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December 23, 2024

उत्तराखंड में घोषणाओं को लेकर नया विवाद, शिक्षा मंत्री बोले-सुंदर लाल बहुगुणा, सीएम बोल गए-शहीद प्रताप सिंह

अब तो प्रदेश में की जाने वाली घोषणाओं को लेकर भी तालमेल नहीं दिखाई दे रहा है। शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री की एक ही विद्यालय के नाम को लेकर दो अलग अलग घोषणाओं से नया विवाद पैदा हो गया है।

उत्तराखंड में जिस तरह से घोषणाएं हो रही हैं, उससे लगता है कि सीएम और मंत्रियों के बीच कोई तालमेल नहीं है। कभी सीएम किसी मुद्दे पर दिल्ली दरबार में केंद्रीय मंत्रियों से भेंट करके देहरादून लौटते हैं, तो उन्हीं मुद्दों पर कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज भी फिर से उन्हीं मंत्रियों से भेंट कर लौट आते हैं। फिर दोनों के दावे होते हैं कि मैने अमुक कार्य के लिए केंद्रीय मंत्री से ये आश्वासन लिया है। यहां तक तो ठीक है, अब तो प्रदेश में की जाने वाली घोषणाओं को लेकर भी तालमेल नहीं दिखाई दे रहा है। शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री की एक ही विद्यालय के नाम को लेकर दो अलग अलग घोषणाओं से नया विवाद पैदा हो गया है। विवाद इसलिए भी बड़ा है कि इसमें पर्यावरणविद स्व. सुंदर लाल बहुगुणा का नाम जुड़ा है।
हुआ यूं कि हाल ही में शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने घोषणा की थी कि ढुंगीधार जीआइसी इंटर कॉलेज का नाम पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा के नाम पर किया जाएगा। उनके निर्देश पर टिहरी के ढुंगीधार जीआइसी इंटर कॉलेज का नाम पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा के नाम पर करने के लिए टिहरी के सीईओ ने विभाग को प्रस्ताव भेजा था। इस संबंध में शिक्षामंत्री ने कहा था कि बहुगुणा प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के आत्मीय रहे हैं। पर्यावरण के प्रति उनका समर्पण और चिंताएं सभी के लिए अनुकरणीय है। जीआइसी को उनके नाम पर रखना उस महान व्यक्ति को एक छोटी की श्रद्धांजलि होगी।
शिक्षा मंत्री की इस घोषणा को एक सप्ताह भी पूरे नहीं हुए कि गत दिवस शनिवार 11 सितंबर को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी टिहरी दौरे पर गए और घोषणाओं की झड़ियां लगा गए। उनकी घोषणाओं में ढुंगीधार के इंटर कालेज का नाम बदलने की भी थी, लेकिन उसमें सुंदर लाल बहुगुणा का नाम गायब था। उनकी जगह प्रथम विश्व युद्ध में शहीद प्रताप सिंह के नाम पर कॉलेज का नाम रखने का जिक्र किया गया था।
अब इस मामले को लेकर सामाजिक संगठनों के लोगों सरकार की निंदा कर रहे हैं। फेसबुक में भी लोग इसे लेकर पोस्ट डाल रहे हैं। साथ ही कह रहे हैं कि शहीद को भी सम्मान मिलना चाहिए और स्व. बहुगुणा को भी। वहीं, लोग यहां तक लिख रहे हैं कि क्या सरकार और मंत्रियों के बीच तालमेल नहीं है। जिस कॉलेज को लेकर विभागीय मंत्री घोषणा कर रहे हैं, उसी कॉलेज को लेकर सीएम दूसरी घोषणा कर रहे हैं। ऐसा करके शहीद के साथ ही स्व. बहुगुणा का अभी अपमान है।
स्व. बहुगुणा के बेटे ने दी तीखी प्रतिक्रिया
स्व. सुंदर लाल बहुगुणा के बेटे राजीव नयन बहुगुणा ने इस संदर्भ में फेसबुक में पोस्ट डालकर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा कि-भाजपा सरकारें अगर आये दिन ओछापन न करें। तो कुछ अटपटा सा लगने लगता है। वे अगर सामान्य तरीके से चलें, तो डर लगता है कि कुछ गड़बड़ तो नहीं।
हफ्ता भी न बीता था, कि राज्य के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने टिहरी के एक इंटर कॉलेज का नामकरण मेरे पिता स्व सुंदर लाल बहुगुणा के नाम पर करने की घोषणा की थी। अभी पढ़ रहा हूँ कि कल राज्य के मुख्यमंत्री ने वहां जाकर वह कॉलेज किसी और के नाम कर दिया है। इससे पहले भाजपा के एक प्रवक्ता दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा मेरे पिता को भारत रत्न देने की मांग पर उन्हें ” ऐरा गैरा ” करार दे चुके हैं। वाह भई राष्ट्र भक्तों। धन्य तुम्हारी भक्ति।

दिल्ली सरकार दे चुकी है सम्मान
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार ने विधानसभा में समारोह आयोजित कर स्व. बहुगुणा के दो चित्रों का लोकार्पण किया था। इस दौरान उनके परिवार के लोगों को सम्मानित किया। फिर उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा कि बहुगुणाजी के समाज को दिए गए योगदान को देखते हुए उन्हें भारत रत्न प्रदान किया जाए। इसके बाद गुरुवार 29 जुलाई को दिल्ली विधानसभा में इस मांग को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया। उधर, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी सोशल मीडिया में स्व. बहुगुणा को मरणोपरांत भारत रत्न देने की पैरवी की।
21 मई को हुआ था निधन
गौरतलब है कि 21 मई 2021 को 94 वर्ष की उम्र में कोरोना के चलते सुंदरलाल बहुगुणा का एम्स ऋषिकेश में निधन हो गया था। वे काफी समय से बीमार थे।
चिपको आंदोलन के हैं प्रणेता
चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म नौ जनवरी सन 1927 को देवभूमि उत्तराखंड के मरोडा नामक स्थान पर हुआ। प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बीए किया। सन 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए। उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी की। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया।
अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना भी की। सन 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुंदरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उत्तराखंड में बड़े बांधों के विरोध में उन्होंने काफी समय तक आंदोलन भी किया। सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में उन्हें पुरस्कृत भी किया। इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाला यह महापुरुष आज ‘पर्यावरण गाँधी’ बन गया है।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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