताओं को संकट में देख उनकी पत्नियां विचलित होने लगीं। पति के प्राणों की रक्षा के उपाय हेतु सभी स्त्रियां ब्रह्मदेव के पास पहुंची। ब्रह्मा जी ने देवताओं की पत्नियों से करवा चौथ व्रत करने को कहा। ब्रह्मदेव बोले कि इस व्रत के प्रभाव से देवताओं पर कोई आंच नहीं आएगी और युद्ध में वह जीत प्राप्त करेंगे। ब्रह्मा जी की बात सुनकर सभी ने कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप करवा माता ने देवताओं के प्राणों की रक्षा की और वह युद्घ में विजय हुए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
महाभारत काल में करवा चौथ व्रत
महाभारत काल में भी इस व्रत का महत्व मिलता है। एक प्रसंग के अनुसार जब पांडवों पर संकट के बादल मंडराए थे तो द्रोपदी ने श्रीकृष्ण द्वारा बताए करवा चौथ व्रत की पूजा की थी। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को संकटों से छुटकारा मिला था।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।