हिमालय की सुंदरता को आर्ट गैलरी में सजाने वाले प्रसिद्ध छायाकार स्वामी सुंदरानंद का देहरादून में निधन
उत्तरकाशी के गंगोत्री धाम में हिमालय की सुंदरता को आर्ट गैलरी के रूप में सजाने वाले स्वामी सुंदरानंद का देहरादून निधन हो गया। वह कोरोना संक्रमित भी हुए थे और स्वस्थ भी हो गए थे। वह 95 वर्ष के थे। देहरादून स्थित डॉ. अशोक लुथरा के अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। स्वामी सुंदरानंद की गंगोत्री में गौरीकुंड के पास तपोवन कुटिया है। यहीं पर उन्होंने तपोवन आर्ट गैलरी बनाई है। इस गैलरी में उत्तराखंड की खूबसूरती को प्रदर्शित करने वाले फोटो सजाए गए हैं। साथ ही यहां स्लाइड शो के माध्यम से भी लोगों को पहाड़ों की सुंदरता से अवगत कराया जाता है। उनकी पार्थिव देह गंगोत्री लाई जाएगी। यहीं तपोवन कुटिया के निकट उन्हें भू समाधी दी जाएगी।
बताया गया कि स्वामी सुंदरानंद 25 अक्टूबर को गंगोत्री से नीचे आ गए थे। इसके बाद वह कोरोना संक्रमित हुए और देहरादून स्थित सिनर्जी अस्पताल में उनका इलाज चला। यहां से स्वस्थ होने के बाद वह देहरादून में डॉ. अशोक लुथरा के घर चले गए। डॉ. लुथरा उनके भक्तों में एक हैं। यहां उनके अस्पताल में स्वामी का इलाज चल रहा था। स्वामी को किडनी संबंधी परेशानी थी। कल रात का भोजन करने के बाद उन्होंने कुछ देर बातचीत भी की। इसके बाद शरीर को त्याग दिया। स्वामी जी की पार्थिव देह आज उत्तरकाशी लाई जाएगी। कल तपोवन स्थित कुटिया के निकट उन्हें भू समाधी दी जाएगी।
स्वामी सुंदरानंद का जन्म आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में 1926 में हुआ था। बचपन से ही उन्हें पहाड़ों के प्रति आकर्षण था। 1947 में वह पहली बार उत्तरकाशी और यहां से गोमुख होते हुए आठ किलोमीटर दूर तपोवन पहुंचे। कुछ समय तपोवन बाबा के सानिध्य में रहने के बाद उन्होंने संन्यास ले लिया।
बताया जाता है कि 1955 में 19510 फुट की ऊंचाई पर कालिंदी खाल से गुजरने वाले गोमुख-बदरीनाथ पैदल मार्ग से स्वामी सुंदरानंद अपने साथियों के साथ बदरीनाथ की यात्रा पर थे। अचानक बर्फीला तूफान आ गया और अपने सात साथियों के साथ वे किसी तरह बच गया। यहीं से उन्होंने हिमालय के विभिन्न रूपों को कैमरे में उतारने की ठान ली। 25 रुपये में एक कैमरा खरीदा और फोटोग्राफी करने लगे।
भारतीय सेना के रह चुके पथ प्रदर्शक
गंगोत्री हिमालय के हर दर्रे तथा ग्लेशियर एवं गाड़-गदेरों (बरसाती नाले) से परिचित स्वामी सुंदरानंद वर्ष 1962 के चीनी आक्रमण में भारतीय सेना की बार्डर स्काउट के पथ प्रदर्शक रह चुके हैं। भारत-चीन युद्ध के दौरान वह सेना के पथ प्रदर्शक भी रहे। एक माह तक साथ रहकर उन्होंने कालिंदी, पुलमसिंधु, थागला, नीलापाणी, झेलूखाका बार्डर एरिया में सेना का मार्गदर्शन किया।
ढाई हजार से अधिक फोटो का संग्रहण
हिमालय में अपने सफर के दौरान उन्होंने करीब ढाई लाख तस्वीरों का संग्रह किया है। जिसमें अधिकांश फोटो गंगोत्री में स्थित उनकी आर्ट गैलरी में प्रदर्शित हैं। वर्ष 2002 में उन्होंने अपने अनुभवों को एक पुस्तक ‘हिमालय : थ्रू ए लेंस ऑफ ए साधु’ में प्रकाशित किया। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।