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November 22, 2024

उत्तराखंड का सबसे विशाल मंदिर केदारनाथ, शिलाखंडों को जोड़कर किया गया निर्मित

करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र और विश्व प्रसिद्ध मंदिर केदारनाथ चार धामों में से एक धाम है। यह हरिद्वार से 252 किलोमीटर की दूरी पर 11827 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। गौरीकुंड से 14 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर यहाँ पहुँचा जाता था। वर्ष 2013 में आई आपदा के बाद यह मार्ग और लंबा हो गया है। अब ये दूरी करीब 21 किलोमीटर हो गई। यहा उत्तराखंड का सबसे विशाल मन्दिर है। जो तराशे गये पत्थरों के विशाल शिलाखंडो को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग के हैं। मंदिर लगभग छ: फीट ऊँचे चबूतरे पर निर्मित है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है।
नौवीं शताब्दी के आसपास हुआ निर्माण
गर्भगृह के अभिलेख से और प्रवेश द्वार पर कत्यूरी काल की कला-शिल्प वाली मूर्तियों
के अंकन से यह प्रतीत होता है कि यह मंदिर आठवीं या नौवीं शताब्दी का है। मन्दिर के गर्भगृह में अर्चना स्थल के पास चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तम्भ हैं। जहाँ से होकर प्रदक्षिणा होती है। यह अर्धा चौकोर और भीतर से खोखली है। सभा मंडप विशाल एवं भव्य है। इसकी छत चार विशाल पाषाण स्तम्भों पर आधारित है। श्री शंकराचार्य एक प्रसिद्ध हिन्दू सन्त थे। जिन्होंने अद्वैत वेदान्त के ज्ञान के प्रसार के लिये दूर-दूर तक यात्राये कीं। ऐसा विश्वास है कि इन्होंने ही केदारनाथ मन्दिर को 8वीं शताब्दी में पुनर्निर्मित किया और चारों मठों की स्थापना की।


केदारखंड में श्रेष्ठता का उल्लेख
केदारखंड में इस मन्दिर की श्रेष्ठता के बारे में उल्लेख है। केदारनाथ धाम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से हिन्दू जगत का एक पावन तीर्थ स्थल है। केदारनाथ क्षेत्र का हिमशिखर 22044 फीट तथा दो अन्य शिखर भारत खंड 22844 फीट तथा खारचा खंड 21695 फीट ऊँचे हैं। ठीक इन्हीं श्रृंगों के नीचे केदारनाथ का पावन विशाल मन्दिर पर्वतीय साधारण सम धरातत पर विद्यमान है।
शिवपुराण में ये है कथा
केदारनाथ पावन मंदिर के शिवलिंग के विषय में शिवपुराण में उल्लेख है कि महाभारत के युद्ध समाप्त होने के पश्चात् भगवान वेदव्यास ने पांडवों को केदारधाम में शिव के दर्शन के लिए गमन करने की आज्ञा प्रदान की थी। ताकि उनको गोत्र हत्या एवं ब्रह्महत्या के कलंक से मुक्ति मिल जाये। जब पांडव परिवार केदारधाम पहुँचा तो शिव भगवान उन्हें गोत्र हत्या का दोषी जानकर महिष रूप में भूमिगत होने लगे। तभी भीम ने महिष के पृष्ठ भाग को बलपूर्वक पकड़ लिया। पांडवों की श्रद्धा एवं भक्तिभाव के कारण भगवान शिव ने उनको दर्शन दिए। भीम द्वारा पकड़े गाए पृष्ठ भाग की पूजा का आदेश देकर शिव अन्तध्यान हो गये। पृष्ठ भाग जो भीम ने पकड़ा था, वह शिला रूप बन गया। जिसकी पूजा अर्चना परम्परागत ढंग से प्राचीन काल से होती आ रही है।
ये भी है कथा
जनश्रुति यह भी है कि भगवान शिव का महिषाकार अग्रभाग जो पृथ्वी में प्रवेश कर गया था, वह शरीर से अलग होकर नेपाल देश में प्रकट हुआ। जो वहाँ पशुपतिनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ और शेष शिव भगवान के अंग मध्य हिमालय गढवाल के चार अन्य पावन धामों में प्रकट हुए। भुजा, तुंगनाथ नामक स्थान में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमहेश्वर में तथा जटा कल्पेश्वर में पूजे जाते हैं। इन्हीं पावन धामों को पंचकेदार के नाम से पुकारा जाता है।
यहां प्रवाहित की गई थी महात्मा गांधी की अस्थियां
केदारनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर मंदाकिनी के अतिरिक्त क्षीर गंगा और सरस्वती आदि नदियों का संगम माना जाता है। केदारनाथ मन्दिर के पीछे शिखर पर एक लम्बी श्वेत जलधारा दृष्टिगत होती है। इसे केदारनाथ मन्दिर से कुछ दूरी पर मंदाकिनी के अतिरिक्त क्षीर गंगा, मधु गंगा और सरस्वती आदि नदियों का स्वर्गारोहिणी के नाम से पुकारा जाता है। कहा जाता है कि वहीं से पांडव यहीं से स्वर्ग सिधारे थे। यहीं पर ब्रह्मकूट पर्वत शिखर है, जहाँ पर भगवान शिव की जटा के तीन फेरे और शिव पार्वती हिमाकृति में दृष्टिगोचर होते हैं। केदारधाम से लगभग पाँच किलोमीटर दूरी पर चोरीबाड़ा ताल है। जिसे सन् 1948 से गाँधी ताल के नाम से पुकारते हैं। यहाँ राष्ट्रपति महात्मा गाँधी की अस्थियाँ प्रवाहित की गयी थी।


आदि गुरु शंकराचार्य का यहीं हुआ था देहांत
केदारनाथ में आदि गुरु शंकराचार्य की मूर्ति स्थापित है। वैष्णव भक्ति की ज्ञानधारा, वेदान्त के प्रचार-प्रसार करते हुए आदि गुरू शंकराचार्य का वहीं देहान्त हुआ था। पाँच किलोमीटर दूरी पर स्थित बासुकि ताल अपने पारदर्शी जल और उसमें डूबते-उतराते हिमखण्डों के अद्भुत दृश्यों के लिए विख्यात है। इसके अतिरिक्त गुग्गुल कुण्ड, भीम गुफा तथा भीमशिला भी दर्शनीय स्थल हैं। लगभग आधा किलोमीटर दूरी पर भैरोनाथ मन्दिर है। जहाँ केवल केदारनाथ के पट खुलने और बन्द होने के दिन ही पूजन किया जाता है। भैरव का स्थान उत्तराखंड के क्षेत्रपाल अथवा भूमिदेव के रूप में महत्त्वपूर्ण है।


औंकारेश्वर मन्दिर
केदारनाथ से लौटकर गुप्तकाशी-तुंगनाथ-चोपता गोपेश्वर मोटर मार्ग पर गुप्तकाशी से 12 किलोमीटर की दूरी पर औंकारेश्वर मन्दिर ऊखीमठ (4326 फौट) में स्थित है। देवाधिदेव महादेव को औंकार का प्रतीक माना गया है। हिन्दू धर्म में प्रत्येक शुभ कार्य एवं मन्त्रादि का उच्चारण औंकार से ही प्रारम्भ होता है। श्री केदारनाथ व मध्यमहेश्वर की पूजा शीतकाल में औंकारेश्वर मन्दिर में की जाती है। इन मन्दिरों के कपाट खुलने का दिन ऊखीमठ परम्परानुसर शास्त्रीय विधि से निर्धारित किया जाता है। वास्तुकला की दृष्टि से यह मन्दिर भव्य है।

गर्भगृह में औंकारेश्वर शिवलिंग रूप में विराजमान हैं। इनकी पूजा केदारनाथ पूजा पद्धति से की जाती है। यहाँ पर सूर्यवंशी युवनाथ के पुत्र मान्धाता ने तप किया था। भगवान ने ओंकारेश्वर के रूप में उनको दर्शन दिये थे। राजा मान्धाता को मृति मन्दिर के गर्भगृह में स्थित है। महाभारत काल में बाणासुर, जिसकी राजधानी गुप्तकाशी के समीप शोणितपुर में थी, उसकी कन्या उपा से श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरूद्ध का विवाह हुआ था। आज भी वह विवाह मंडप यहाँ विद्यमान है।
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लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।

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