पीएमएलए में ईडी को गिरफ्तारी का अधिकार बरकरार, प्रक्रिया में मनमानी नहींः सुप्रीम कोर्ट

इसके साथ ही कोर्ट ने रेड, जब्ती और गिरफ्तारी की शर्तें बरकरार रहेंगी। हालांकि गिरफ्तारी की वजह बताना होगा। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि जांच के दौरान ED, SFIO, DRI अधिकारियों (पुलिस अफसर नहीं) के सामने दर्ज बयान भी वैध सबूत हैं। इसके साथ ही बेंच ने कहा कि आरोपी को ECIR (शिकायत की कॉपी) देना भी जरूरी नहीं है। यह काफी है कि आरोपी को यह बता दिया जाए कि उसे किन आरोपों के तहत गिरफ्तार किया जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
PMLA कानून के तहत गिरफ्तारी, जमानत देने, संपत्ति जब्त करने का अधिकार CrPC के दायरे से बाहर है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में PMLA एक्ट को असंवैधानिक बताते हुए कहा गया था कि इसके CrPC में किसी संज्ञेय अपराध की जांच और ट्रायल के बारे में दी गई प्रक्रिया का पालन नहीं होता है, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने PMLA एक्ट के तहत ईडी के अधिकार को बरकार रखा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जस्टिस खानविलकर ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सवाल ये था कि कुछ संशोधन किए गए हैं, वो नहीं किए जा सकते थे। संसद द्वारा संशोधन किया जा सकता था या नहीं, ये सवाल हमने 7 जजों के पीठ के लिए खुला छोड़ दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, धारा 3 के तहत अपराध अवैध लाभ पर आधारित हैं। 2002 कानून के तहत अधिकारी किसी पर तब तक मुकदमा नहीं चला सकते जब तक कि ऐसी शिकायत किसी सक्षम मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं की जाती हो। धारा 5 संवैधानिक रूप से मान्य है। यह एक संतुलनकारी कार्य प्रदान करता है और दिखाता है कि अपराध की आय का पता कैसे लगाया जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ईडी अधिकारियों के लिए मनी लॉन्ड्रिंग मामले में किसी आरोपी को हिरासत में लेने के समय गिरफ्तारी के आधार का खुलासा करना अनिवार्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी ट्रांसफर याचिकाओं को वापस संबंधित हाईकोर्ट को भेज दिया। जिन लोगों को अंतरिम राहत है, वह चार हफ्ते तक बनी रहेगी। जब तक कि निजी पक्षकार अदालत से राहत वापस लेने की मांग ना करें।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।