उत्तरकाशी में मनाई गई मंगसीर की बग्वाल, समापन पर हुई रस्साकसी प्रतियोगिता, जानिए त्योहार के बारे में

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के मुख्यालय बाड़ाहाट में मंगसीर बग्वाल धूमधाम से मनाई गई। तीन दिन चले इस उत्सव का समापन आज रस्साकसी प्रतियोगिता के साथ किया गया। अनघा फाउंडेशन उत्तरकाशी की ओर से कार्यक्रम का आयोजन किया गया। समापन समारोह में गंगोत्री क्षेत्र के पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण बतौर मुख्य अतिथि सम्मिलित हुए। कार्यक्रम मे पुलिस उपाधीक्षक उत्तरकाशी प्रशांत कुमार विशिष्ट अतिथि के रूप मे मौजूद रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आयोजन के तहत पहले दिन कंडार देवता मंदिर से रासौ तांदी नृत्य करते हुए सुंदर झांकियां निकाली गई। वहीं देर सांय को रामलीला मैदान में देवदार व चीड़ की लकड़ी से बनाए भैलो को जलाकर लोगों ने मंगसीर की बग्वाल का आनंद लिया। अनघा माउंटेन एसोसिएशन की ओर से आयोजित मंगसीर बग्वाल मे शामिल हुए गंगोत्री क्षेत्र के पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण ने फाउंडेशन के संयोजक अजय पुरी सहित पूरी आयोजक टीम को अपनी पौराणिक लोक संस्कृति के संवर्धन मे इनके अभूतपूर्व प्रयासों की प्रशंसा की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बग्वाल कार्यक्रम के पहले दिन एसोसिएशन की ओर से बाल बग्वाल के रूप मे बच्चो के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। वहीं दूसरे दिन महिला बग्वाल के रूप मे महिलाओं ने अपने पारंपरिक गणवेश में रासौ तांदी व छोल्या नृत्य किया। साथ ही रस्साकस्सी प्रतियोगता मे महिलाओं की भागीदारी सराहनीय रही। वहीं आज कार्यक्रम के तीसरे दिन समापन पर पुरुष रस्सकसी का आयोजन आकर्षण का मुख्य केंद्र रहा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस मौके पर अनघा फाउंडेशन के संयोजक अजय पुरी, मालगुजार शैलेन्द्र नौटियाल, अध्यक्ष राघवेंद्र उनियाल, प्रताप बिष्ट, शहर कांग्रेस अध्यक्ष अजीत गुसाईं, निवर्तमान सभाषद महावीर चौहान, पूर्व प्रधान अनिल रावत, प्रताप प्रकाश पंवार सहित अन्य मौजूद रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसलिए मनाई जाती है मंगसीर बग्वाल
जनपद उत्तरक़ाशी में दीपावली के एक माह बाद मनाए जाने वाली मंगसीर की बग्वाल उत्तराखंड के वीर भड़ो माधो सिंह भंडारी और लोदी रीखोला के तिब्बत युद्ध जीत कर आने की खुशी में मनाई जाती है। सन 1632 में गढ़वाल नरेश महिपत शाह के शासनकाल मे गढ़वाल और तिब्बत सेना के बीच युद्ध हुआ था। गढ़वाल की सेना का नेतृत्व माधो सिंह भंडारी और लोदी रीखोला ने किया था। गढ़वाल सेना और गढ़वाल के वीर सेनापति युद्ध मे फंसे होने के कारण गढ़वाल में मुख्य दीवाली नही मनाई गई। कार्तिक एकादशी को इनके जीत की खुशी में या वापस आने की खुशी में इगाश मनाई गई। इनके वापस अपने घर मलेथा आने की खुशी में प्रतिवर्ष मंगसीर बग्वाल मनाई जाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ऐसे मनाते हैं मंगसीर बग्वाल
पांच दिन तक धूम धाम से मनाये जाने वाला यह त्यौहार संस्कृति संपन्न त्यौहार होता है। मंगसीर बग्वाल के नाम से यह पर्व उत्तरकाशी के गंगा घाटी, जौनपुर, बूढ़ा केदार आदि क्षेत्रों में मनाया जाता है। इसे बाड़ाहाट की बग्वाल के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व मुख्यतः पांच दिन तक मानाया जाता है। इस त्योहार में घरों में पकवान बनाए जाते हैं। साथ ही भैलो खेला जाता है। भैलो चीड़ की लीसायुक्त लकड़ी से बनाया जाता है। यह लकड़ी बहुत ज्वलनशील होती है। इसकी लकड़ियों को छिल्ला या छिलके कहा जाता है। जहां चीड़ के जंगल न हों, वहां लोग देवदार, भीमल अथवा हींसर की लकड़ी आदि से भी भैलो बनाते हैं। इन लकड़ियों के छोटे-छोटे टुकड़ों को एक साथ रस्सी अथवा जंगली बेलों से बांधा जाता है। फिर इसे जलाकर घुमाते हैं। इसे ही भैलो खेलना कहा जाता है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।