उम्मीद की लाश, पूरी रात भर मृत बच्चे के शव से होता रहा खिलवाड़, फिर भी हाथ लगी मायूसी
इस जीवन की कड़वी सच्चाई मौत भी है। जब एक बार कोई इस धरती पर आता है, तो उसका जाना भी तय है। विधि के इस विधान को कोई नहीं टाल सकता। किसी की मौत होने पर कई बार विश्वास नहीं होता और लाश में जीवन की उम्मीद की जाने लगती है।

बात करीब वर्ष, 1995 की है। ऋषिकेश के श्यामपुर क्षेत्र में एक आठ साल के बच्चे को सांप ने काट लिया। डॉक्टर के पास ले जाने की बजाय परिजन उसे इधर-उधर झाड़फूंक के लिए ले जाते रहे और बच्चे पर जहर का असर बढ़ता चला गया। आखिर वही हुआ, जो होना था। लापरवाही व अंधविश्वास के चलते बच्चे की मौत हो गई। इस उम्मीद में कि कहीं बच्चा दोबारा जिंदा हो जाए, पत्थरों से बांधकर गंगा में उसकी जल समाधी दे दी गई।
परिवार व आस-पडो़स के लोग बच्चे को गंगा में जल समाधी देकर घर लौटे ही थे। तभी एक तांत्रिक उनके घर पहुंचा और दावा करने लगा कि वह बच्चे को जिंदा कर देगा। लाश के जिंदा होने की उम्मीद पर अंधविश्वासी लोगों को विश्वास होना लाजमी था। सो गंगा से शव को बाहर निकाला गया। घर के आंगन में शव रखा गया। तांत्रिक ने बच्चे के सिर के कुछ बाल उस्तरे से साफ कराए। सिर पर ब्लेड से चीरा दिया गया और वहां एक कौड़ी चिपकाई गई।
तब मैं ऋषिकेश में ही अमर उजाला में था। वहीं, मेरे मित्र हरीश तिवारीजी दूसरे समाचार पत्र में थे। जब हमें इस घटना का पता चला तो दोनों ही घटनास्थल की ओर रात को रवाना हो गए। मौके पर जाकर देखा कि
लाश के चारों तरफ जमीन पर एक गोला खींचा गया। तांत्रिक ने सभी को गोले से दूर रहने की हिदायद दी। वह मंत्र पढ़ रहा था। मौके पर भीड़ जमा हो रही थी। यह क्रम शाम करीब छह बजे से शुरू हो चुका था। जब हम पहुंचे तक शायद रात के नौ बज रहे थे।
तांत्रिक का कहना था कि बच्चे को डसने वाला सांप आएगा और बच्चे से शरीर पर फैले जहर को चुसेगा। फिर बच्चा जिंदा हो जाएगा। रात बढ़ती गई। मुझे भी उत्सुकता थी। खाना-पीना तक भूल गया। कहीं खाना खाने जाऊं और यदि उसी समय सांप आ जाए, तो मैं देखने से वंचित रह जाता। हालांकि मुझे इस पर विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई दोबारा जिंदा हो सकता है। फिर भी दोनों निकट के एक होटल में गए तो वहां भी शटर डाउन हो चुका था। वो एक थापाजी का रेस्टोरेंट था, जो बार बार शराब परोसने के आरोप में पुलिस की रेड में पकड़े जाते थे। हमने उनका शटर खुलवाया और कुछ बनाने का आर्डर किया। पर ध्यान तो सांप वाली घटना पर ही था। ऐसे में हमने जल्दबाजी में हल्का फुल्का भोजन किया और फिर मौके पर चले गए।
रात बढ़ती जा रही थी। साथ ही हमारी जिज्ञासा भी। तब भी हमें सांप के आने पर विश्वास नहीं हो रहा था। फिर भी अंधविश्वासियों से कई कहानी सुनी थी। पूरी रात गुजर गई और सुबह होने लगी, लेकिन सांप नहीं आया। तब जनता ने तांत्रिक को घेर लिया। उसने हाथ खड़े कर दिए। इस पर उसकी पिटाई भी हुई। किसी तरह हम दोनों ने लोगों के कोप से उसे बचाया। फिर सुबह लोगों ने शव की दोबारा गंगा में ले जाकर जल समाधि दी। बाद में मैं यही सोचता रहा कि यदि समय पर परिजन चिकित्सक के पास बच्चे को ले जाते तो शायद यह नौबत नहीं आती। न ही परिजन व आसपड़ोस के लोग आंगन में उम्मीद की लाश से चमत्कार का इंतजार करते।
भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।