गोवर्धन एवं अन्नकूट पूजा आज, ये है शुभ मुहूर्त, ऐसी है मान्यता, जानिए पूजा का महत्व और विधि
हर साल दीपावली के त्योहार के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। पांच दिन के दीपावली त्योहार में इसका भी काफी महत्व है। दीपोत्सव का हर दिन एक नया पर्व होता है।
हर साल दीपावली के त्योहार के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। पांच दिन के दीपावली त्योहार में इसका भी काफी महत्व है। दीपोत्सव का हर दिन एक नया पर्व होता है। धनतेरस के बाद नरक चौदस, दीपावली और उसका अगला दिन होता है गोवर्धन पूजा। इसके बाद भैया दूज का त्योहार पड़ता है। दीपों का पर्व यूं तो भगवान राम की घर वापसी और माता लक्ष्मी के पूजन के साथ मनाया जाता हैय़ दीवाली के अगले दिन भी एक खास उत्सव होता है वो है गोवर्धन पूजा। ये त्योहार आज यानी पांच नवंबर को है। इसे अन्नकूट पूजा भी कहते हैं, कई जगह इसे पड़वा भी कहा जाता है। इस प्रतिपदा तिथि पर घर के आंगन अथवा छत पर परंपरा के अनुसार गोबर से गोवर्धन बनाए जाते हैं और उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत को पूजते हैं साथ ही भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। गोवर्धन पूजा वाले दिन भगवान कृष्ण की पूजा होती है साथ ही गाय के गोबर से गोवर्धन देव बनाकर उन्हें पूजने की परंपरा भी रही है। कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष के पहले दिन यानि प्रतिपदा के दिन ये पर्व आता है।गोवर्धन पूजा की तिथि एवं शुभ मुहूर्त
कार्तिक मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि आरंभ- 5 नवंबर 2021 तड़के 2 बजकर 44 मिनट से
कार्तिक मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि समापन- 5 नवंबर को रात के 11 बजकर 13 मिनट पर
गोवर्धन पूजा मुहूर्त सुबह 6 बजकर 35 मिनट से 8 बजकर 47 मिनट तक
गोवर्धन पूजा का अन्य शुभ मुहूर्त- दोपहर 3 बजकर 21 मिनट से 5 बजकर 32 मिनट तक
क्या है अन्नकूट
भिन्न प्रकार यानी अलग-अलग तरह की सब्जियों और अन्न के समूह को अन्नकूट कहा जाता है> अपने सामर्थ्य के मुताबिक इस दिन लोग अलग-अलग प्रकार की सब्जियों को मिलाकर एक विशेष प्रकार की मिक्स सब्जी तैयार करते हैं और इसे भगवान श्रीकृष्ण को चढ़ाते हैं। इसके अलावा तरह-तरह के अन्न के पकवान बनाए और श्रीकृष्ण को चढ़ाए जाते हैं।
गोवर्धन पूजा की कथा
गोवर्धन पूजा का जिक्र पुराणों में मिलता है। बात उस समय की है जब भगवान कृष्ण माता यशोदा के साथ ब्रज में रहते थे। माना जाता है कि उस वक्त अच्छी बारिश के लिए सभी लोग भगवान इंद्र का पूजन करते थे। एक वर्ष भगवान कृष्ण ने ठान लिया कि वो इंद्र का घमंड तोड़ कर रहेंगे और सभी से इंद्र के पूजन के बजाए गोवर्धन पर्वत की पूजा के लिए कहा। सबने कान्हा की बात मान तो ली पर डर सभी को इंद्र के कोप का डर भी था। वही हुआ भी नाराज इंद्र देव का गुस्सा तेज बारिश बन कर ब्रज पर बरसा। ब्रजवासियों की रक्षा के लिए कान्हैया ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया और सभी लोगों ने इस गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। जब तक इंद्र का क्रोध बरसता रहा भगवान मुस्कान के साथ पर्वत को अपनी उंगली पर थामे रहे और पूरा ब्रज वहीं पर शरण लेकर रहता रहा। इंद्र को अपनी गलती समझ में आ गई। उनका कोप शांत हुआ। माना जाता है उसके बाद से ही गोवर्धन पूजा का सिलसिला शुरू हुआ, जो अब तक चला आ रहा है।
गोवर्धन पूजा का महत्व और विधि
गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से देव बनाए जाते हैं. इसके अलावा लोग अपने पशुधन को सजाते हैं और उनकी पूजा भी करते हैं। ये प्रकृति और इंसानों के बीच स्थापित प्रेम और सम्मान का पर्व भी माना जाता है। इस दिन पूजा के लिए किसान और पशुपालक खासतौर से तैयारी करते हैं। घर के आंगन या खेत में गाय के गोबर से देव बनाए जाते हैं. और उन्हें भोग भी लगाया जाता है। पूजन विधि तकरीबन दूसरी पूजाओं की तरह ही है जिसमें सुबह स्नान करके, भगवान की प्रतिमा बनाकर उस पर भोग चढ़ाया जाता है। गोवर्धन देव के अलावा भगवान कृष्ण का दूध से स्नान करवाकर उन्हें भी पूजा जाता है।




