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August 23, 2025

सावन का पहला सोमवार आज, शिवालयों में कोविड गाइडलाइन के तहत चढ़ाया जा रहा जल, घर पर रहकर करें पूजा, जानिए महत्व

सावन का महीना शुक्रवार 16 जुलाई से शुरू हो चुका है। उत्तराखंड में आज से सावन का पहला सोमवार का व्रत है। शिवालयों में सुबह से ही पूजा, रुद्राभिषेक व जलाभिषेक शुरू हो चुका है।

सावन का महीना शुक्रवार 16 जुलाई से शुरू हो चुका है। उत्तराखंड में आज से सावन का पहला सोमवार का व्रत है। शिवालयों में सुबह से ही पूजा, रुद्राभिषेक व जलाभिषेक शुरू हो चुका है। हालांकि, कोरोना के मद्देनजर मंदिरों में कम ही लोग जा रहे हैं। साथ ही लोगों को घर पर ही पूजा की सलाह दी गई है। मंदिरों में कोरोना गाइडलाइन का पालन करवाने के लिए मंदिर समितियों ने तैयारी की हैं। कोरोना को देखते हुए मंदिर समितियों ने शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए पात्र (लोटा) अपने घर से लाने की अपील की है। बिना मास्क के मंदिरों में भक्तों को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है। मंदिर समितियों ने श्रद्धालुओं से शिवालय आने की बजाय घरों में ही पूजा करने की अपील भी की है।
बच्चों और बुजुर्गों से मंदिर न जाने की अपील
मंदिर समितियों ने मंदिरों के बाहर सैनिटाइजर रखे हैं। बड़े मंदिरों में दिन में दो से तीन दफा सैनिटाइजेशन करवाने की व्यवस्था भी की गई है। मंदिर समितियों ने मूतिर्यों के सम्मुख जगह-जगह प्रसाद न चढ़ाने, बच्चे व बुजुर्गों को मंदिर नहीं आने की अपील भी की है।
पर्वतीय क्षेत्र में संक्रांति से मनाया जाता है पहला सावन
बता दें कि, पर्वतीय क्षेत्र में संक्रांति से संक्रांति तक सावन मनाते हैं, जिसका पहला सोमवार आज है। वहीं, मैदानी क्षेत्रों में 26 जुलाई को सावन का पहला सोमवार होगा। देहरादून शहर में गढ़ी कैंट स्थित टपकेश्वर महादेव मंदिर, जंगम शिवालय पलटन बाजार, प्राचीन शिव मंदिर धर्मपुर, पृथ्वीनाथ महादेव मंदिर सहारनपुर चौक, सिद्धेश्वर महादेव मंदिर बंजारावाला, हनुमान मंदिर आराघर चौक, कमलेश्वर महादेव जीएमएस रोड, शिव शक्ति मंदिर सरस्वती विहार समेत कई शिवालयों में लोग जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। इस बार कोरोना को देखते हुए मंदिर समिति और पंडितों ने घर पर ही पूजा करने की अपील की है।
दूर से भगवान शिव के दर्शन
टपकेश्वर व जंगमेश्वर महादेव मंदिर में सोमवार सुबह चार बजे शिव की आराधना कर दूध, दही, घी से उनका अभिषेक किया गया। इसके बाद विशेष पूजा की गई। कई मंदिरों में समिति के सदस्य रविवार को हरिद्वार से वाहन में गंगाजल ले जाए हैं। रुद्राभिषेक व अन्य कार्यक्रम 26 से शुरू होंगे एवं 15 अगस्त का सामूहिक रुद्राभिषेक एवं भंडारा होगा।
शारीरिक और आत्मिक शुद्धि का आधार
श्रावण मास में की जाने वाली भगवान शिव की पूजा- अर्चना भक्तों के मनोरथ को पूर्ण करने के साथ  उनके मन-मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। साथ ही इस मास में उपवास करने से भक्तों की आंतरिक (शारीरिक) शुद्धि भी होती है। वस्तुतः श्रावण मास में की जाने वाली भगवान शिव की पूजा-अर्चना से एक साथ भक्त को दो महान उपलब्धि प्राप्त हो जाती हैं। इस व्रत से शारीरिक विकार तो दूर होते ही हैं साथ ही भक्ति से मानसिक पुष्टि को बल मिलता है। श्रावण मास में व्रत, पूजन व शिवभक्ति में लीन रहने वाले व्यक्ति की गरिष्ठ भोजन जैसे-मांस, अंडे, लहसुन, प्याज आदि से भी अपेक्षित दूरी बनी रहती है। इस प्रकार वर्षाकाल में गरिष्ठ भोजन का त्याग और उपवास करने से पूरे वर्ष पर्यंत तक शारीरिक आरोग्यता प्राप्त की जा सकती है।
श्रावण मास में शिव पूजा ही क्यों
मान्यता अनुसार माता सती ने भगवान शिव को हर जन्म में पाने का प्रण लिया था। एक बार माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से रुष्ठ होकर उन्हीं के घर में स्वयं का शरीर योगाग्नि से जलाकर त्याग दिया था। इसके बाद उन्होंने हिमालय के राजा हिमाचल के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। माता पार्वती ने सावन के महीने में भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की व शिव को पति रूप में वरण किया,यही कारण है कि भगवान शिव को सावन का महीना विशेष प्रिय है।
यह भी है अहम कारण
मान्यता है कि सावन के महीने में ही भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष का पान किया था। जिससे देवताओं का संकट दूर हो गया था, जिससे उन्होंने  आदर और सम्मान व्यक्त करते हुए भगवान शिव का जल अभिषेक किया। इसके पीछे देवताओं का यह भी भाव था कि,हलाहल विष अति घातक और ज्वलनशील होता है, लिहाजा कहीं इसके ताप से भगवान शिव पीड़ा महसूस नहीं करें लिहाजा देवताओं ने भगवान शिव का जल से अभिषेक किया,इस प्रकार अनादि काल से श्रावण के महीने में भगवान शिव की पूजा और अभिषेक की परम्परा अनवरत चली आ रही है।
श्रावण माह के सोमवार विशेष फलदायी
सात दिनों में यानी कि सोमवार से लेकर रविवार तक सभी दिन किसी न किसी देवता या ग्रह से संबंधित हैं। इसी क्रम में  सोमवार का दिन भगवान  शिव से संबंधित है। साथ ही यह मास (श्रावण) भगवान शिव  को विशेष प्रिय है। अतः भगवान शंकर के अति प्रिय महीने में प्रिय दिन सोमवार  का संयोग स्वतः ही विशिष्ट हो जाता है। यही कारण है कि सावन मास के सोमवार को की जाने वाली शिव पूजा व शिवलिंग पर अभिषेक से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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