विद्यालयी शिक्षा में मातृभाषा शिक्षण के पाठ्यक्रम लेकर गढ़वाली साहित्यकारों ने की चर्चा

विद्यालयी शिक्षा में प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा शिक्षण को लेकर गढ़वाली भाषा के साहित्यकारों ने एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जाने माने लोकगायक एवं गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी की अध्यक्षता में आयोजित इस संगोष्ठी में मातृभाषा की वर्तमान स्थिति, मातृभाषा में तैयार पाठ्यक्रम पर चर्चा हुई। संगोष्ठी का आयोजन देहरादून स्थित एक रेस्टोरेंट में किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
संगोष्ठी में नरेन्द्र सिंह नेगी ने कहा कि जब हमारी भाषाएं बचेंगी, तभी संस्कृतियां भी जिंदा रह सकती है। भाषा को बचाए रखने के लिए इसके लिए प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में पठन-पाठन और शिक्षण किया जाना आवश्यक है। हिमालयी लोक साहित्य एवं संस्कृति विकास ट्रस्ट की ओर से आयोजित इस संगोष्ठी में शिक्षा नीति-2020 के आलोक के तहत विद्यालयी शिक्षा में प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा के माध्यम से शिक्षण के लिए शासन को एक ज्ञापन दिया जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
संगोष्ठी में डा. नंदकिशोर हटवाल ने कहा कि शासन की ओर से एससीईआरटी के माध्यम से गढ़वाली, कुमाऊनी, जौनसारी आदि के पाठ्यक्रम और पाठ्य पुस्तकें तैयार की जा चुकी हैं। अब शासन स्तर पर इन्हें लागू किये जाने की आवश्यकता है। जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण ने कहा कि भाषा को नई पीढ़ी तक तब ही ले जाया जा सकता है जब पाठ्यक्रम में मातृभाषाएं पढ़ाई जाएं। आज नई पीढ़ी अपनी भाषा को जानना समझना चाहती है ऐसे समय में पाठ्यक्रम का योगदान महत्वपूर्ण है। विद्यालयों में मातृभाषा में पढ़ाई होने से मातृभाषाएं रोजगार का साधन भी हो जाएंगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पर्यावरणविद् कल्याण सिंह रावत “मैती” ने कहा कि अधीनस्थ चयन आयोग और लोक सेवा आयोग में उत्तराखंड की भाषा एवं संस्कृति के प्रश्न आना स्वागत योग्य है। प्रथमिक शिक्षा में यदि मातृभाषाएं पढ़ाई जाएंगी तो प्रतियोगी परीक्षाओं में उन्हें सुविधा होगी। पद्मश्री डा. माधुरी बड़थ्वाल ने सांस्कृतिक पहचान के लिए भाषा सीखने की बात कही। गणेश खुगशाल गणी ने कहा कि नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षण की प्रबल संस्तुति बड़े चिंतन के बाद लिया गया निर्णय है। भाषाओं के बचने से उन भाषाओं के ज्ञान और विज्ञान को भी समझने के रास्ते खुलेंगे। आवश्यकता है नई शिक्षा नीति को लागू किये जाने की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस संगोष्ठी में विद्यालयी शिक्षा में प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा के माध्यम से शिक्षण शीघ्र प्रारंभ करने हेतु मुख्यमंत्री और शिक्षामंत्री को एक ज्ञापन तैयार किया गया। आयोजन में उषा नेगी, रमाकांत बेंजवाल, बीना बेंजवाल, मदन मोहन डुकलाण, गिरीश सुन्दरियाल, भगवती सुन्दरियाल, कुलानन्द घनशाला, रमेश बडोला, ओम बधानी, गिरीश बडोनी, देवेश जोशी, अनिल नेगी, आशीष सुंदरियाल, नरेन्द्र कठैत, शान्ति प्रकाश जिज्ञासु, रानू बिष्ट, कीर्ति नवानी, शैलेन्द्र मैठाणी, बलबीर राणा अडिग, देवेन्द्र उनियाल, कर्नल मदन मोहन कंडवाल, कांता घिल्डियाल, वीरेन्द्र पंवार, प्रेमलता सजवाण, धर्मेन्द्र नेगी, लोकेश नवानी, मनोज ईष्टवाल, बीना कंडारी, नीता कुकरेती आदि साहित्यकारों एवं संस्कृति प्रेमियों ने भाग लिया। इस आयोजन में गणेश खुगशाल गणी को गढ़वाल विश्वविद्यालय में लोक कला एवं संस्कृति निष्पादन केन्द्र केन्द्र में निदेशक के पद पर नियुक्त होने के लिए बधाई दी गई। संचालन गिरीश सुन्दरियाल ने किया।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।