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June 22, 2025

अपनी मर्जी से ना खाएं एंटीबायोटिक दवा, हो सकता है लीवर डैमेज, जानिए बच्चों को विटामिन डी देने का सरल तरीका

आजकल एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल ज्यादा बढ़ रहा है। बहुत से लोग बिना किसी डॉक्टर की सलाह के भी इनका इस्तेमाल करने लगे हैं। यह सेहत के लिए नुकसानदायक है। इससे भविष्य में कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है। ऐसे में इनके इस्तेमाल को लेकर सावधानी बरतना आवश्यक है। जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक का इस्तेमाल आपको गंभीर रूप से बीमार कर सकता है। WHO की ताजा एक रिसर्च के मुताबिक एक नए आंकड़े काफी ज्यादा हैरान करने वाले हैं। हम इस लेख में एंटीबायोटिक के ज्यादा इस्तेमाल के खतरों को बताने के साथ ही ये भी जानकारी दे रहे हैं कि शिशुओं के लिए कौन से विटामिन जरूरी हैं। बच्चों को विटामिन डी देने का सबसे आसान तरीका क्या है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कब करते हैं लोग इस्तेमाल
अक्सर लोग बुखार या कोल्ड-कफ के दौरान एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। कफ-कोल्ड, शरीर में दर्द, बुखार या एलर्जी में अक्सर लोग एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर लेते हैं। अगर आप भी ऐसा कुछ करते हैं तो बिल्कुल भी न करें। क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की हालिया रिसर्च काफी डराने वाली है। इस दवा का ज्यादा इस्तेमाल इंसानियत के सामने ‘एंटी माइक्रो-बियल रेजिस्टेंस’ का खतरा पैदा हो रहा है, जो किसी भी महामारी से बड़ा खतरा बनकर उभरा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बैक्‍टीरिया की वजह से हर साल लाखों लोगों की मौत
बैक्‍टीरियल संक्रमण की वजह से मौत का आकंड़ा बहुत बड़ा है। यह ऐसे बैक्‍टीरिया का हमला होता है, जिन पर किसी भी एंटीबायोटिक दवा का असर नहीं हो रहा था। ये बैक्‍टीरिया एंटीबैक्टीरियल दवाओं के प्रति रेजिस्‍टेंट हो चुके हैं और लगभग सुपर बग बन गए थे। बैक्‍टीरिया की इस स्थिति को मेडिकल क्षेत्र में एंटी माइक्रोबियल रेजिस्‍टेंस कहा जाता है।
‘एंटी माइक्रो-बियल रेजिस्टेंस’ यानि AMR दुनिया में हर साल 50 लाख लोगों की मौत होती है। यही हाल रहा तो साल 2050 तक मौत का आंकड़ा 1 करोड़ के पार चला जाएगा। इस बात से अंदाजा लगा सकता है कि कोविड महामारी ने 3 साल में 70 लाख लोगों की मौत हो गई। AMR की वजह से एक साल में 1 करोड़ लोगों की मौत हो गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

एएमआर के बारे में
एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बैक्टीरिया को मारने के लिए किया जाता है, लेकिन अगर कोई व्यक्ति बार-बार एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर रहा है तो बैक्टीरिया उस दवा के खिलाफ अपनी इम्युनिटी डेवलप कर लेती है। इसके बाद इसे ठीक करना काफी ज्यादा मुश्किल होता है। इसे ही एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) कहते हैं। ऐसी स्थिति में इलाज तो ठीक से हो नहीं पाता, बल्कि लिवर में टॉक्सिन जमा होने लगता है। साथ ही साथ लिवर डैमेज होने का खतरा भी बढ़ जाता है। इसकी शुरुआत फैटी लिवर से होती है। धीरे-धीरे यह सिरोसिस- फाइब्रोसिस में बदल जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

लीवर का काम
शरीर का सबसे महत्वपूर्ण ऑर्गन लिवर होता है। इसका वजन 1.5 किलो के आसपास होता है। लिवर का काम होता है शरीर की गंदगी को फिल्टर करना। यानि आपके शरीर को डिटॉक्स करने का काम लिवर करता है। ऐसे में तला-भुना और मसालेदार खाना खाने से बचना चाहिए। साथ ही जंक, रिफाइंड शुगर खाने से बचना चाहिए। अगर आप इन सबको ठीक समय पर कंट्रोल नहीं किए तो फैटी लिवर की बीमारी हो सकती है। फैटी लिवर की बीमारी के कारण- मोटापा, हाई कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज, थायराइड, स्लीप एप्निया आदि का खतरा रहता है।
नोटः इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ऐसी स्थिति में दवा नहीं करती काम
दवा के काम करने की स्थिति तब आती है जब कोई बैक्‍टीरिया, फंगस, वायरस या पैरासाइट दवा के प्रति रेजिस्‍टेंट हो जाता है और बग या सुपर बग बनने लगता है। वह समय समय पर अपना रूप बदलने लगता है और कोई भी दवा उसके खिलाफ काम न‍हीं कर पाती है। यह स्थिति काफी खतरनाक होती है क्‍योंकि इस स्थिति में बीमारी का इलाज नहीं हो पाता है और मरीज की मौत हो जाती है। ऐसे में डॉक्टर की सलाह के बिना एंटीबायोटिक (एंटीमाइक्रोबियल) दवाओं का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। यह काफी नुकसानदेह हो रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ना करें ते गललितां
-पहली गलती है बिना डॉक्‍टरी सलाह के, रिश्‍तेदार के कहने या खुद की मर्जी से एंटीबायोटिक दवाओं को लेना। हमेशा याद रखें कि एंटीबायोटिक दवाएं चिकित्‍सकीय सलाह से ली जाएं।
-दूसरी गलती है लोग एंटीबायोटि‍क दवाओं का कोर्स पूरा नहीं करते। जैसे ही बीमारी में फायदा पड़ता है लोग दवाओं को लेना बंद कर देते हैं। पांच दिन के बजाय दो चार दिन ही एंटीबायोटिक लेते हैं। या रोजाना की पूरी खुराक नहीं लेते हैं और गैप कर देते हैं। ऐसा करना सबसे खराब है। एक बार ऐसा कर दिया तो अगली बार यह दवा बैक्‍टीरिया पर असर करना बंद कर देती है और बैक्‍टीरिया इसके प्रति रेजिस्‍टेंट हो जाता है।
-तीसरी सबसे बड़ी गलती है कि कल्‍चर टेस्‍ट के बाद ही ये दवाएं प्रिस्क्राइब करें। जैसे किसी को सीने में संक्रमण है तो बलगम का कल्‍चर कराकर ही दवा दें। अगर पहले ही एंटीबायो‍टिक दवा खा ली जाए तो इससे कल्‍चर टेस्‍ट गड़बड़ा जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

एंटीबायोटिक्‍स से बन जाते हैं सुपर बग
जब इनमें से एक भी गलत तरीके से एंटीबायोटिक्‍स ली जाती हैं तो फिर बैक्‍टीरिया सुपर बग बन जाते हैं, जो आजकल आईसीयू आदि में मिलते हैं। ये वे मरीज होते हैं जिनपर कोई एंटीबायोटिक्‍स काम नहीं करती, या फिर एक या दो दवाएं ही काम कर पाती हैं। इन मरीजों के शरीर में सभी एंटीबायोटिक दवाएं बैक्‍टीरिया रेसिस्‍टेंट हो चुकी होती हैं। इसका नुकसान यह होता है कि फिर व्‍यक्ति को कोई इलाज नहीं मिल पाता या उसके शरीर पर कोई इलाज काम नहीं करता और मरीज मौत के मुंह में चला जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बच्चों को विटामिन जरूरी
छह महीने से कम उम्र के शिशु के लिए कुछ विटामिन विशेष रूप से जरूरी होते हैं। क्योंकि इस आयु में बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास बहुत तेजी से होता है। खासकर विटामिन डी, विटामिन A, आयरन, कैल्शियम, फोलिक एसिड और विटामिन सी जैसे विटामिन इन बच्चों के लिए बेहद जरूरी होते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये काम करते हैं विटामिन
ये विटामिन बच्चों की हड्डियों के विकास, दिमागी क्षमता को बढ़ाने और रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने में मुख्य निभाते हैं। शिशु को मां के दूध से लगभग सभी प्रकार के विटामिन मिल जाते हैं जो उनके लिए बेहद जरूरी होते हैं। वहीं, विटामिन D सीधे सूरज की धूप से प्राप्त किया जा है। इस विटामिन का शिशु में सबसे ज्यादा कमी हो रही है। इसलिए डॉक्टर नवजात शिशु को रोजाना सही समय पर धूप लेने की सलाह देते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इसलिए नहीं मिल पा रही धूप
विटामिन डी को आमतौर पर धूप से मिलने वाले विटामिन के रूप में जाना जाता है। ये हमारे शरीर में तब बनता है जब त्वचा पर सूरज की किरणें पड़ती हैं। आज कल बहुमंजिली इमारतों और घने होते जा रहे मोहल्लों में शिशु, बच्चों और बड़े सभी को धूप ठीक तरह से नहीं मिल पा रही है। साथ ही घर में भी हमेशा नमी बनी रहती है। वहीं कुछ लोग अपने घरों में चारों तरफ से इतने पर्दे आदि लगा कर रखते हैं कि सूर्य की किरण घरों के अंदर पहुंच ही नहीं पाती। यही वजह है कि धूप न मिलने के कारण शिशुओं में विटामिन डी की कमी हो रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

विटामिन डी की कमी से नुकसान
विटामिन D शिशु के शरीर के लिए एक बेहद आवश्यक पोषक तत्व है। विटामिन D का सीधा संबंध हड्डियों और दांतों के सही विकास से है। यह विटामिन कैल्शियम और फॉस्फोरस को अवशोषित करने में मदद करता है, जिससे हड्डियां मजबूत एवं घनी होती हैं। शिशुओं में विटामिन D की कमी से हड्डियों का नरम होना, रिकेट्स रोग और दातों के विकास संबंधी समस्याएं होती हैं। विटामिन डी के महत्व को देखते हुए डॉक्टर नवजात शिशुओं को विटामिन डी सप्लीमेंट लेने की सलाह देते हैं। यह सप्लीमेंट ड्रॉप के रूप में होता है जो शिशु को रोजाना दिया जा सकता है।
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Bhanu Prakash

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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