कवयित्री की माताजी अस्पताल में भर्ती हैं, कविता के माध्यम से व्यक्त किए उदगार
माँ आज मेरी ।CU में है ।
माँ
ओ माँ
मेरी प्यारी माँ
ऊँगली तेरी थाम सीखा था मैंने चलना ।
किन्तु आज हम सब लाचार
तेरे कदम नहीं गिन पाते ॥
तुने हमें बोलना सिखाया ,
आज तेरी चुप्पी सही नहीं जाती ।
अब तो तोड़ मौनव्रत अपना,
कुछ तो बोल खोल मन अपना ।
ऐसी चुप चुप क्यों लेटी है ॥
डांट ही दे पर कुछ तो बोल,
तेरे ही हैं हम तू मुँह तो खोल ।
ऐसी भी क्या नाराज़ी है,
माँ ऐसी चुप क्यों लेटी है ॥
हमारा तो भगवान भी तू है,
सारा ही ब्रह्माण्ड भी तू है ।
तुझ भी जीना नहीं आता है
साथ तेरा बस इक भाता है ।
सारे रिश्ते नाते झूठे हैं
इक तेरा सच्चा नाता है ॥
तुझे कसम है
होश में आजा
देरी और सही नहीं जाती ।
या तो अपने बिन जीना सिखला जा ।
वरना घर वापस जल्दी आजा …
कवयित्री की परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रो एवं विभागाध्यक्ष हिंदी
डीएवी पीजी कॉलेज देहरादून, उत्तराखंड
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।