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December 27, 2024

उत्तराखंड के महाविद्यालयों में पदोन्नतियों में लगी अघोषित रोक हटाने की राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने की मांग, दिया ये तर्क

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तराखंड ने प्रदेश के सभी महाविद्यालयों में पदोन्नति पर लगाई गई अघोषित रोक को हटाने की मांग की।

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तराखंड ने प्रदेश के सभी महाविद्यालयों में पदोन्नति पर लगाई गई अघोषित रोक को हटाने की मांग की। इस संबंध में महासंघ के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. प्रशांत सिंह ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, उच्च शिक्षा मंत्री, अपर मुख्य सचिव उच्च शिक्षा उत्तराखंड, निदेशक उच्च शिक्षा से उक्त मांग की। मांग की है कि प्रदेश के शासकीय तथा अशासकीय महाविद्यालयों के शिक्षकों की यूजीसी रेगुलेशन-2010 तथा 2018 के अंतर्गत पदोन्नतियों पर लगाई गई अघोषित रोक को तुरंत हटाया जाए।
महासंघ के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष डा. प्रशान्त सिंह ने कहा कि उच्च शिक्षा निदेशक के 24 मार्च, 2021 के आदेश में प्रदेश में शासकीय व अशासकीय महाविद्यालयों के शिक्षकों की यूजीसी रेगुलेशन-2010 तथा 2018 के अन्तर्गत आनेवाली पदोन्नतियों पर रोक लगा दी गयी थी। इस पर शिक्षक संघों, जिसमें रा० शै. महासंघ, गढ़वाल
विश्वविद्यालय शिक्षक संघ तथा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, शामिल थी। उनके उनके प्रत्यावेदनों व संयुक्त मोगों को प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा उक्त 24 मार्च के आदेश को समाप्त करने व वापस लेने का
कोई कार्यवाही नहीं की गयी।
उन्होंने बताया कि इसी बीच हरिद्वार के एक महाविद्यालय के उच्च न्यायालय नैनीताल में दायर वाद में हुए निर्णय के अनुसार उक्त 24 मार्च के मादेश को दो जुलाई 2021 को निरस्त कर दिया गया। किन्तु शिक्षकों के पति उदासीन रवैया अपनाते हुए प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग ने उच्च शिक्षा निदेशालय के आदेश पर अमल करने में 27 दिन व्यतीत कर दिए। 24 मार्च के आदेश पर विभाग ने 29 जुलाई 2021 को अपने एक गोल-मोल आदेश से पदोन्नतियों पर लगी रोक हटा दी।
उन्होंने कहा कि इस 29 जुलाई के आदेश में यूजीसी रेगुलेशन-2010 से सम्बंधित पदोन्नतिओं, जिनकी अन्तिम अवधि 17 जुलाई 2021 थी, इनके विषय में कुछ भी निर्णय नहीं लिया गया। ना ही आज तक किसी भी प्रकार से लिखित सूचना दी गई। वहीं, महासंघ की ओर से पूर्व में भी इसकी मांग की जा चुकी है। महासंघ की पुनः मांग है कि यूजीसी रेगुलेशन- 2010 के अन्तर्गत 17 जुलाई 2021 तक या इससे पूर्व जिन महाविद्यालयों में शिक्षकों ने
अपनी पदोन्नति के संबंध में प्रपत्र जमा कर दिए थे। तथा अन्य ने भी सभी मामले, जिनमें पदोन्नतिनों की तिथि 17 जुलाई तक थी, सभी राजकीय व सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के शिक्षकों को पदोन्नति के अवसर प्रदान किए जाएं।
डॉ. प्रशांत सिंह ने कहा कि यह मांग इसलिए भी जरूरी है कि प्रदेश के शिक्षा विभाग ने भारत सरकार के यूजीजी रेगुलेशन 2010 को लागू करने के तीन साल बाद प्रदेश में अंगीकार किया। तथा एक वर्ष से अधिक कोविड-19 के कारण करीब पांच माह तक शिक्षा विभाग, निदेशालय द्वारा लगाई गई अनावश्यक रोक के कारण शिक्षक अपने पदोन्नती लाभों से वंचित रहे। यदि उच्च न्यायालय के दो जुलाई 2021 के आदेश पर प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग की ओर से साकारात्मक कदम उठाया जाता तो 17 जुलाई 2021 की तिथि से पूर्व ही प्रदेश में सभी महाविद्यालयों के शिक्षक यूजीसी रेगुलेशन-2010 के अन्तर्गत अपने पदोन्नति प्रकरणों का निस्तारण कर पाते। इसके साथ ही उन्हें उनका पदनाम तथा वित्तीय लाभ मिल जाता। अब पदोन्नति नहीं होने से उन्हें वित्तीय नुकसान उठाना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि देश के अनेक विश्वविद्यालयों सहित प्रदेश के जीबी पंत कृषि एवं प्रद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर में 17 जुलाई 2021 के पश्चचात भी यूजीसी रेगुलेशन 2010 के अंतर्गत उक्त अवधि से पहले के पदोन्नति प्रकरण पर कार्यवाही गतिमान है। वहां शिक्षक हित को सर्वोपरि रखा गया। अतः प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग की ओर से एक जनवरी 2006 से 17 जुलाई, 2021 तक की अवधि के लिंबित पदोन्नति प्रकरणों पर शिक्षक हित में विचार
कर शीघ्र निर्णय लेकर सूचित करने से संपूर्ण गढ़वाल मंडल व कुमाऊं मंडल में अवस्थित महाविद्यालयों के शिक्षक न सिर्फ लाभांवित होंगे, बल्कि उनकी कार्यकुशलता तथा उत्साह में भी इजाफा होगा। साथ ही प्रदेश सरकार के प्रति उनके दृष्टिकोण में भी साकारात्मक बदलाव आएगा।
उन्होंने कहा कि इसी क्रम में राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ उत्तराखंड ने अपने मांग पत्र में बताया कि उच्च न्यायालय के आदेश के क्रम में उच्च शिक्षा निदेशालय ने 29 जुलाई 2021 को जारी पत्र में शिक्षकों की पदोन्नति पर लगी रोक को हटाते हुए लिखा कि यूजीसी रेगुलेशन 2018 के अंतर्गत पदोन्नति प्रकरणों के लिए दिशा निर्देश पृथक से जारी किए जाएंगे। इसके पश्चात ऐसे मामलों पर कारवाही होगी। इसके बाद भी आज तक प्रदेश के ना तो उच्च शिक्षा विभाग और न ही उच्च शिक्षा निदेशालय ने ऐसे कोई भी दिशा निर्देश जारी किए। जिस कारण चार और माह बीत गए।
उन्होंने कहा कि इसी के साथ प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग ने 25 अक्टूबर 2021 को यूजीसी रेगुलेशन 2018 के प्रावधानों के अनुसार राजकीय एवं अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में करियर एडवांसमेंट स्कीम के अंतर्गत प्रोन्नति के लिए- छानबीन सह मूल्यांकन समिति, में संशोधन के संबंध में शासनादेश जारी किया, लेकिन आज तक की तिथि में प्रदेश के उच्च शिक्षा निदेशालय द्वारा उक्त आदेश को लागू करने के संबंध में कार्यकारी आदेश ही जारी नहीं किए गए हैं।
उन्होंने कहा कि इसी प्रकार अघोषित रूप से, लेकिन प्रभावी रूप से प्रदेश के राजकीय व राजकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में शिक्षकों को यूजीसी रेगुलेशन 2018 के अंतर्गत भी पदोन्नतियों से वंचित किए जाने की कार्रवाही गतिमान है। इससे शिक्षकों में निराशा और आक्रोश है। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा निदेशालय की ओर से यूजीसी रेगुलेशन 2018 की पदोन्नतियों के लिए दिशा निर्देश, एक अधिकार प्राप्त समिति की ओर से संस्तुति के पश्चात अनुमोदन के लिए प्राप्त हो चुके हैं। इसके बावजूद भी लंबे समय से इन लंबित दिशा निर्देशों का न तो निदेशालय स्तर पर अनुमोदन किया गया और न ही शिक्षकों की पदोन्नति के संबंध में कोई सुध ली जा रही है। राजकीय महाविद्यालयों में एक भी शिक्षक को यूजीसी रेगुलेशन 2018 के अंतर्गत पदोन्नति का लाभ नहीं दिया जा सका है।
एसे में उन्होंने राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ की ओर से मांग दोहराई कि प्रदेश के शासकीय व अशासकीय महाविद्यालयों के शिक्षकों के व्यापक हित में 25 अक्टूबर के यूजीसी रेगुलेशन 2018 से संबंधित शासनादेश को लागू करने के आदेश सहित इन रेगुलेशन के संबंध में जनवरी 2021 से लंबित पदोन्नतियों संबंधी दिशा निर्देश प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग व निदेशालय को जारी किए जाएं। ताकि शिक्षकों के तीन साल से लंबित पदोन्नति के प्रकरणों का समाधान हो सके।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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