कवि ललित मोहन गहतोड़ी की कलम से कुमाऊंनी गीत-बाखुलि बांजि बांजि
बाखुलि बांजि बांजि…
ओखुली माटा पाटा भरी गई छना
बाखुली बांजि बांजि पड़ि रई छना
देलि आंगन नानतिना
हस्नि खेलनि रूछि
घर घरै घी दूदै बहार बनि रूछि
कां ग्याना भला भला स्वाना स्वाना दिना
बाखुली बांजि बांजि…
ओखुली माटा पाटा …
द्वारों में कभ्भैलै
तालो नै लटकछ्यो
आंगन बीच उपजियो दूबै नै देखिछयो
कुरमुरा आब उनि जानि लागन्यान
बाखुली बांजि बांजि…
ओखुली माटा पाटा …
तलि बाखुली मलि बाखुली
बीचैकि बाखुली
हरा भरा गड़ाभिड़ा मिलिजुलि काटछि
पड़मा निपटच्छयो कामकाज खना
बाखुली बांजि बांजि…
ओखुली माटा पाटा…
पलायन गौं गौं को
थमनी नै रयो
गौं मान्सा गौं पनै रूकनि नै रयो
परदेश बसि ग्याना सब भाई बैना
बाखुली बांजि बांजि…
ओखुली माटा पाटा…
कवि का परिचय
नाम-ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।