गधाः मेहनती या भोला या शातिर, इंसान से तुलना करना होगी बेईमानी
सुबह के समय पड़ोस में रहने वाले बुजुर्ग अपने बेटे पर किसी बात को लेकर नाराज हो रखे थे। वह उसे गुस्से में गधा कह रहे थे। बेरोजगार बेटे से कहे बुजुर्ग के शब्द मेरे कानों में पड़ रहे थे- नालायक, गधा, कुछ काम का नहीं है।

बचपन में धोबी के गधे की कहानी सुनी व पढ़ी थी। जो रात को चोर के घर आने पर धोबी के कुत्ते से भौंकने को कहता है। कुत्ता भौंकता नहीं। गधे को बुरा लगता है। कुत्ता मालिक की मार से त्रस्त था। वह चाहता है कि चोर सब कुछ ले जाएं, तभी मालिक को सबक मिलेगा। गधे को कुत्ते का व्यवहार गलत लगता है। मेहनती गधा खुद ही ढेंचू-ढेंचू करने लगता है। चोर भाग जाते हैं। धोबी की नींद खुलती है। उसे गधे के रात के समय चिल्लाने पर क्रोध आता है। वह डंडे से उसकी पिटाई कर देता है।
शायद ऐसा होता है गधा। या फिर भोलापन होता है उसके व्यवहार में। ऋषिकेश में एक स्कूल के गेट के पास एक ठेली की बंद टिक्की काफी फेमस थी। वर्ष 94 से 95 तक दो साल मैं भी ऋषिकेश में रहा। तब मुझे अमर उजाला से वहां भेजा गया था। एक दिन मैं भी इस फेमस ठेली वाले के पास बंद टिक्की खाने पहुंच गया। सामने मैदान में कई गधे चर रहे थे। मैने जैसे ही एक बंद टिक्की ली और खाने लगा तो सामने एक गधा खड़ा हो गया। मुझे लगा कि यह मुझसे बंद टिक्की चाह रहा है। मैने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया। गधे ने बंद टिक्की खाने की बजाय उछल-कूद शुरू कर दी। वह चिल्लाने लगा। दुलत्ती को जोर-जोर से झाड़ने लगा। फिर उसने मैदान के चक्कर लगाने शुरू कर दिए।
उसने बंद टिक्की खाई नहीं और उसकी ये हरकत देख मुझे ताजुब हुआ। मैने टिक्की बेचने वाले बाबा से पूछा कि बाबा ये गधा ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है। इस पर उसने बताया कि बेटा ये सब शरारती छात्रों की वजह से है। स्कूल के बच्चों ने यहां के गधों को परेशान कर रखा था। उसका नतीजा है कि यहां के गधे बंद टिक्की को देखकर घबराने लगते हैं। मुझे बाबा की बातें रोचक लगी। मैने एक बंद टिक्की और ली और बातों का क्रम आगे बढ़ाया कि आखिर परेशान कैसे किया गया इन गधों को। तब बाबा ने बताया कि एक बच्चा गधे को बंद टिक्की खाने को देता। इसी दौरान दूसरा आसपास खड़े स्कूटर से पेट्रोल निकालकर उससे भीगा कपड़ा गधे की दुम के नीचे लगा देता है। या फिर कई बार उसके पीछे पटाखे फोड़े जाते। जैसे ही गधा बंद टिक्की खाता, उसी दौरान शरारत हो जाती।
गधा परेशान होता। चिल्लाता और दुलत्ती झाड़ता। मैदान के चारों ओर चक्कर मारता। जब ऐसा क्रम हर दिन होने लगा तो गधों ने समझा कि हो न हो ये बंद टिक्की खाने से ही ऐसा होता है। ऐसे में वे बंद टिक्की देखकर वैसा व्यवहार करने लगते हैं, जो छात्रों की शरारत के बाद उन्हें परेशानी में डाल देता है। वाकई गधा तो कितने आगे की सोचता है। उसे यह भी पता है कि इस बंद टिक्की से उसकी शामत आने वाली है। ऐसे में वह उसे खाने की बजाय उछलकूद मचाने लगता है।
ऐसे सीधे प्राणी से किसी मानव की संज्ञा करना कितना गलत है। वो भी उस मानव से जो निकम्मा है और इसके विपरीत गधा काम करता है। यहां तो ऐसे गधे चाहिए जो गधे तो दिखते है, लेकिन हों शातिर। तभी वे इस जीवन में सफल हो सकते हैं। ऐसा ही एक धोबी का गधा था। घाट पर धोबी कपड़ों की बड़ी गठरी गधे की पीट पर लादता और उसे डंडा मारता। इसके बाद गधा चुपचाप चलता और धोबी के घर जाकर ही रुकता। घर पहुंचकर धोबी उसकी पीठ से कपडे उतारता और फिर एक डंडा मारने के बाद उसे खूंटे से बांध देता।
गधे को धोबी की हर हरकत की आदत पड़ गई। गधा मेहनती था और धोबी आलसी। धीरे-धीरे धोबी ने गधे को घर आने के बाद डंडा तो मारा, लेकिन खूंटी में उसे बांधना छोड़ दिया। गधा तो भोला था। डंडा खाने के बाद वह यही महसूस करता कि उसे खूंटे से बांध दिया गया है। वह खूंटे से कहीं नहीं हिलता। एक दिन गधा गायब हो गया। धोबी को याद था कि उसने उसे डंडा मारा और खूंटे के पास छोड़ दिया। फिर गधा कहां गायब हो गया। वह खुद को बंधा महसूस क्यों नहीं कर पाया। धोबी ने गधे को काफी तलाशा। एक जगह वह मिल भी गया। देखा कि गधा कचरे के ढेर में पड़ी एक किताब को खा रहा है। किताब में लिखा था- मनुष्य का मनोविज्ञान।
भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।