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November 16, 2024

देहरादून के ऋषि आश्रम में राम कथा में बह रही ज्ञान की गंगा, मनुष्य को मर्यादित जीवन सिखाती है रामकथाः धस्माना

देहरादून में ऋषि आश्रम खुड़बुड़ा में राम कथा का शुभारंभ हो गया है। आचार्य पुरषोत्तम दास राम कथा में ज्ञान की गंगा बहा रहे हैं। कार्यक्रम के शुभारंभ में क्षेत्रीय विधायक खजानदास ने मंदिर के जीर्णोधार के लिए दस लाख रुपए देने की घोषणा की। इस मौके पर उत्तराखंड कांग्रेस कमेटी के प्रदेश अध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि भगवान राम की कथा अगर मनुष्य श्रद्धापूर्ण भाव से श्रवण करे और उसका अंश मात्र भी आत्मसात कर ले, तो मनुष्य जीवन में कभी मर्यादा का उलंघन ही नहीं कर सकता। राम कथा मनुष्य को मर्यादित जीवन जीने का रास्ता बताती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि भगवान ने मनुष्य को मन कर्म और वचन तीनों की मर्यादा का रास्ता स्वयं अपने जीवन में चरितार्थ कर बताया। भगवान श्री राम ने मन से भी कभी सीता माता के अलावा कभी किसी स्त्री को स्वीकार नहीं किया। जब शिव अर्धांग्नि सती माता भगवान राम की परीक्षा लेने सीता माता का रूप धर कर भगवान राम के पास गईं, तो प्रभु राम ने हंसते हुए उनसे कहा कि वन में अकेली कहां घूम रही हो माता। वृषकेतु पिता शंकर कहां हैं? (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि भगवान श्री राम ने पिता के वचन की मर्यादा की रक्षा के लिए चौदह वर्ष का वनवास सहर्ष स्वीकार किया। कर्म क्षेत्र में भगवान श्री राम ने मनुष्य के रूप में रहते हुए कभी अपने प्रभुत्व का प्रकटीकरण नहीं किया। इस प्रकार मन से वचन से व कर्म से हमेशा मर्यादा का पालन किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस अवसर पर राजपुर विधायक खजान दास ने कथा व्यास आचार्य पुरषोत्तम दास का अभिननंद करते हुए कहा कि यह देहरादून के श्रोताओं का सौभाग्य है कि अयोध्या से पधारे हुए संत आज श्री राम कथा की ज्ञान गंगा प्रवाहित कर रहे हैं। उसके श्रवण का सौभाग्य हमें मिल रहा है। उन्होंने मंदिर जीर्णोधार के लिए दस लाख रुपए देने की घोषणा की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस अवसर पर नैमिसारण्य से पधारे जगदाचार्य उपेंद्र सरस्वती, ऋषि आश्रम के महामंडलेश्वर विद्या चैतन्य ने आशीर्वचन कहे। कथा व्यास आचार्य पुरषोत्तम दास ने कहा कि वह बुधवार को राम विवाह पर चर्चा करेंगे।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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