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September 17, 2025

तिब्बत का नया साल: लोसर उत्सव की धूम, हिमालयी राज्यों में 12 फरवरी से मनेगा त्योहार: भूपत सिंह बिष्ट

इस माह एक बार फिर नये साल की धूमधाम 12 फरवरी से लोसर पर्व के रूप में मनायी जानी है।


यूं तो विश्व की छत कहे जाने वाले तिब्बत प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत काफी गुमनाम रहती है, लेकिन लोसर पर्व के नाम से काफी लोग जानते हैं कि भारत में रह रहे तिब्बती मूल के लोग अपना नया साल मनाने के लिए कुछ दिन अपने लोगों के बीच अज्ञात वास में चले जाते हैं। इस माह एक बार फिर नये साल की धूमधाम 12 फरवरी से लोसर पर्व के रूप में मनायी जानी है।
बौद्ध मत के तिब्बत आने से पहले हुई थी शुरूआत
मना जाता है कि लोसर की शुरूआत बौद्ध मत के तिब्बत में आने से पहले ही हो चुकी थी और फसलों के पकने पर नये साल का उत्सव लोसर नाम से मनाया जाता है। इस उत्सव में सबसे पहले बीते साल की सभी बुरी बातों और नकारात्मकता को छोड़ने का संकल्प लिया जाता है। अपने इष्ट देव के लिए प्रसाद सामग्री खापसे पकवान बनाये जाते हैं। अपने पूजाघर और प्रवेश द्वार पर मेहमानों के स्वागत के लिए जलपात्र और पुष्प सज्जा की जाती है।
पकवानों का महत्व
तिब्बती पकवान देखने में हमारी मिठाई के रंगीन आकार लगते हैं, लेकिन इन पकवानों में चीनी का उपयोग ना के बराबर होता है। तिब्बती पेस्ट्री बुलुग, सूप, चांग्कोल, छंग चावल की बियर, मक्खन चाय और मोमो अब हमारे घर के किचन तक आ चुके हैं।


कूरियर से खापसे भेजे जाने की परिपाटी
घर से दूर रह रहे और लोसर में भाग न ले पाने वाले परिजनों के लिए अब कूरियर से खापसे भेजे जाने की परिपाटी बन रही है, ताकि दिल्ली, बंगलोर, चैन्नई, मुंबई, पूणे, कलकत्ता और गोहाटी में नौकरी कर रहे या पढ़ने वाले बच्चों को नये साल की शुभकामनायें पहुंचायी जा सकें।
इस बार भी रहेगी धूम
इस बार 12 फरवरी से 14 फरवरी तक लोसर की धूमधाम हिमालयी राज्यों में रहने वाली है। लोसर पर्व की विशेष धूमधाम तीन दिन तक रहती है और नये साल का स्वागत पंद्रह दिन तक जारी रहता है। इस दौरान तिब्बती मूल के लोग अपने व्यापार और सामान्य कामकाज से छुट्टी करते हैं। अपने को दावतों, नए वस्त्र, नाच गान में मशगूल रखते हुए, अपने मित्रों, परिवार और परिचितों के बीच नये वर्ष की मौज मस्ती करते हैं।


आधुनिक गीत भी हो रहे वायरल
लोसर के कई आधुनिक गीत अब यू टयूब पर वायरल हैं। तिब्बत का संगीत हमारे जनजातीय गीतों में भी घर कर गया है। यह दूसरी बात है कि हम उत्तर भारतीयों को तिब्बत और चीन का अंतर स्पष्ट नहीं है और हम कई बार बेशर्मी से अपने उत्तर पूर्व के भारतीय नागरिकों को चायनीज, कोरियन या जापानी कहने से बाज़ नहीं आ पाते हैं। महानगरों में अपने ही नागरिकों के साथ बुरे व्यवहार के मामले शर्म से सिर झुका देते हैं। हमें यह मालूम होना जरूरी है कि चीन ने अपने पड़ोसी तिब्बत पर कब्जा जमा रखा है और वास्तव में चीन की दूरी तिब्बत से हजारों किमी है।
तिब्बती कैलेंडर में है ये 2148 वां साल
नया वर्ष काष्ठ व धातु बैल राषिफल का माना गया है। तिब्बत की पुरातन संस्कृति में साल गणना (कैलेंडर) का बड़ा महत्व हैं। चंद्रगणना के अनुसार बारह जीवों पर राशियां आधारित हैं – जैसे चूहा, बैल, बाघ, खरगोश, ड्रेगन, सांप, घोड़ा, भेड़, बंदर, मुर्गा, कुत्ता व सूअर। बारह तिब्बती माह पूर्ण चंद्रमा होने पर शुरू होते हैं और 12 फरवरी 2021 का दिन तिब्बती कैलेंडर में 2148 वां साल है।
उत्तराखंड में कई जनजाति भी मनाती हैं लोसर
उत्तराखंड में तिब्बती ही नहीं, उत्तरकाशी में बगोरी और डुंडा में जनजाति के लोग लोसर मनाते हैं। ऐसे ही तिब्बत की सीमा से जुड़े इलाके या तिब्बत से व्यापार कर रहे भोटिया जनजाति के लोग चमोली, पिथौरागढ़ आदि क्षेत्रों में भी लोसर यानि नया साल मनाते हैं। इतिहासकारों के अनुसार तिब्बत के राजा का आधिपत्य नेपाल के अलावा उत्तराखंड हिमालय, हिमाचल, लद्दाख, उत्तर पूर्व में सिक्किम व अरूणाचल तक रहा है। सैकड़ों साल के तिब्बत राज ने रोटी, बेटी और व्यापार के रिश्ते बनाये तो बोली, भाषा और संस्कृति की छाप भी इन क्षेत्रों में आ गई।


हिमाचल में भी रहती है धूम
हिमाचल में लाहौल स्पीति के अलावा किन्नौर, सिक्किम, लद्दाख व अरूणाचल में लोसर पर्व की धूम रहती है। अरूणाचल प्रदेश में पश्चिमी कामेंग, त्वांग और अन्य बौद्ध बहुल जनपदों में लोसर का पर्व अभिन्न सांस्कृतिक उत्सव के अनुरूप दावतों के आयोजन में सामूहिक नाच – गान के आयोजनों कर किया जाता है।
लोसर का पर्व तिब्बत के बाहर नेपाल व भूटान देश का विशिष्ट उत्सव है। नेपाल में लोसर के तीन रूप देखने में मिलते हैं – सोनम लोसर को तमांग जाति के लोगों के बीच में मनाया जाता है। तमु लोसर का आयोजन गुरूंग गोरखाओं के मध्य और ग्येलपों लोसर का आयोजन शेरपा लोगों के बीच आयोजित होता है। लोसर का आयोजन अधिकतर दूर दराज के हिमालयी क्षेत्र में होने से इस की चर्चा नगरीय क्षेत्रों में सीमित रहती है।
प्रत्येक बारह साल बाद राशि जीव की आवृत्ति होती है। जैसे कि पिछला वर्ष धातु के चूहे का रहा है और अब यह अगली बार 2032 में आयेगा। नया साल काष्ठ धातु के बैल का है और पिछली बार यह राशिफल 1999 में रहा था।


लेखक का परिचय
भूपत सिंह बिष्ट
स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून, उत्तराखंड।

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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