ना मतदान और बीजेपी ने मारा मैदान, संयोग या प्रयोग, मतदाताओं से मजाक या लोकतंत्र पर हमला
लोकसभा प्रत्याशी बगैर वोट डाले ही चुनाव जीत गए। प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के प्रत्याशी का नामांकन रद्द हो जाता है। बाकी सात निर्दलीय प्रत्यशी और बसपा का एक प्रत्याशी नाम वापस ले लेता है। अब सवाल ये उठता है कि क्या ये लोकतंत्र का मजाक नहीं है। मतदाताओं के साथ मजाक नहीं है। उनके मताधिकार के प्रयोग को समाप्त करने का षड्यंत्र की शुरुआत तो नहीं है। क्योंकि एक साथ आठ प्रत्याशियों की ओर से नाम वापस लेना कोई संयोग नहीं हो सकता है। इसे प्रयोग कहा जा सकता है। और यदि ये प्रयोग है तो इसे लोकतंत्र के पर्व यानि कि मतदान के अधिकार की हत्या की शुरुआत के रूप में देखा जा सकता है। खैर फिलहाल, गुजरातच के सूरत में मतदान होने से पहले और मतगणना होने से पहले ही लोकसभा की सीट बीजेपी के खाते में चली गई। इस दल के नेताओं ने जश्न मनाना भी शुरू कर दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बीजेपी प्रत्याशी चुने गए निर्विरोध
लोकसभा चुनाव के नतीजों से पहले ही सूरत लोकसभा सीट पर बीजेपी प्रत्याशी मुकेश दलाल निर्विरोध सांसद चुन लिए गए हैं। सूरत सीट पर पहली बार ऐसा हुआ है जब कोई सांसद पहली बार निर्विरोध जीत गया हो। सूरत ही नहीं पूरे गुजरात के इतिहास में पहली बार किसी लोकसभा उम्मीदवार को निर्विरोध घोषित किया गया है। सूरत लोकसभा के सांसद बिना वोटिंग के चुने गए। अब गुजरात में 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव होंगे। मुकेश दलाल निर्विरोध चुने जाने वाले पहले बीजेपी सांसद होंगे। अभी तक किसी भी बीजेपी सांसद को निर्विरोध घोषित नहीं किया गया है।
कांग्रेस प्रत्याशी का नामांकन रद्द
बता दें कि कांग्रेस प्रत्याशी नीलेश कुंभानी का फॉर्म रद्द कर दिया गया था, जबकि अन्य उम्मीदवारों ने अपना फॉर्म वापस ले लिया था। इसके बाद मुकेश दलाल को निर्विरोध सांसद चुन लिया गया। बाकी बचे सूरत लोकसभा सीट पर निर्दलीय समेत 8 में से 7 उम्मीदवारों ने अपने फॉर्म वापस ले लिए थे। बाद में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी प्यारेलाल ने भी नामांकन वापस ले लिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये दिया गया तर्क
निर्वाचन अधिकारी सौरभ पारधी ने अपने आदेश में कहा कि कुंभाणी और कांग्रेस के डमीन प्रत्याशी पडसाला द्वारा सौंपे गए चार नामांकन फॉर्म को प्रस्तावकों के हस्ताक्षरों में प्रथम दृष्टया विसंगतियां पाए जाने के बाद खारिज कर दिया गया। उन्होंने कहा कि ये हस्ताक्षर असली नहीं लग रहे हैं। आदेश में कहा गया कि प्रस्तावकों ने अपने हलफनामों में कहा है कि उन्होंने फॉर्म पर खुद हस्ताक्षर नहीं किए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये हे मामला
बता दें कि बीजेपी ने कांग्रेस उम्मीदवार के नामांकन पत्र पर आपत्ति जताई थी। साथ ही कहा था कि कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी के नामांकन पत्र पर 4 प्रस्तावकों के हस्ताक्षर हुए थे, जिसमें से वे तीन प्रस्तावकों को चुनावी अधिकारी के सामने पेश नहीं कर पाए। जहा रविवार को दोनों पक्षों ने रिटर्निंग ऑफ़िसर के समक्ष अपनी-अपनी दलीलें पेश कीं और आख़िरकार कांग्रेसी उम्मीदवार के साथ ही डमी प्रत्याशी का पर्चा ही ख़ारिज कर दिया गया। उन पर आरोप है नीलेश ने अपने नामांकन पत्र पर चार में से तीन प्रस्तावकों के फ़र्जी हस्ताक्षरों का इस्तेमाल किया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कांग्रेस प्रत्याशी के करीबी हैं तीन प्रस्तावक
हालांकि, जिन 3 प्रस्तावकों ने अपने हस्ताक्षर फ़र्ज़ी होने का दावा किया है वो तीनों ही कांग्रेस प्रत्याशी नीलेश कुंभानी के बेहद क़रीबी हैं। इसमें एक उनके बहनोई, एक भतीजा और एक उनके कारोबारी पार्टनर हैं। चूंकि ये तीनों नीलेश कुंभानी के करीबी लोग हैं। वहीं, इस घटना के बाद से तीनों लोगों से संपर्क नहीं हो पा रहा है। सूरत में सात मई को मतदान होना था। यहां अन्य आठ उम्मीदवारों ने नाम वापस ले लिया। इनमें चार निर्दलीय, तीन छोटे दलों के नेता और एक बीएसपी प्रत्याशी प्यारेलाल भारती शामिल हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नीलेश कुंभाणी ने कांग्रेस पार्टी के डमी प्रत्याशी सुरेश पडसाला का प्रस्तावक भी अपने भांजे भौतिक कोलडीया को बनवाया। पर्चा दाखिल करते वक्त भी कुंभाणी किसी भी प्रस्तावक को चुनाव अधिकारी के सामने नहीं ले गए। पर्चा दाखिल करने के बाद सारे प्रस्तावक भूमिगत हो गए। यहीं नहीं प्रस्तावकों ने बाद में निर्वाचन अधिकारी को लिखकर भेजा कि उनके हस्ताक्षर फर्जी हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सवाल ये कि कौन गलत या कौन सही
अब सवाल उठता है कि यदि कांग्रेस प्रत्याशी के प्रस्तावकों के हस्ताक्षर फर्जी थे, तो प्रत्याशी के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। यदि प्रस्तावकों ने झूठ बोला तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा कुछ होता नजर नहीं आ रहा है। क्योंकि सारी रणनीति कई दिन पहले से बननी शुरू हो गई थी। कई मीडिया रिपोर्ट में तो ये भी दावे किए जा रहे हैं कि कांग्रेस प्रत्याशी भी इस खेल में बीजेपी से मिल गए। कारण ये है कि नामांकन रद्द होने पर वह चंडीगढ़ मेयर चुनाव के दौरान आप प्रत्याशी की तरह लड़ते भिड़ते नहीं दिखे, बल्कि चुपचाप पिछले दरवाजे से निकल गए और भूमिगत हो गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
होटल ली-मैरेडियन में चला बीजेपी का ऑपरेशन
चारों प्रस्तावकों ने हस्ताक्षर फर्जी होने का शपथपत्र दे दिया और खुद अंडर ग्राउंड हो गए। सभी को कारण बताओ नोटिस जारी करने की प्रक्रिया अपनाई गई। कोई भी सामने नहीं आया। इसके बाद कुंभाणी और डमी प्रत्याशी सुरेश पडसाला का पर्चा खारिज हो गया। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा के इस ऑपरेशन निर्विरोध का एपिसेंटर सूरत का फाइव स्टार होटल ली-मैरेडियन बना। यहां से 24 घंटे तक ऑपरेशन निर्विरोध की कार्रवाई का संचालन हुआ। ये कवायद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल की सीधी निगरानी में हुई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बसपा प्रत्याशी को क्राइम ब्रांच ने होटल पहुंचाया
भास्कर की रिपोर्ट में कहा गया कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर प्यारेलाल भारती सहित छोटे दलों के 4 प्रत्याशी सूरत से मैदान में थे। वह सूरत से वडोदरा पहुंच कर एक फॉर्म हाउस में जा बैठे। प्यारेलाल की खोजबीन शुरू हुई। बसपा प्रत्याशी से संपर्क न होने पर क्राइम ब्रांच जुटी। लोकेशन के आधार पर कार्रवाई हुई। सोमवार को वह सूरत लौटने के साथ ही फाइव स्टार होटल ली-मैरेडियन पहुंचे। भाजपा ने साम-दाम दंड भेद की नीति अपनाई। इसी तर्ज पर सरदार वल्लभभाई पटेल पार्टी, ग्लोबल रिपब्लिकन पार्टी और लोग पार्टी सहित सभी 4 दलों के प्रत्याशियों ने अंतिम दिन सोमवार को नामांकन पत्र वापस लेकर भाजपा का रास्ता साफ कर दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
निर्दल प्रत्याशियों पर भी बनाया दबाव
इससे पहले चार निर्दलीय प्रत्याशियों को राजी किया गया। फोन कर इन्हें होटल बुलाया गया। जहां निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान छोड़ने को राजी हो गए। ऑपरेशन निर्विरोध के लिए इनका चुनाव मैदान से हटना जरूरी था। इसलिए संबंधित प्रत्याशियों के समाज के लोगों से संपर्क साधा। भाजपा नेताओं को राजी करने का जिम्मा सौंपा गया। सभी निर्दलीयों ने भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में नाम वापस लिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नाम वापस लेने वाले प्रत्याशी
लॉग पार्टी के सुहैल शेख- वापस लिया
ग्लोबल रिपब्लिकन पार्टी के जयशाह भाई मेवाड़ा- वापस लिया
निर्दलीय उम्मीदवार भारत भाई प्रजापति- वापस लिया
निर्दलीय उम्मीदवार अजीत उमात- वापल लिया
बहुजन समाज पार्टी के प्यारे लाल भारती- वापस लिया
निर्दलीय उम्मीदवार किशोर भाई दयानी- वापस लिया
निर्दलीय उम्मीदवार रमेश भाई बारैया- वापस लिया
सरदार वल्लभभाई पटेल पार्टी के अब्दुल हामिद खान- वापस लिया (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
न्यायालय जाएगी कांग्रेस
इस घटनाक्रम की पुष्टि करते हुए कांग्रेस के वकील बाबू मंगुकिया ने कहा कि नीलेश कुंभाणी और सुरेश पडसाला के नामांकन पत्र खारिज कर दिए गए हैं। चार प्रस्तावकों ने कहा है कि फॉर्म पर उनके हस्ताक्षर नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अब उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय का रुख करेंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कांग्रेस ने कहा- लोकतंत्र खतरे में है
सूरत से कांग्रेस उम्मीदवार का पर्चा खारिज होने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा कि तानाशाह की असली ‘सूरत’ एक बार फिर देश के सामने है। जनता से अपना नेता चुनने का अधिकार छीन लेना बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान को खत्म करने की तरफ बढ़ाया एक और कदम है। राहुल ने लिखा, मैं एक बार फिर कह रहा हूं कि यह सिर्फ सरकार बनाने का चुनाव नहीं है, यह देश को बचाने का चुनाव है। संविधान की रक्षा का चुनाव है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जयराम रमेश ने कहा- ख़तरे में है संविधान
वहीं कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने क्रोनोलॉजी समझाते हुए कहा कि लोकतंत्र खतरे में हैं। उन्होंने एक्स पर लिखा कि सूरत जिला चुनाव अधिकारी ने सूरत लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी नीलेश कुंभानी का नामांकन रद्द कर दिया है। कारण तीन प्रस्तावकों के हस्ताक्षर के सत्यापन में खामी बताई गई है। उन्होंने कहा कि कुछ इसी तरह का कारण बताकर अधिकारियों ने सूरत से कांग्रेस के वैकल्पिक उम्मीदवार सुरेश पडसाला के नामांकन को ख़ारिज कर दिया। कांग्रेस पार्टी बिना उम्मीदवार के रह गई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि बीजेपी प्रत्याशी मुकेश दलाल को छोड़कर बाकी सभी उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया है। 7 मई 2024 को मतदान से लगभग दो सप्ताह पहले ही 22 अप्रैल, 2024 को सूरत लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार को “निर्विरोध” जिता दिया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के अन्याय काल में एमएसएमई मालिकों और व्यवसायियों की परेशानियों एवं गुस्से को देखते हुए भाजपा इतनी बुरी तरह से डर गई है कि वह सूरत लोकसभा के “मैच को फ़िक्स” करने का प्रयास कर रही है। इस सीट को वे लोग 1984 के लोकसभा चुनाव के बाद से लगातार जीतते आ रहे हैं। हमारे चुनाव, हमारा लोकतंत्र, बाबासाहेब अंबेडकर का संविधान – सब कुछ भयंकर ख़तरे में हैं। मैं दोहरा रहा हूं – यह हमारे जीवन काल का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पहले भी निर्विरोध चुने गए हैं सांसद
ऐसा नहीं है कि बीजेपी प्रत्याशी मुकेश दलाल पहली बार निर्विरोध चुने गए हैं। इससे पहले कई नेताओं के साथ ऐसा हो चुका है। साल 2012 में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश यादव ने कन्नौज लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उनकी पत्नी डिंपल यादव इस सीट से खड़ी हुई थीं। इस सीट पर तीनों प्रमुख दलों -कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने डिंपल यादव के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा था। आखिर में संजू कटियार और दशरथ शंखवार नाम के दो निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी अपना नामांकन वापस ले लिया था, जिसके बाद डिंपल यादव को कन्नौज लोकसभा सीट से निर्विरोध चुना गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसके अलावा महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री और देश के पांचवें उप-प्रधानमंत्री यशवंत राव चव्हाण 1963 में नासिक लोकसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर निर्विरोध चुने गए थे। लक्षद्वीप से दस बार के लोकसभा सांसद पी.एम सईद 1971 में निर्विरोध चुने गए थे। 1962 में उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश) की टिहरी संसदीय सीट पर महाराजा मानवेंद्र शाह निर्विरोध चुने गए। 1980 में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूख़ अब्दुल्लाह श्रीनगर से नेशनल कॉन्फ्रेंस की तरफ से निर्विरोध चुने गए। इसके अलावा कई ऐसे लोकसभा सांसद हैं जो बिना चुनाव लड़े संसद पहुंचे हैं। वहीं अगर विधानसभा की बात की जाए तो अरुणाचल प्रदेश में ऐसा कई बार देखने को मिला है। यहां बड़ी संख्या में विधानसभा चुनाव के दौरान विपक्ष का उम्मीदवार न होने की वजह से विधायक निर्विरोध चुने गए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सूरत का प्रकरण इसलिए अलग
सूरत में निर्विरोध सांसद बनने का मामला कुछ अलग है। यहां कांग्रेस के प्रत्याशी का नामांकन रद्द होता है और बीएसपी का प्रत्याशी पार्टी मुख्या के आदेश के बगैर ही नाम वापस लेता है। अन्य दल और निर्दल प्रत्याशियों को कुछ मिलाकर आठ प्रत्याशियों की ओर से नाम वापस लेना ये संयोग नहीं है। इसे आने वाले समय के लिए एक प्रयोग भी कहा जा सकता है। हांलाकि, मतदाताओं को अब ऐसी बातों से कुछ लेना देना नहीं है। ना ही उन्हें रोजगार की चिंता है। ना ही महंगाई की। धार्मिक विवादों में उलझे रहो। ये ही तो हो रहा है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।