गढ़वाली कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ के दोहे- जीवन लीला
जीवन लीला
मन्खी जून-दे प्रभु तिन, कनू- निरबळ बड़ाय.
इनु जीवन थैं पैकि भी, स्वाचा हमन क्य पाय..
माँ न द्याई भलू जल़म, दगड़म खैरि बि खाय.
सैती – पाऴी बड़ू करि , आखिर मा क्या पाय..
पांचौं उगुऴी- बरोबर , पीड़- सब्यूं फरि- रैंद.
जीवन जींणा- अधिकार , आज सब्यूं थैं चैंद..
दुख-बिमरी ता- लगीं छीं , जीवन कैना थाम.
सुर-पुट लिजांदी – सुर से , मचे बि दींदी हाम..
तेरी रचीं- या लीला , अरथ भि- तू ही जांणि.
कै थैं सतै – सतै मारि, कै- बार लगि-नि पांणि..
कनि मंथा- तेरी रचीं , हम त छवां – किरदार.
दुख भी जब-तु ही दींदी, अब ये दुख भी हार..
‘दीन’ चलांदि- जन हमथैं, जिंदगी उनै चाल.
देऴि – बाटौं मा यख ता , बैठ्यूं राई – काळ..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
जीवन में पल प्रतिपल घटित आकस्मिक दुःखद घटनाओं को दर्शाती कविता