‘मडस्टोन चैकडैम’ से जल संरक्षण के साथ नमी संरक्षण का अभिनव प्रयोग

प्रकृति का नियम अटल है। शक की तो कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं और ना ही कोई कल्पना। सत्यता यही है कि एक अदृश्य शक्ति जिनकी उपस्थिति मात्र से ही प्रकृति में दिव्यता का संचार होने लगता है। हर तरह के जीव-जंतुओं तब चाहे मनुष्य जाति हो या फिर वनस्पति जगत, सभी में प्राण आ जाते हैं। उनमें एक नया जीवन दिखाई देने लगता है। ऐसी सुव्यवस्थित आलौकिक अदृश्य शक्ति की व्यवस्था के विपरीत जब कभी भी जानेअनजाने अनावश्यक रूप से दखलंदाजी होने लगती है तो हमारे सामने अलग-अलग आपदाओं के रूप में समस्याएं आने लगती हैं। फिर यही समस्या चुनौती बनती जाती हैं।
सभी जाति व धर्म के लोग किसी न किसी रूप में ‘भगवान’ (भूमि, गगन, अग्नि, वायु और नीर) को ही अन्तिम सत्य मानते हैं। मानें भी क्यों नहीं? जीवन जीने के लिए और है भी क्या इनके अलावा! अब प्रश्न यह भी है कि इस व्यवस्था को हम किस प्रकार से व्यवस्थित रूप से बनाये रखें। वैसे तो ब्रह्मांड में प्राकृतिक रूप से हर एक को स्वतः कार्य-निष्पादन की जिम्मेदारी सौंपी गई है, लेकिन स्वार्थवश जब इससे इतर हस्तक्षेप होने लगता है तो मुश्किलें खड़ी होने लगती हैं।
अब अगर हम व्यवहारिक व्यवस्था की बात करें तो जीवनदाता माता-पिता और गुरू-देवता के साथ ही डॉक्टर को भी एक अलग और विशिष्ट दर्जा दिया गया है, जिसमें वास्तविकता भी है। किन्तु वास्तविकता यह भी तो है कि शुद्ध प्राणवायु की उपस्थिति में ही यह सब सम्भव है। आखिर हम यह क्यों भूल जाते हैं कि श्वास लेने के लिए हमें शुद्ध हवा की ही आवश्यकता होती है, जिसमें हमारे ‘प्राण-प्रहरियों’ की मुख्य भूमिका है।
जी हाँ, आजकल विकसित देशों की पंक्ति में बने रहने की होड़ में विकास के नाम पर अनेकों योजनाएं संचालित करने होती हैं। सड़क-परिवहन हों या फिर कारखाने, बड़े-बड़े उद्योग और अन्य आवश्यक उपक्रम भी आज की आवश्यकता है। वैश्विक बाजार में बने रहने के लिए कई बार न चाहते हुए भी योजनायें बनाने होती हैं। हम प्रकृति के विपरीत न हों, संतुलन भी बनाये रखें, इस नेक कार्य में वन विभाग के ‘प्रहरी’ अहम भूमिका निभा रहे हैं।
मैंने स्वयं जाकर देखा है मुनिकीरेती स्थित शिवालिक जैवविविधता पार्क विकसित करने में समर्पित सेवकों को। उत्तराखंड की प्रसिद्ध धर्मस्थली ऋषिकेश के पास ही जनपद टिहरी गढ़वाल स्थित मुनिकीरेती रेंज में भद्रकाली मन्दिर के निकट प्रस्तावित शिवालिक जैवविविधता पार्क लगभग 50 (पचास) हेक्टेयर क्षेत्र में स्थित है। वैसे तो यहाँ पर पूर्व में अत्यधिक वर्षा जल वहाव के कारण बहुत बड़ी-बड़ी लगभग 01 से 12 मीटर (एक से बारह मीटर) तक की खाई देखी जा सकती हैं, जिनके चारों तरफ काफी मात्रा में लैंटाना झाड़ी उग आई है। इस क्षेत्र की मिट्टी बलुई है इसलिए यहाँ पर पानी व नमी की मात्रा कम ही है।
सरकार की महत्वाकांक्षी योजना को जीवन्त स्वरूप देने के उद्देश्य से प्रभागीय वनाधिकारी धर्मसिंह मीणा के संरक्षण में उप प्रभागीय वनाधिकारी मनमोहन सिंह बिष्ट की ओर से अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के सहयोग से यहाँ नाला क्षेत्रों में ‘मडस्टोन-चैकडैम’ का निर्माण करवाकर वर्षा जल संरक्षण कर मृदा में नमी बनाये रखने का अभिनव प्रयास किया जा रहा है।
ज्यादा प्रभावशाली हैं ‘मडस्टोन चैकडैम
एसडीओ बिष्ट का मानना है कि ‘मडस्टोन चैकडैम’, ‘स्टोन चैकडैम’ से अधिक प्रभावशाली हैं। तुलना करते हुए वे बताते हैं कि नालों से बहकर आने वाले वर्षा जल ‘स्टोन चैकडैम’ से निकलकर बह जाता है, जबकि इसके विपरीत ‘मडस्टोन चैकडैम’, में नालों से बहकर आने वाले वर्षा जल कुछ समय रुककर अपने आसपास की भूमि के तीनों ओर से रिसाव के कारण वर्षा जल संरक्षण के साथ ही आसपास के क्षेत्र में लम्बे समय तक नमी भी बनाये रख सकेगा।
‘मडस्टोन चैकडैम’ की बनावट
यहाँ पर पर यह समझना जरूरी होगा कि ‘मडस्टोन चैकडैम’ बनाने में क्या विशेष ध्यान रखना जरूरी है? इस प्रकार के चैकडैम बनाते समय ऐसे स्थान का चयन करना होगा जहाँ पर नाले का ढाल कम हो। अब उस स्थान पर 7×1.5×0.30 मीटर की खुदाई कर इसकी बुनियाद में लगभग 2 फीट साइज तक के खड़े पत्थर लगाकर इसमें मिट्टी व कंकण-पत्थर भरान कर उसे चैकडैम का स्वरूप दिया जाता है। यहाँ पर यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि इसमें 70 प्रतिशत मिट्टी एवं 30 प्रतिशत कंकण-पत्थर का प्रयोग हो।
वे बताते हैं कि साइड में अभी तीन प्रकार के ‘मडस्टोन चैकडैम’ बनाने का प्रयास कर रहे हैं। क्षेत्र के अनुरूप ही चैकडैम का स्वरूप दिया जाता है। साथ ही मजबूती देने के लिए चैकडैम के समीप घास, सेलेक्स, सिंयारू, सिंसारू, रिंगाल आदि पौधे रोपकर सुरक्षा के साथ ही सुंदरता भी प्रदान कर रहे हैं।
प्रभागीय वनाधिकारी धर्म सिंह मीणा के संरक्षण एवं उप प्रभागीय वनाधिकारी मनमोहन सिंह बिष्ट के नेतृत्व में सहयोगी स्टॉफ की ओर से इस क्षेत्र में एक अभिनव कार्य-योजना तैयार कर सकारात्मक पहल की गई हैष जो वास्तव में क़ाबिल-ए-तारीफ है।
लेखक का परिचय
कमलेश्वर प्रसाद भट्ट
प्रवक्ता अर्थशास्त्र
राजकीय इंटर कॉलेज बुरांखंडा, रायपुर देहरादून उत्तराखंड
मो०- 9412138258
email- kamleshwarb@gmail.com
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।