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August 23, 2025

70 साल तक लोहे के फेफड़े से गुजारी जिंदगी, की पढ़ाई और लिखी किताब, अब हुआ निधन, पढ़िए संघर्ष की कहानी

सात दशक तक लोहे के फेफड़े की मदद में जिंदगी गुजारने वाले पोलियो पॉल’ के नाम से मशहूर पॉल एलेक्जेंडर ने 78 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। कम उम्र में पोलियो हो जाने की वजह से आगे का जीवन गुजारने के लिए करीब 7 दशक तक उन्हें आयरन लंग यानी लोहे के फेफड़े की मदद लेनी पड़ी थी। मार्च 2023 में उन्हें गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की तरफ से दुनिया में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले आयरन फेफड़े का मरीज घोषित किया गया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मौत की दोस्त ने की पुष्टि
पॉल अलेक्जेंडर के खास दोस्त डैनियल स्पिंक्स ने बताया कि पॉल की डलास हॉस्पिटल में मृत्यु हो गई है। कुछ दिन पहले ही उन्हें कोविड हुआ था जिसके बाद उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया था। फिलहाल उनकी मौत का स्पष्ट कारण नहीं बताया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आयरन लंग्स के कारण आए चर्चा में
पॉल अलेक्जेंडर की मौत के बाद आयरन लंग्स को लेकर खूब चर्चा हो रही है। चिकित्सा और इंजीनियरिंग क्षेत्रों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे- कैबिनेट रेस्पिरेटर, टैंक रेस्पिरेटर, नेगेटिव प्रेशर वेंटिलेटर और अन्य। लगभग एक सदी पहले इसके निर्माण के बाद से यह एक जीवनरक्षक मशीन की तरह काम कर रहा है। इसे आयरन लंग्स के नाम से जाना जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

छह साल की उम्र जरूरत पड़ी लोहे के फेफड़े की
ये बात 1940 की है जब अमेरिका में पोलियो का कहर था। यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक उस वर्ष अमेरिका में 21,000 से अधिक पोलियो के मामले दर्ज किए गए थे। महामारी के उस दौर में 1946 में एक बच्चे का जन्म हुआ। नाम पॉल एलेक्जेंडर। 1952 में महज 6 साल की उम्र में ही पोलियो की चपेट से पॉल भी नहीं बच पाए। कम उम्र में पोलियो हो जाने की वजह से आगे का जीवन गुजारने के लिए करीब 7 दशक तक उन्हें आयरन लंग यानी लोहे के फेफड़े की मदद लेनी पड़ी। कुछ दिनों पहले ही पोलियो पॉल के नाम से मशहूर पॉल एलेक्जेंडर ने 78 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इसलिए लेनी पड़ी लोहे के फेफड़ों की मदद
अमेरिका से ताल्लुक रखने वाले पॉल अलेक्जेंडर की बिमारी का पता लगने के बाद उनके माता पिता उन्हें टेक्सास स्थित अस्पताल में ले गए। यहां इलाज के दौरान पता चला कि उनका फेफड़ा पूरी तरह से खराब हो गया है। हाल ये हो गई थी कि 1952 में उनके गर्दन के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। इसकी वजह से उन्हें सांस लेने में परेशानी होने लगीष पॉल की स्थिति को देख डॉक्टरों ने पहले तो कहा कि उनकी जान नहीं बच पाएगी, मगर तभी एक दूसरे डॉक्टर ने उनके लिए लोहे की मशीन से आधुनिक लंग का अविष्कार किया। पॉल के शरीर का पूरा हिस्सा मशीन में हुआ करता था, जबकि महज उनका चेहरा बाहर दिखाई देता था। मार्च 2023 में, उन्हें गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की तरफ से दुनिया में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले आयरन फेफड़े का मरीज घोषित किया गया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

हालात के सामने नहीं झुके, किताब भी लिखी
पॉल की महत्वाकांक्षाओं ने उनकी हालात के सामने घुटने नहीं टेके। उन्होंने साँस लेने की तकनीक सीखी, जिससे उन्हें एक समय में कुछ घंटों के लिए उस मशीन को छोड़ने की अनुमति मिलती थी। उन्होंने इस दौरान अपनी ग्रैजुएशन पूरी की। कानून की डिग्री हासिल की और 30 सालों तक कोर्ट रूम वकील के रूप में काम किया। आप हैरान होंगे, लेकिन पॉल ने अपनी आत्मकथा भी लिखी। किताब का नाम है- थ्री मिनट्स फॉर ए डॉग: माई लाइफ इन ए आयरन लंग। वो दूसरी किताब पर भी काम कर रहे थे। पॉल ने कीबोर्ड पर मुंह में रखी प्लास्टिक की छड़ी से जुड़े पेन का इस्तेमाल करके अपनी लेखन प्रक्रिया का प्रदर्शन किया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पोलियो वैक्सीनेशन के थे समर्थक
इस साल जनवरी में पॉल ने “पोलियो पॉल” टिकटॉक अकाउंट बनाया था, जहां वो लोहे के फेफड़ों में जीवलन गुजारना कैसा होता है बताते थे। उनकी मृत्यु के समय उनके 300,000 फॉलोअर्स और 4.5 मिलियन से ज्यादा लाइक्स थे। पॉल पोलियो टीकाकरण के भी समर्थक थे। अपने पहले टिकटॉक वीडियो में उन्होंने कहा था कि लाखों बच्चे पोलियो से सुरक्षित नहीं हैं। इससे पहले कि कोई और महामारी फैले, उन्हें ऐसा करना ही होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आयरन लंग्स के बारे में
नाम सुनने में थोड़ा डरावना लग सकता है देखने में तो यह बिल्कुल ताबूत जैसा मशीन दिखता है। आयरन लंग्स दरअसल स्टील से बना होता है। उनका सिर कक्ष के बाहर रहा, जबकि एक रबर कॉलर लग रहता है। इसके जरिए मरीज का सिर बाहर की तरफ निकला होता है। यह मशीन कुछ लोगों के लिए किसी जादू से कम नहीं है। 1927 में आयरन फेफड़े विकसित किया गया था और पहली बार 1928 में एक नैदानिक ​​सेटिंग में उपयोग किया गया था। इससे एक पीड़ित छोटी लड़की की जान बचाई गई और जल्द ही कई हजारों अन्य लोगों की जान बचाई गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इसका आविष्कार फिलिप ड्रिंकर ने लुईस अगासीज़ शॉ के साथ हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में किया था। ड्रिंकर विशेष रूप से कोयला-गैस विषाक्तता के लिए उपचारों का अध्ययन कर रहे थे। उन्हें एहसास हुआ कि आयरन लंग्स की मदद से जिन लोगों को सांस लेने की तकलीफ हो रही है या जिनका फेफड़ा खराब हो रह है, उनकी भी मदद की जा सकती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ऐसे काम करती है ये मशीन
पहला आयरन फेफड़ा एक इलेक्ट्रिक मोटर और कुछ वैक्यूम क्लीनर से वायु पंप के जरिये चलाया जाता था। यह एक वेंटिलेशन (ईएनपीवी) के जरिये काम करती है। यह ऐसा बनाया गया है कि मरीज के लंग्स तक आराम से हवा पहुंच जाएगी और मरीज को जरूरत के हिसाब से ऑक्सीजन मिल जाएगी। भले ही मरीज की मांसपेशियां ऐसा न कर पाए। इस मशीन के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि यह मशीन के अंदर पंप को चालू रखती है और जिसके जरिये मरीज जिंदा रहता है।
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Bhanu Prakash

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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