दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गढ़वाली गजल-मिं गौड़ि छूं

मिं गौड़ि छूं
आज मेरी-कनि कुगति, मेरा गढवाऴ म हूंणीं च.
कै मुखन मींकु-माँ ब्वद्वा, मेरि जिकुड़ी रूणीं च..
जब तक – दींदू छौ दूध, हूंदि छै मींड- मलास,
ढांगु बड़िग्यूं – भैर करि द्यूं, आंखि मेरी चूणीं च..
मेरि खैरि-क्वी त सूंणा, कैक अगोड़ी मिन रूणा,
छऴकणा छी-आंसु मेरा, गंगा-जमुना ब्वगणीं च..
ज्वी देखद- अपड़ां धोरा, घंटे दींद – लठे दींद,
इनै – उनै दौड़ि – भजी, भारि असंद – आंणीं च.
भोऴ पूजा-पाठ करण, आसण भि केन लिपण,
गौंता गौंथ्यऴि द्यो-द्यवतौं, कख बटि क दींणीं च..
मां कु दूध कम पड़ी जो, मेरा दूधन बाऴा सैतीं,
पौडर छोऴि- बच्चों पिल़ाण, नै बात- सूणीं च..
‘दीन’ ! हे कनैया – गायौं चरैय्या, कख छै तू,
इनि कुतथा देखि गौण्यूं, त्वे दया नि औड़ीं च..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
पहाड़ी में गायौं की हो रही दुर्गति पर लिखी रचना कैसी लगी बताना.