गढ़वाली भाषा दिवस आज, पढ़िए इस दिवस पर गढ़वाली गजलः दीनदयाल बन्दूणी
गढ़वऴि भाषा दिवस
गढ़वऴि भाषा कु दिवस च, बल आज.
भाषा अपड़ि हमन बचांण, चल आज..
गढ़वऴि ब्वाला- बच्यावा, याच स्वाणी,
निकनि बड़ि आदिमै जनि, नकल आज..
हम जो गढ़वऴि भाषा, बखत्वार छवां,
पैलि जै – ऐना म द्याखा, सकल आज..
भूल हमरि च, हिंदि- अंग्रेजि फुकदवां,
कना छवां- गढ़वऴि दग्ड़ी, छल आज..
गढ़वऴि की-यीं मिठास, नि मिटिणि द्या,
सिखावा सबु, निकाळा-क्वी हल आज..
भाषाओं- गठजोड़ म, गढ़वऴि न भूला,
उनबि-चऴणु, साहित्य कु परबऴ आज..
‘दीन’ गढ़वऴि पछ्याण, बचांण-बढांण,
दींण पोड़लि- हर बात म, दखल आज..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।