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February 4, 2025

कुमाऊनी बोली और संस्कृति को सामने रख रची गयी हैं फाल्गुनी फुहारें

मातृभाषा दिवस आया और चला गया। अधिकांश लोग तो इस दिवस के नाम पर सिर्फ परंपरा निभाते नजर आते हैं। इस दिन सबको मातृ भाषा की याद आई। उन लोगों को भी जो मातृ भाषा का दंभ भरत हैं, लेकिन स्थानीय भाषाओं पर लिखी सामग्री को फूटी आंख तक नहीं देखते हैं।

मातृभाषा दिवस आया और चला गया। अधिकांश लोग तो इस दिवस के नाम पर सिर्फ परंपरा निभाते नजर आते हैं। इस दिन सबको मातृ भाषा की याद आई। उन लोगों को भी जो मातृ भाषा का दंभ भरत हैं, लेकिन स्थानीय भाषाओं पर लिखी सामग्री को फूटी आंख तक नहीं देखते हैं। यानी पढ़ते तक नहीं। ऐसे लोग भी सुबह से ही मातृ भाषा को जिंदा रखने के संदेश व्हाट्सएप पर सुबह से शाम तक एक दूसरे को भेजकर चिंता जाहिर करते नजर आए। अब उनसे ही पूछो कि अपने दिल पर हाथ रखकर कहो कि वे मातृ भाषा को लेकर कितने जागरूक हैं। क्या वे स्थानीय बोली पर लिखने वालों की रचनाओं को पढ़ने के लिए दो मिनट का समय निकालते हैं, या फिर हैडिंग को देखकर ही संतोष कर लेते हैं। ऐसा यहां इसलिए भी कहा जा रहा है है, क्योंकि ये सच्चाई है। वहीं, लिखने वाला भी इसी उम्मीद में रहता है कि उसे खूब पढ़ा जाए। इसके विपरीत अधिकांश लिखने वाले दूसरे की रचना को पढ़ते तक नहीं। इसके विपरीत मातृभाषा पर जो लोग काम कर रहे हैं, उनके प्रयास निरंतर जारी हैं।
ऐसे में उत्तराखंड में चंपावत जनपद के जगदंबा कलोनी चांदमारी लोहाघाट से प्रकाशित होने वाली वार्षिक सांस्कृतिक पुस्तक फाल्गुनी फुहारें का जिक्र करना यहां बेहद जरूरी है। फुहारें पुस्तक श्रृंखला में यहां पर्वतीय क्षेत्रों में गये जाने वाले अनेक भजन, गीत, लोकगीत और होली के गीतों का संकलन किया जाता रहा है। अब तक चार अलग अलग स्वरचित और संकलित रचनाओं को पिरोकर प्रकाशित इस पुस्तक में पहाड़ की लगभग सांस्कृति झलक देखने को मिलती है। शिक्षा शास्त्र से एमए संकलनकर्ता हिमानी गहतोड़ी और उनके पति ललित मोहन गहतोड़ी फुहारें प्रकाशन के तहत होली एवं भजन आदि की सांस्कृतिक पुस्तक प्रकाशन का कार्य कर रहे हैं।
फुहारें पुस्तक के संपादक ललित मोहन गहतोड़ी ने बताया कि उन्होंने कुमाऊनी संस्कृति को ध्यान में रखते हुए फुहारें श्रृंखला के तहत अब तक चार एडिशन प्रकशित कर दिए हैं। प्रत्येक पुस्तक के प्रकाशन पर उन्हें लोगों का काफी सहयोग मिला है। कहना है कि वह जल्द ही कुमाऊनी संस्कृति पर आधारित वसंत फुहारें नाम से पांचवां विशेषांक प्रकाशित करने जा रहे हैं। जिसके प्रकाशन हेतु प्रत्येक वर्ष की तरह एक बार फिर संकलन कार्य जारी है।
होली गायन में प्रकाशित पुस्तकों का योगदान
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के गांवों में लोग आज भी भजन आदि गायन के लिए हाथों में डायरियां लिए होते हैं। इन डायरियों का संकलन धीरे धीरे पुस्तकों के रूप में प्रकाशित होकर सामने आता जा रहा है। इन दिनों बाजार में भजन, होली और लोकगीतों की पुस्तकें एक बार फिर आसानी से बाजार में उपलब्ध हैं। इन प्रकाशित पुस्तकों के माध्यम से लोगों को भजन, गीत, लोकगीत और होली गायन में सहायता मिल रही है।


फाल्गुनी फुहारें के संपादक का परिचय
नाम-ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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