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February 3, 2025

उत्तराखंड में हरेला पर्व आज, सार्वजनिक अवकाश, सीएम धामी ने की पौधा रोपने की अपील, जानिए क्यों मनाते हैं हरेला

उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी त्योहारों की महत्वपूर्ण भूमिका है। आज हरेला पर्व है। इसे लेकर सरकार ने सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है।

उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी त्योहारों की महत्वपूर्ण भूमिका है। आज हरेला पर्व है। इसे लेकर सरकार ने सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है। अवकाश के संबंध में महानिदेशालय विद्यालयी शिक्षा उत्तराखंड के संयुक्त निदेशक डॉ. एसबी जोशी आदेश जारी कर चुके हैं। वहीं, इसकी पूर्व संध्या में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार को खटीमा स्थित अपने आवास पर पौधरोपण कर हरेला पर्व की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि हरेला पर्व हरियाली का प्रतीक है। इसको हरित क्रांति के रूप में मनाना होगा। तभी हम पर्यावरण को संरक्षित रख सकते हैं। इसमें जन जन की भागीदारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कावड़ यात्रा 2 वर्षों बाद हो रही है। इसके सफलतापूर्वक संपन्न करने के लिए पूरे बंदोबस्त किए गए हैं। इस मौके पर उन्होंने प्रदेश की जनता से अधिक से अधिक पौधारोपण करने की अपील की।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की शुभकामनाएं दी है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण को समर्पित लोक पर्व हरेला उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक परम्परा का प्रतीक है। यह पर्व हमें सम्पन्नता, हरियाली और पर्यावरण संरक्षण का भी सन्देश देता है। पर्यावरण संरक्षण तथा प्रकृति को महत्व देने की हमारी परम्परा रही है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि हरेला सुख-समृद्धि व जागरूकता का भी प्रतीक है। हमारी आने वाली पीढ़ी को शुद्ध वातावरण मिल सके इसके लिए सबको वृक्षारोपण व पर्यावरण संरक्षण के प्रति ध्यान देना होगा। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से आज दुनिया भर के देश चिंतित हैं। यह पर्व ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ने का भी संदेश देता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण के साथ उनके संरक्षण के प्रति भी ध्यान देना होगा।
साल में तीन बार मनाया जाता है हरेला
हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है। पहला चैत्र माह में, दूसरा श्रावण माह में और तीसरा अश्विन माह में। हरेला का मतलब है हरियाली। उत्तराखंड में गर्मियों के बाद जब सावन शुरू होता है। तब चारों तरफ हरियाली नजर आने लगती है। उसी वक्त हरेला पर्व मुख्य रूप से मनाया जाता है। यह पर्व खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है। जिसे उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
हरेला लोकपर्व जुलाई के महीने में मनाया जाता है। जिससे 9 दिन पहले मक्‍का, गेहूं, उड़द, सरसों और भट जैसे 7 तरह के बीज बोए जाते हैं और इसमें पानी दिया जाता है। कुछ दिनों में ही इसमें अंकुरित होकर पौधे उग जाते हैं, उन्हें ही हरेला कहते हैं। इस हरियाली (पौधों) को देवताओं को अर्पित किया जाता है। घर के बुजुर्ग इसे काटते हैं और छोटे लोगों के कान और सिर पर इनके तिनकों को रखकर आशीर्वाद देते हैं।
उत्तराखंड की संस्कृति से युवाओं जोड़ने के लिए होता है ये काम
अगर परिवार का बेटा या बेटी घर से बाहर होते हैं, तो कुछ लोग उनके पास यह हरेला डाक के माध्यम से भी भेजते हैं। उत्तराखंड की संस्कृति में युवाओं और बुजुर्गों को जोड़ने वाला हरेला पर्व संस्कृति के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है। पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले संगठन और समाजसेवी इस त्योहार को बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं। पौधरोपण करने और पेड़-पौधों को सुरक्षित बड़ा करने के लिए भी लोगों को प्रेरित किया जाता है।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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