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April 13, 2025

यूसीसी में जितना समय बर्बाद किया, उसमें गरीबी, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ अंकिता भंडारी की बात करती सरकारः लालचंद शर्मा

उत्तराखंड में बीजेपी सरकार ने समान नागरिक संहिता को 27 जनवरी से लागू कर दिया। इसे लेकर विपक्षी दलों की कड़ी प्रतिक्रिया आ रही है। कांग्रेस के देहरादून के पूर्व महानगर अध्यक्ष लालचंद शर्मा ने यूसीसी लागू होने पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि ये सब बीजेपी का शिगूफा है। उन्होंने कहा कि यूसीसी के लिए ढाई साल बर्बाद किए, लेकिन इतने साल में अंकिता भंडारी हत्याकांड में वीआईपी का नाम सामने नहीं आया है। सरकार ने समय बर्बाद किया, लेकिन आम लोगों की समस्याओं के निदान के लिए कोई प्रयास नहीं किए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

लालचंद शर्मा ने कहा कि सरकार ये बताए कि समान नागरिक संहिता से कितने गरीबों का क्या भला होगा। प्रदेश में गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, महंगी शिक्षा, स्वास्थ्य व्यवस्था की बदतर स्थिति सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं को लेकर सरकार ने आज तक कौन की जिम्मेदारी उठाई। सारी समस्याएं तो मुंह बाएं खड़ी हैं। ऐसे में यूसीसी से किसका भला होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि यूसीसी के नाम पर सिर्फ पीठ थपथपाने से कुछ नहीं होगा। सरकार को बताना चाहिए कि क्या इस कानून से देश और प्रदेश हर समस्याएं मिट जाएंगी। ये सिर्फ राजनीतिक शिगूफा है। राज्य की जनता को इसके क्या फायदे हैं। ये बताने में सरकार नाकाम है। राज्य सरकार ने ना तो महंगाई कम करने के प्रयास किए। ना ही स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़कों के सुधारीकरण के लिए कुछ किया। स्मार्ट सिटी के नाम पर राजधानी देहरादून में तोड़फोड़ जरूर की। इसका खामियाजा जनता भुगत रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

लालचंद शर्मा ने कहा कि यूसीसी केवल एक खास वर्ग को चिढ़ाने के लिए लाया गया है। उनके पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप कर बहुसंख्यक समाज को खुश करने की कोशिश है। इसमें इससे ज्यादा कुछ नहीं है। ऐसे में प्रदेश की समस्या का निदान कैसे होगा, ये सरकार को बताना चाहिए। इस कानून पर जितनी मेहनत ढाई साल से की गई इतनी मेहनत शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार के मुद्दों पर करती तो शायद राज्य का कुछ भला होता। भाजपा सरकार को जनसरोकार के मुद्दों से कोई लेना देना नहीं है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि उत्तराखड देवभूमि है, लेकिन सरकार एक तरह से लिव इन रिलेशन को मान्यता दे रही है। इसके लिए भी प्रावधान हैं। ऐसे में उत्तराखंड देवभूमि को बदनाम करने में सरकार कोई कसर नहीं छोड़ रही है। रही बात समान नागरिक संहिता में भेदभाव की। इसमें जनजाति को क्यों छोड़ा गया। क्या वे राज्य के नागरिक नहीं हैं। यदि उन्हें इसके दायरे में नहीं रखा गया तो साफ जाहिर है कि इसमें वोट की राजनीति है। ऐसे में इसे समान नागरिक संहिता कैसे कहा जा सकता है। जब हर वर्ग व जाति के लिए समान कानून ना हों। यानि ये शिगूफा है। इसे राज्य की जनता समझ चुकी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

लालचंद शर्मा ने कहा कि यूसीसी का ड्राफ्ट बनाने वाली कमेटी में भी राज्य के बाहर से ज्यादा लोग शामिल थे। राज्य आंदोलन की लड़ाई इसलिए लड़ी गई थी कि यहां के लोगों को हक मिले। वहीं यूसीसी में एक साल से उत्तराखंड में रहने वाले को राज्य का निवासी माना जाएगा। ऐसे में राज्य आंदोलनकारियों के सपनों को भी सरकार ने चकनाचूर किया है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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