शिक्षिका हेमलता बहुगुणा की गढ़वाली कविता- कुर्ता पैजामू मेरू पेरूं छ
कुर्ता पैजामू मेरू पेरूं छ
बौंल्या मेरू खूब सज्यूं छ
भलू स्वाणु अर प्यारू लग्यौं छ
ब्यौंला देखी खुश ह्वाणा छा।
बै देखिक बात बोल्णांछा।
एक मनखीं तब दौड़ीक आई
ब्यौंला बडू भलू छ भाई
कपड़ी लत्ती बड़ी भली पैरी छ
ब्यौला बड़ू स्वाणु सज्यूं छ
ईनी बडांई चलण लगीं छै
हंसी मखोल भी चलण लगीं छै
तब तक दूसरू मनखी आई
बैन बडांई म इनी छौंक लगाई ।
ब्यौंला तो स्वाणु छदी छ भाई
कुर्ता पैजामूं त मेरू पैराई ।
ब्यौंला तो चाई कतकी सुंदर
अपणी कुर्ता की बडांई कर आई
सुणिक ब्यौंला होई दुःख दाई
सभी म त्वैन मेरी मखोल उठानी
ऐदा बिटी कैकी चीज नी पैर्या
अपणी चीज ही ठीक छ भाई
कवयित्री का परिचय
नाम-हेमलता बहुगुणा
पूर्व प्रधानाध्यापिका राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सुरसिहधार टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।