उपनल कर्मियों के आंदोलन को किसान आंदोलन की तरह लंबा खींचना चाहती है सरकार: धस्माना
उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने उपनल कर्मचारियों के आंदोलन को लेकर कहा कि राज्य की भाजापा सरकार इस आंदोलन को भी किसान आंदोलन की तरह लंबा खींचना चाहती है। तभी एक साधारण से फैसले के लिए अब अधिकारियों की कमेटी गठित कर दस दिन का समय मांगना सरकार की सोची समझी साजिश है। सरकारी की साजिश उपनल कर्मचारियों के आंदोलन को तोड़ने की है।
उन्होंने कहा कि सरकार को राज्य की ओर से माननीय उच्च न्यायालय के नवंबर 2018 के आदेश के अनुरूप कार्य करना चाहिए। इसमें समान काम के लिए समान वेतन देने को कहा गया था। साथ ही उन्हें चरणबद्ध तरीके से राजकीय सेवाओं में समायोजित करने, उपनल कर्मियों के वेतन से जीएसटी व सर्विस टैक्स न काटने पर निर्णय करना है। इस आदेश के विरुद्ध राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट एसएलपी में गयी है। सरकार को उस एसएलपी को वापस ले कर माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन करना चाहिए।
धस्माना ने कहा कि अब सरकार ने जो समिति बनाई है वो एक दिन में ही इस विषय पर विचार कर सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप सकती है। राज्य सरकार तत्काल उसके आधार पर जितनी राहत उपनल कर्मियों को दे सकती है। उसकी घोषणा कर आंदोलन को समाप्त कर सकती है। धस्माना ने कहा कि महीने भर के करीब उपनल कर्मचारी अपना काम धाम घर बार परिवार छोड़ कर पथरीले धरना स्थल पर बैठे हैं। सरकार उनको थकाने के उद्देश्य से निर्णय लेने की बजाय कमेटी बना रही है, जो अफसोसनाक है।
पूर्व विधायकों ने दिया समर्थन
आज शनिवार को सहस्त्रधारा रोड़ देहरादून में लंबे समय से आंदोलनरत उत्तराखंड उपनल कर्मचारियों के आंदोलन में पहुँचकर प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष विजयपाल सजवाण एवं कांग्रेस अनुसूचित जाति विभाग के प्रदेश अध्यक्ष पूर्व विधायक राजकुमार ने उन्हें अपना समर्थन देकर उनकी समस्याओं को सुना। उन्होंने बतौर समर्थन देकर कहा कि जब इनके पक्ष में माननीय उच्च न्यायालय ने फैसला लिया, फिर भाजपा की प्रदेश सरकार उस फैसले को मानने को तैयार क्यों नहीं है।
उन्होंने कहा कि हजारों कर्मचारी इसी प्रदेश के मूल निवासी हैं। रोजगार पाना उनका अधिकार है। उनके धरने को आज 26 दिन हो गए हैं।
इसके अलावा उन्होंने मनरेगा कर्मियों के धरना स्थल पर पहुंचकर उनकी जायज मांगों पर अपना समर्थन दिया। यहां मनरेगा कर्मियों ने कहा कि वे विगत 10 वर्षों से मनरेगा के अन्तर्गत कार्य कर रहे है, जिन्हें मात्र 10 हजार महीना वेतन मिलता है। महंगाई के इस दौर में अल्प वेतन भोगी होने के कारण इन्हें परिवार का लालन पोषण करना संभव नही हो पा रहा है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
इस सरकार की नीतियां ठीक नही है.