दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गढ़वाली गजल- जीवन कि सच्चै

जीवन कि सच्चै
यूँ आख्यूंन जो देख्याल़, वी च सच्चू.
ज्यूम धरी जो बांच्याल़, वी च सच्चू..
छ्वीं बतौं म-अधा सचै, अधा-मिलै.
जैन जनु-जनु समझ्याल़, वी च सच्चू..
बड़ा-बड़ा अचरज भ्वर्यां छीं , ईं दुन्यम.
जौंक बारम जो सूड़्यांल़, वी च सच्चू..
स्यांणि-गाण्यूंम बीति जांद, या जिंदगी.
जो बड़ैकि-अफ खैयाल़, वी च सच्चू..
समै बड़ू-तड़तड़ू, एक जगा-कख खड़ू.
बगत फरि जो भेट्याल़, वी च सच्चू..
मन कि गांणी कब ह्वे पूरी, रै अधूरी.
जिंदगी जो-अफ जियाल़, वी च सच्चू..
‘दीन’ बड़बड़ांणू-जड़बड़ाणू, छोड़ि दे.
जो सैयाल़ – जो पैयाल़, वी च सच्चू..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
जीवन दर्शन समझाया इस रचना में