खजाने से भरे इस ग्रह के सफर की नासा ने जारी की नई तारीख, शनि ग्रह के सात छल्लों का उजागर हुआ रहस्य
ब्रह्मांड की विशेषताओं को के लकर वैज्ञानिक जितने अध्ययन करते हैं, उसके साथ ही नए नए रहस्य सामने आते हैं। एक क्षुद्र ग्रह ऐसा भी है, जहां सोने, चांदी, लोहा और जस्ता जैसी बहुमूल्य धातुओं का भंडार है। इस क्षुद्रग्रह का नाम साइकी है। एस्टरॉइड 16Psyche पर अमेरिकी अंतरिक्ष ऐजेंसी नासा ने अपने मिशन को शुरू करने की तारीख को फिलहाल स्थगित कर दिया। साथ ही नए सिरे से इसकी तारीख तय की है। ऐसा क्यों किया गया फिलहाल तो ये साफ नहीं, लेकिन नासा ने मिशन को लांच करने के लिए नई तारीख निर्धारित कर दी है। अब यह मिशन 12 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 46 मिनट पर लांच होगा। ये करीब छह साल का सफर पूरा करके 2029 में साइकी क्षुद्रग्रह पर पहुंचेगा। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह ब्रह्मांड के सबसे अमीर क्षुद्रग्रहों में से एक है, यदि धरती के सभी लोगों में इसकी बहुमूल्य संपदा को बांट दिया जाए तो दुनिया का हर शख्स अरबपति हो सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
रॉकेट का हो रहा है अंतिम परीक्षण
नासा आगामी पांच अक्टूबर को एलन मस्क के नेतृत्व वाली स्पेस X के माध्यम से साइकी मिशन लांच करने वाला था। इसके लिए पूरी तैयारी कर ली गई थी, लेकिन एन वक्त पर नासा ने इस मिशन को एक सप्ताह के लिए टाल दिया। इसके लिए नासा की ओर से तर्क दिया गया है कि मिशन को लांच करने से पहले रॉकेट के थ्रस्टर्स को नियंत्रित करने वाले मापदंडों को रीचेक किया जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
1852 में हुई थी साइकी की खोज
नासा की ओर से जिस साइकी क्षुद्रग्रह पर मिशन को भेजा जा रहा है, इसकी खोज 1852 में 16 वें क्षुद्रग्रह के रूप में की गई थी। इसका नाम प्राचीन ग्रीक पौराणिक कथाओं में प्रचलित आत्मा की देवी के नाम पर साइकी रखा गया है। चूंकि यह 16 वां क्षुद्रग्रह है, इसीलिए इसका पूरा नाम 16-साइकी है। एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के मुताबिक इस क्षुद्रग्रह को इटालियन खगोलशास्त्री एनीबेल डी गैसपारिस ने खोजा था। इस क्षुद्रग्रह का व्यास करीब 226 किलोमीटर है, वहीं क्षेत्रफल 165800 किलोमीटर हो सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नासा की ओर से भेजा जा रहा मिशन साइकी 6 साल बाद यानी 2029 में इस क्षुद्रग्रह पर पहुंचेगा। नासा के वैज्ञानिक इसकी कोर का अध्ययन करेंगे, ताकि ये पता लगाया जा सके कि अरबों साल पहले धरती की संरचना कैसे हुई थी। वैज्ञानिक ये समझने का प्रयास करेंगे की इस क्षुद्रग्रह के कोर की गतिशील प्रक्रियाएं क्या हैं जो चट्रटानों का निर्माण करती हैं। चूंकि धरती बहुत बड़ा ग्रह है और इसकी कोर वैज्ञानिकों की पहुंच से काफी दूर है। इसीलिए इस रिसर्च के लिए 16 साइकी को चुना गया है। क्योंकि इसकी संरचना धरती की संरचना से काफी मेल खाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
फाल्कन रॉकेट से होगी लांचिंग
साइकी मिशन को फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से लांच किया जाएगा। इसकी तैयारियों की समीक्षा करने के लिए स्पेस एक्स और नासा के वैज्ञानिकों ने हाल ही में मुलाकात की थी और मिशन को लेकर नया अपडेट जारी किया था। इसी दौरान इस बात का ऐलान किया गया था कि 5 अक्टूबर को लांच होने वाले मिशन को एक सप्ताह के लिए आगे बढ़ाया जाएगा। इसके लिए अंतिम परीक्षण किया जा रहा है। ताकि इस लंबे मिशन के दौरान किसी भी तरह की कोई समस्या न आए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
शनि ग्रह के विशाल छल्लों के रहस्य का खुलासा
शनि ग्रह के विशाल छल्ले सदियों से ही पूरी दुनिया के लिए रहस्य बने रहे हैं। अब एक ताजा शोध में खुलासा हुआ है कि शनि ग्रह के चक्कर लगाने वाले दो चंद्रमा के बीच टक्कर से इन छल्लों का निर्माण हुआ। ये दोनों ही चंद्रमा बर्फ से ढंके हुए थे। शनि ग्रह हमेशा से ही ब्रह्मांड में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र रहा है। इसकी एक प्रमुख वजह उसके 7 छल्ले हैं, जो शनि ग्रह को चारों ओर से घेरे हुए हैं। यही नहीं शनि ग्रह के पास चंद्रमा की एक पूरी फौज है। बताया जाता है कि शनि ग्रह के कुल 245 चंद्रमा हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बृहस्पति के बाद सबसे बड़ा ग्रह
शनि ग्रह बृहस्पति के बाद सबसे बड़ा है। ताजा शोध में अब शनि ग्रह के छल्लों के रहस्य का जवाब मिल गया है। यह शोध दर्जनों कंप्यूटर पर सिमुलेशन के बाद तैयार किया गया है। इसमें नासा के कैसिनी मिशन के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया था। कैसिनी स्पेसक्राफ्ट ने साल 2004 से लेकर 2017 के बीच शनि ग्रह का चक्कर लगाया था। नासा के इस प्रोब ने पाया कि जिस मैटेरियल से यह छल्ला बना है, उसमें बर्फ के कण मौजूद हैं और वे बहुत प्राचीन हैं। उन्हें धूल ने प्रदूषित नहीं किया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दो चंद्रमाओं की टक्कर से बने ये छल्ले
शनि ग्रह के इन छल्लों की सबसे पहले खोज गैलिलियो ने साल 1610 में की थी। कैसिनी के डेटा से पता चला है कि शनि ग्रह के ये छल्ले अभी बहुत कम समय पहले बने हैं। इनकी उम्र कुछ लाख साल हो सकती है। हमारे सोल सिस्टम की बात करें तो इसका इतिहास 4.5 अरब साल पुराना है। इस शोध में नासा और ब्रिटेन के दरहम यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ शामिल हैं। इन वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि हाल के समय में दो चंद्रमाओं के बीच टक्कर के बाद शनि ग्रह के ये छल्ले बने। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस तरह हुआ छल्लों का निर्माण
इन वैज्ञानिकों ने शक्तिशाली सुपरकम्यूटर की मदद से इस टक्कर की संभावना जताई। उन्होंने कहा कि ये दोनों ही चंद्रमा वर्तमान समय में मौजूद दिओने और रिया की तरह विशाल थे। उन्होंने कहा कि बर्फ से भरे चंद्रमा की टक्कर से काफी सारा मलबा शनि ग्रह की तरफ गया और उससे छल्ले का निर्माण हुआ। ये छल्ले हालांकि शुद्ध रूप से बर्फ से बने हैं, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि शनि ग्रह के बर्फ से ढके चांद में कुछ चट्टानें भी थीं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।