घोड़ी पर सवार होकर आएगी देवी और कंधों पर जाएगी, इस वर्ष बन रहे हैं विध्वंसक योगः आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी
इस बार नव संवतसर में 90 साल बाद विचित्र स्थिति व परिस्थिति बन रही है। 31 गते 13 अप्रैल नव संवतसर मंगलवार के दिन दो बजकर 32 मिनट के समय सूर्य मेष राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने पर विशुवत (संवत संक्रांति) प्रारंभ हो जाएगी।
इस बार नव संवतसर में 90 साल बाद विचित्र स्थिति व परिस्थिति बन रही है। 31 गते 13 अप्रैल नव संवतसर मंगलवार के दिन दो बजकर 32 मिनट के समय सूर्य मेष राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने पर विशुवत (संवत संक्रांति) प्रारंभ हो जाएगी। इस दिन पवित्र तीर्थ स्थलों, धाम, मंदिरों, देवी के सिद्धपीठों में दिव्यता प्रकट हो जाएगी। यूं तो नव संवत का प्रारंभ मंगलवार से है। इस कारण वर्ष का राजा मंगल की कहलाएगा। मुहूर्ति चिंतामणि के श्लोक संख्या 53 में इस बात का उल्लेख है कि वृहस्पति, मेष, वृष, कुंभ, मीन राशियों को छोड़कर अन्य राशियां तीव्र गति से सौरमंडल में जब विचरण करते हैं। इस कारण संवतसर प्रतिपदा व विश्वत संक्रांति एक साथ पड़ती है। ऐसा संयोग 90 साल बाद पड़ रहा है। यहां आचार्य आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी विस्तार से बता रहे हैं।
भारतीय भौगोलिक काल गणना के अनुसार सर्वाधिक महत्व विक्रम संवत को दिया गया है। सनातन धर्मावलंबियों ने इसी क्रम में विवाह संस्कार, नामकरण, गृह प्रवेश जैसे हर शुभ कार्य को विक्रम संवत के अनुसार किए जाने का संकेत दिया है। विक्रम संवत का आरंभ 57 ई. पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर हुआ था। भारतीय इतिहास में विक्रमादित्य को न्यायप्रिय, लोकप्रिय व मानव कल्याण के रूप में माना जाता था।
नव संवत पर नवदाभक्ति और शक्ति का पूजन
यूं तो नवरात्रि का प्रारंभ 13 अप्रैल प्रातः 5 बजकर 14 मिनट से दस बजकर 24 मिनट तक घट स्थापना देवी आराधना के लिए हो जानी चाहिए। इसमें चौघड़िया के अनुसार- मेष लग्न (चरलग्न)- छह बजे से सात बजकर 35 मिनट तक।
वृष लग्न (स्थिर लग्न)-सुबह सात बजकर 35 मिनट से नौ बजकर 36 मिनट तक।
अभिजित मुहूर्त-11 बजकर 56 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक।
सिंह लग्न (स्थिर लग्न)- अपराह्न दो बजकर पांच मिनट से शाम चार बजकर 24 मिनट तक।
चौखड़िया के अनुसार विशेष नौ बजकर 11 मिनट से दो बजकर 56 मिनट तक चर लाभ और अमृत के शुभ योग घट स्थापन के लिए अति उत्तम माने गए हैं।
इसलिए विशेष है इस बार की नवरात्रि
देखा जा रहा है कि चंद्र मेष राशि पर शुक्र के साथ गोचर करते हुए यह संकेत दे रहा है कि मानव जाति अपेक्षाओं से युक्त कहीं न कहीं चंद्रमा और मंगल से प्रभावित रहेगी। बन रहा विध्वंसक योग
यूं तो नवरात्रि मंगलवार और नव संवत मंगलवार के प्रारंभ हो रही है और मंगल ही राहु के साथ वृष राशि पर अंगारक योग बना रहा है। मंगल ही राजा है और मंत्री भी है। जो कि अत्यधिक विध्वंसक योग बन रहा है। यह संकेत है कि अग्निभय, क्लेश, अशांति, दुर्घटनाएं व सामाजिक राजनीतिक उथल-पुथल, आरोप प्रत्यारोप, अधिक तूफान, भय का संकेत है। जब-जब मंगल के साथ राहु आता है, ये कई प्रकार के विध्वंशक योग को न्योता देता है।
न्याय के देवता शनिदेव के पास नहीं है विभाग
मंगलदेव की उग्रतापूर्ण दशा में संवतसर का नाम राक्षस नाम संवतसर है। जो आमजनमानस में उग्रता के साथ साथ राक्षसी प्रवृति के आचरण को करने पर मजबूर करेगा। इस संवतसर में न्याय के देवता शनिदेव के पास कोई भी विभाग नहीं है। उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया है। इस संवत में विद्वेष, भय, उग्रता, राक्षसी प्रवृति की वृद्धि होगी। यदा, कदा, दुर्भिक्ष, अकाल मृत्यु, संक्रामक रोगों से प्रभावित रहेंगे।
इस वर्ष माता घोड़ी पर आएगी और कंधों जाएगी
घोड़ी का मतलब तीव्रता और शीघ्रता से होता है। अर्थात जो भी कार्य होंगे उनमें तीव्रता और शीघ्रता दिखाई देगी। अर्थात, जो भी निर्णय लिए जाएंगे उनका समाज में तात्कालीक परिणाम दिखेगा। सामाजिक दृष्टिकोरण, आर्थिक दृष्टिकोण और व्यवहारिक दृष्टिकोण से। इस वर्ष प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह यम नियम के अनुसार सोच समझकर विचारपूर्वक बच बचकर अपने जीवन के कार्यों को करे। इसमें राजनेता, प्रशासक व भूमि व्यापारियों के लिए यह प्रभावशाली नवरात्रि है। देवी के कंधों पर जाने के अभिप्राय है कि वर्ष के अंतिम पड़ाव पर अस्त व्यस्त और पस्त होने का संकेत है। इसमें आर्थिक स्थितियों का सामना करना पड़ेगा।
नवरात्र में ऐसे करें पूजा
वर्ष के प्रारंभ में शुभ संकेत के लिए, अपने कल्याण के लिए देवी की विशेष आराधना करें। गलत कार्यों से बचें। निरंतर अनुष्ठान करें। आहार, विहार और व्यवहार पर पूरी तरह से नियंत्रण करें। अन्यथा संक्रमित हो सकते हैं।
इन बातों का रखें ध्यान
मंदिर और पूरे घर की की साफ-सफाई रखें।
अपनी स्वच्छता पर ध्यान दें।
बासी भोजन व ठंडा पानी से बचें।
रेश्मी वस्त्र से देवी का करें श्रृंगार।
सुहाग की सामग्री देवी को चढ़ाएं।
भगवती को पंचामृत व गंगाजल का अभिषेक करें।
आचार्य का परिचय
आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी
(धर्मज्ञ, ज्योतिष विभूषण, वास्तु, कथा प्रवक्ता)
चंद्रविहार कारगी चौक, देहरादून, उत्तराखंड।
फोन-9760690069
-9410743100
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।