एक बार में अधिक न खाएं भोजन, रखें ये ध्यान, रहोगे फिट, बता रहे हैं एम्स के एक्सपर्ट
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के अंतर्गत कैंसर ओपीडी में मरीजों के लिए आहार एवं पोषण संबंधी जनजागरुकता कार्यक्रम आयोजित किया गया।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के अंतर्गत मंगलवार को निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत की देखरेख में कैंसर ओपीडी में मरीजों के लिए आहार एवं पोषण संबंधी जनजागरुकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें मरीजों को गैर संचारी बीमारियों से बचाव के लिए दिनचर्या संतुलन व आवश्यक आहार एवं पोषण संबंधी जानकारियां दी गई। इस अवसर पर निदेशक एम्स पद्मश्री प्रो. रवि कांत ने बताया कि बच्चों तथा महिलाओं में कुपोषण का कारण संतुलित आहार एवं पोषण का नहीं होना है। उन्होंने पोषण के बारे में चर्चा में बताया कि महिलाओं का सही पोषण नहीं होने से ही बच्चों तथा महिलाओं में अनेक स्वास्थ्य संबंधी विकार उत्पन्न होते हैं। इससे बच्चे के शारीरिक विकास पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। उन्होंने बताया कि पोषक आहार मनुष्य को जीवन में निरोगी बनाने में काफी हद तक मददगार साबित होता है।संस्थान के डीन एकेडमिक प्रो. मनोज गुप्ता ने बताया की गलत खान-पान ही मोटापा, कैंसर, मधुमेह जैसे रोगों का मुख्य कारण है।उन्होंने बताया कि भोजन से मिलने वाला सही पोषण पर ही शरीर में बनने वाले एंजाइम्स निर्भर करते हैं और यह एंजाइम्स शरीर को इन रोगों से बचाने में मदद करते हैं। जनजागरुकता कार्यक्रम में संस्थान की आहार एवं पोषक विशेषज्ञ डा.अनु अग्रवाल ने बताया कि गैर संचारी बीमारियां दीर्घकालिक होती हैं। इसमें डायबिटीज ( मधुमेह), ब्लड प्रेशर ( उच्च रक्तचाप), कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां, कैंसर, थायराइड आदि मुख्यरूप से शामिल हैं। उन्होंने इस तरह की बीमारियों की शुरुआत व उसके उत्पन्न होने संबंधी कारणों की जानकारी दी । उन्होंने ओपीडी में आए मरीजों व उनके तीमारदारों का जागरुक करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा गैर संचारी बीमारियों से होने वाली मृत्यु दर की जानकारी दी। बताया कि भारत में 5.8 मिलियन लोगों की मृत्यु गैर संचारी बीमारियों जैसे कि उच्च रक्तचाप, कैंसर, मधुमेह तथा थायराइड संबंधी बीमारियों से होती है।
गैर संचारी बीमारियों कम करने के उपाय
– हमेशा मनुष्य को स्वच्छ तथा स्वास्थ्यवर्धक खाना ही खाना चाहिए।
– मनुष्य को हमेशा अपने काम तथा अपने शरीर की क्षमता के अनुसार खाना चाहिए तथा उन्हें अपने शरीर को पढ़ना तथा समझना आना चाहिए ताकि वह यह सुनिश्चित कर सके कि आज उनके शरीर को खाने की कितनी आवश्यकता है।
– प्रत्येक व्यक्ति को इस बीमारियों को कम करने के लिए प्रति सप्ताह करीब 150 मिनट व प्रतिदिन 25 से 30 मिनट सक्रिय शारीरिक व्यायाम करना चाहिए।
– एक बार में अधिक नहीं खाना चाहिए, दिनभर में करीब 5 से 6 बार थोड़ा थोड़ा भोजन करना चाहिए। जिसमें कि 3 बार पौष्टिक आहार लें, जिसमें सभी प्रकार के खाद्य समूह मौजूद हों, साथ ही सुबह से शाम तक खाने की मात्रा को कम करते जाएं। सुबह सबसे ज्यादा भोजन लें व उसके बाद धीरे-धीरे खाने की मात्रा कम करते जाएं।
-हानिकारक पदार्थों जैसे तंबाकू तथा शराब का उपयोग नहीं करें।
– स्वास्थ्य के प्रति जागरुक रहें तथा अपने आसपास के लोगों को भी जागरुक करें ताकि हम सब मिलकर स्वस्थ समाज की परिकल्पना को साकार कर सकें।
डीएमडी जागरूकता दिवस मनाया
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत के मार्गदर्शन में डीएमडी अवेयरनैस डे मनाया गया। जिसमें विशेषज्ञ चिकित्सकों ने बच्चों में अनुवांशिकरूप से पाई जाने वाली ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी पर चर्चा की। साथ ही उन्होंने इसके कारणों, लक्षणों व इससे बचाव की जानकारी भी दी। संस्थान के बालरोग विभाग की ओर से संगोष्ठी का आयोजन किया गया। बालरोग विभागाध्यक्ष डा. नवनीत कुमार बट्ट ने बताया कि विभाग द्वारा आगे भी इस तरह के जनजागरुकता कार्यक्रमों का नियमिततौर पर आयोजन किया जाएगा।
विभाग के विशेषज्ञ चिकित्सक डा. प्रशांत कुमार वर्मा ने बताया कि ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बच्चों में सबसे आम अनुवांशिक मस्कुलर डिस्ट्रॉफी है। यह विश्वस्तर पर अनुमानित 3,500 पुरुषों में से एक व्यक्ति में पाई जाती है। यह बीमारी डीएमडी जीन में परिवर्तन के कारण होती है। उन्होंने बताया कि इस बीमारी में मांस पेशियों की कोशिकाओं में संकुचन और विश्राम में अंतर आ जाता है, जिसके कारण शरीर की मांस पेशियां कमजोर पड़ जाती है।
यह एक्स-लिंक्ड तरीके से फैलता है, इसलिए महिलाओं में यह रोग आम नहीं है। प्रभावित पुरुषों में अंगों में प्रगतिशील कमजोरी होती है और लगभग 4 से 5 वर्ष की आयु में पैर की मांसपेशियों की अतिवृद्धि होती है। उन्हें सालाना चेक-अप और फिजियोथेरेपी की जरूरत होती है। अगले पुरुष भाई-बहन में बीमारी का पुनरावृत्ति जोखिम 50% तक है और परिवार में बीमारी को रोकने के लिए प्रसव पूर्व निदान सबसे अच्छा तरीका है। उन्होंने बताया कि एम्स संस्थान के बाल रोग एवं चिकित्सा विभाग में इस बीमारी की परीक्षण सुविधाएं जल्द उपलब्ध हो जाएंगी। साथ ही वर्तमान में विभाग में प्रसव पूर्व परामर्श सहित रोग प्रबंधन के लिए विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध हैं।
डॉ. मनीषा नैथानी की देखरेख में जैव रसायन विभाग डीएमडी जीन म्यूटेशन का आणविक परीक्षण शुरू करने जा रहा है। बाल चिकित्सा हड्डी रोग सलाहकार डॉ. विवेक सिंह विकृतियों का उपचार प्रदान करते हैं। बताया गया है कि संस्थान में हड्डी रोग विभाग के डा. सन्नी चौधरी इसी रोग के नए इलाज को लेकर शोध कार्य कर रहे हैं। इस कार्यक्रम के आयोजन में बाल रोग विभाग के डा. हरि गैरे ने सहयोग प्रदान किया।





