पांच बार सांसद, नौ बार विधायक और छह बार हिमाचल के सीएम रहे वीरभद्र सिंह का निधन, दो बार हुआ था कोरोना
हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरभद्र सिंह का निधन हो गया। शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज में वीरभद्र सिंह ने आज गुरुवार आठ जुलाई की तड़के 3.40 बजे अंतिम सांस ली।
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वीरभद्र सिंह नौ बार विधायक, पांच बार सांसद रह चुके हैं और वह छह बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वर्तमान में वह सोलन जिले के अरकी से विधायक थे। पहली बार संक्रमण की चपेट में आने के बाद उन्हें चंडीगढ़ स्थित एक अस्पताल में भर्ती किया गया था। कोविड से ठीक होने के बाद वह हॉली लॉज में 30 अप्रैल को घर वापस आ गए थे। हालांकि, घर पहुंचने के कुछ घंटों बाद ही सांस लेने में तकलीफ की शिकायत के चलते उन्हें फिर आईजीएमसी में भर्ती करा दिया गया था।
वीरभद्र सिंह यूपीए सरकार में भी केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। उनके पास केंद्रीय इस्पात मंत्रालय रहा। इसके अलावा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय भी रह चुका है। वीरभद्र सिंह का जन्म 23 जून, 1934 को बुशहर रियासत के राजा पदम सिंह के घर में हुआ।
राजनीतिक जीवन
वीरभद्र सिंह 1983 से 1985 में पहली बार, फिर 1985 से 1990 तक दूसरी बार, 1993 से 1998 में तीसरी बार, 1998 में कुछ दिन चौथी बार, फिर 2003 से 2007 पांचवीं बार और 2012 से 2017 छठी बार मुख्यमंत्री बने। लोकसभा के लिए वह पहली बार 1962 में चुने गए।
उन्होंने पहली बार महासू लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। लोकसभा के लिए वीरभद्र सिंह 1962, 1967, 1971, 1980 और 2009 में चुने गए। वर्तमान में वीरभद्र सिंह अर्की से विधायक थे। इंदिरा गांधी की सरकार में वीरभद्र सिंह दिसंबर 1976 से 1977 तक केंद्रीय पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री रहे। दूसरी बार भी वह इंदिरा सरकार में ही वर्ष 1982 से 1983 तक केंद्रीय उद्योग राज्यमंत्री रहे।
इसके बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री ठाकुर राम लाल की जगह मुख्यमंत्री की कमान संभाली। उसके बाद से राज्य की राजनीति में सक्रिय हुए।
फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व की केंद्र की यूपीए सरकार में वीरभद्र सिंह 28 मई 2009 से लेकर 18 जनवरी 2011 तक कैबिनेट मंत्री रहे। उनके पास पहले इस्पात मंत्रालय रहा। उसके बाद उन्हें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय दिया गया।
वीरभद्र सिंह परंपरागत सीट रोहड़ू से विधानसभा चुनाव लड़ते थे। अपने घर रामपुर की सीट के अनारक्षित होने के कारण वह कभी भी यहां से चुनाव नहीं लड़ पाए। पुनर्सीमांकन के चलते रोहड़ू सीट भी आरक्षित हुई तो 2012 में उन्होंने शिमला ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ा। 2017 में उन्होंने यह सीट बेटे विक्रमादित्य सिंह के लिए छोड़ दी और खुद अर्की से चुनाव लड़े।
चुनावी राजनीति से ले चुके थे संन्यास
वीरभद्र सिंह ने इसी साल जनवरी में चुनावी राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था कि वो अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे। वह कांग्रेस के सच्चे सिपाही रहे हैं। इसलिए कांग्रेस को मजबूत पार्टी के रूप में देखना चाहते हैं। इसके साथ ही उन्होंने नसीहत देते हुए कहा था कि-कुछ लोग कांग्रेसी बनते हैं और अपने लोगों के जरिये कांग्रेस को ही हराते हैं। ऐसे लोगों को पार्टी में रखना नहीं है।मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा, लेकिन मैं कांग्रेसी था और मरते दम तक कांग्रेसी रहूंगा।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।