शरद पूर्णिमा में चांद की किरणों से बरस रहाअमृत, उठाइए इसका फायदा, जानिए कहानी
शरद पूर्णिमा जिसे आश्विन पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा और कौमुदी व्रत आदि कई नामों से जाना जाता है। इस बार शरद पूर्णिमा 30 अक्तूबर यानी आज से आरंभ हो गई। सभी पूर्णिमा में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। शरद पूर्णिमा पर ही चांद अपनी सोलह कलाओं में होता है। यहां इस दिन की खास बातें बता रहे हैं डॉ. आचार्य सुशांत राज।
चांद की किरणें अमृत समान, चांद की रोशनी में रखें खीर
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चांद से निकलने वाले किरणें अमृत की तरह होती है। शरद पूर्णिमा वाली रात को खीर बनाकर चांद की रोशनी में पूरी रात रखा जाता है। ऐसे मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणें जब पूरी रात खीर पर पड़ती हैं तो तो खीर में विशेष औषधिगुण आ जाती है। हिंदू धर्म में हर महीने पड़ने वाली पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के बहुत ही करीब आ जाता है। इस वजह से चांद की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। शरद पूर्णिमा के दिन से स्नान और व्रत आदि प्रारंभ हो जाते हैं। शरद पूर्णिमा पर रात को निकलने वाली चांद की किरणें बहुत ही लाभकारी होती है।
ये है मान्यता
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को पृथ्वी पर मां लक्ष्मी का आगमन होता है। वे घर-घर जाकर सबको वरदान देती हैं, किन्तु जो लोग दरवाजा बंद करके सो रहे होते हैं। वहां से लक्ष्मी जी दरवाजे से ही वापस चली जाती हैं। तभी शास्त्रों में इस पूर्णिमा कोजागर व्रत, यानी कौन जाग रहा है व्रत भी कहते हैं। इस दिन की लक्ष्मी पूजा सभी कर्जों से मुक्ति दिलाती हैं। अतः शरदपूर्णिमा को कर्ज मुक्ति पूर्णिमा भी कहते हैं।
समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से चांद भी एक
इस बार शरद पूर्णिमा यानी आश्विन पूर्णिमा 30 अक्टूबर को शाम 5.49 बजे से शुरू हो गई है। जो 31 अक्टूबर को रात 8.18 बजे तक रहेगी। ऐसे में शरद पूर्णिमा का महोत्सव 30 अक्टूबर को और व्रत 31 अक्टूबर को रहेगा। पूर्णिमा का चांद सामान्य से ज्यादा बड़ा दिखाई देगा। इसे महापूर्णिमा भी कहा जाता है। इस समय गुरु धनु में और शनि मकर में स्वयं राशि पर रहेंगे। सूर्य, तुला, शुक्र कन्या राशि में नीच राशि पर रहेंगे। ऐसे संयोग में पूर्णिमा की रात को माता लक्ष्मी, चंद्रमा और देवराज इंद्र का पूजन रात में करने से दरिद्रता दूर होगी। समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक चंद्रमा को मानते हैं।
शरद पूर्णिमा शुभ मुहूर्त 2020
पूर्णिमा आरम्भ- 30 अक्टूबर 17:47:55 से पूर्णिमा शुरू
पूर्णिमा समाप्त- 31 अक्टूबर को 20:21:07 पर पूर्णिमा समाप्त
खीर का भोग लगाएं
इस दिन भगवान चंद्रदेव की पूजा गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबुल, सुपारी से की जाती है। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा काे अर्घ्य देकर और पूजन के बाद चंद्रमा को खीर का भोग लगाना चाहिए। रात 10 बजे से 12 बजे तक चंद्रमा की किरणों का तेज अधिक रहता है।
इसलिए उपयोगी है खीर
खीर के बर्तन को खुले आसमान में रखना फलदायी होता है, इससे खीर में औषधीय गुण आ जाते हैं और वह मन, मष्तिक व शरीर के लिए अत्यंत उपयोगी मानी जाती है। खीर को अगले दिन ग्रहण करने से घर में सुख-शांति होती है और बीमारियों से छुटकारा मिलता है। शरद पूर्णिमा की रात में चांदनी में रखे गए खीर का प्रसाद ग्रहण करने का विधान है। लोग रात को खीर बना कर विष्णु को भोग लगाते हैं।
इसी दिन श्रीकृष्ण ने रचाया था महारास
शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को कहते हैं। पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।
ये है कथा
एक साहुकार के दो पुत्रियाँ थी। दोनो पुत्रियाँ पूर्णिमा का व्रत रखती थी। परन्तु बडी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी। जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का व्रत पूरा विधिपुर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है।
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लडका हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया। उसने लडके को पीढे पर लिटाकर ऊपर से पकडा ढक दिया। फिर बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया। बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा।
बडी बहन बोली- तू मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली- यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।
पूजा का विधान
इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और जितेन्द्रिय भाव से रहे। धनवान व्यक्ति ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें। तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए 100 दीपक जलाए। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें।
जब एक प्रहर (३ घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक गरीबों को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएं और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें। तदनंतर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा किसी दीन दुःखी को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है। जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूंगी।
इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।

आचार्य का परिचय
नाम डॉ. आचार्य सुशांत राज
इंद्रेश्वर शिव मंदिर व नवग्रह शिव मंदिर
डांडी गढ़ी कैंट, निकट पोस्ट आफिस, देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।