सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली पुलिस ने दिया हलफनामा, धर्म संसद में नहीं दी गई कोई हेट स्पीच, उत्तराखंड ने ये दिया जवाब
दिल्ली में धर्म संसद हेट स्पीच मामले को दिल्ली पुलिस ने बंद कर दिया है।
गौरतलब है कि हिंदूवादी नेता यति नरसिंहानंद सरस्वती ने एक बार फिर भड़काऊ भाषण के आरोप लगे थे। इसका वीडियो भी सामने आया था। इस बार उन्होंने दिल्ली के बुराड़ी में रविवार को हुई हिन्दू महापंचायत में भड़काऊ भाषण दिया। इस महापंचायत में कई लोग पहुंचे और कई लोगों ने अपनी बात मंच पर रखी, लेकिन यति नरसिंहानंद के बोल कुछ अलग ही नजर आए। महापंचायत में कुछ पत्रकारों के साथ बदसलूकी के आरोप भी लगे हैं।
महापंचायत में यति नरसिंहानंद ने कहा कि 2029 में इस देश का प्रधानमंत्री मुसलमान होगा। उसके बाद हिंदुओं का कत्लेआम होगा और हिंदुओं को बचाने के लिए कोई नहीं होगा। अपने भाषण के दौरान यति नरसिंहानंद ने कश्मीर फाइल मूवी का भी जिक्र किया और कहा कि जैसे कश्मीरी अपनी जमीन जायदाद बहन बेटियों को छोड़कर भागे थे, आने वाले वक्त में ऐसा नजारा देश के अन्य जगहों पर भी होगा।
धर्म संसाद में वह लगातार मौजूद लोगों को भड़काते हुए नजर आए। कहा कि 2029 नहीं तो 2034 नहीं तो 2039 तक इस देश का प्रधानमंत्री मुस्लिम जरूर होगा। यति नरसिंहानंद ने राम मंदिर का जिक्र भी किया और कहा कि राम जन्मभूमि को कोर्ट की लड़ाई के बाद हमने जीत लिया है और वहां मंदिर भी बन रहा है, लेकिन इस देश के हर मुसलमान ने कसम खाई है कि जब देश का निजाम का बनेगा तब सबसे पहला काम राम मंदिर को नुकसान पहुंचाने का करेंगे। अपने तर्कों का हवाला देते हुए यति नरसिंहानद ने कहा कि अपनी बहन बेटियों की रक्षा करने के लिए अपने पास हथियार रखें और असली मर्द वही होता है जो अपने हाथ मे हथियार रखता है और उनसे प्यार करता है।
दिल्ली पुलिस ने कहा कि दिल्ली की घटना के वीडियो क्लिप में किसी विशेष समुदाय के खिलाफ कोई बयान नहीं है। इसलिए, जांच के बाद और कथित वीडियो क्लिप के मूल्यांकन के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि कथित भाषण में किसी विशेष समुदाय के खिलाफ हेट स्पीच का खुलासा नहीं किया गया। इसलिए सभी शिकायतों को बंद कर दिया गया है। पुलिस ने हलफनामे में कहा है कि भाषणों में ऐसे शब्दों का कोई उपयोग नहीं है, जिसका अर्थ या व्याख्या की जाए कि ये पूरे मुस्लिम समुदाय के नरसंहार के लिए खुला आह्वान है।
दिल्ली पुलिस ने याचिकाकर्ताओं पर भी सवाल उठाया और कहा कि वो साफ हाथों से नहीं आए हैं। हैरानी की बात है कि याचिकाकर्ताओं ने पुलिस में शिकायत नहीं दी। वो सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे जो पहले ही केसों के बोझ में हैं। इससे पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में होने वाली धर्म संसद पर रोक लगाने के लिए याचिकाकर्ता को स्थानीय कलेक्टर से संपर्क करने की छूट दी है। 22 अप्रैल को होगी सुनवाई। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार दोहराया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता की मांग है कि इसे तब तक दबाया नहीं जा सकता जब तक कि स्वतंत्रता की अनुमति देने वाली परिस्थितियां दबाव में न हों और सामुदायिक हित खतरे में न हों।
दिल्ली पुलिस ने हलफनामे में कहा कि इस मामले में जनहित को कोई खतरा नहीं है. पुलिस पर लगाए आरोप निराधार और काल्पनिक हैं। हमें दूसरों के विचारों के प्रति सहिष्णुता का अभ्यास करना चाहिए। असहिष्णुता लोकतंत्र के लिए उतनी ही खतरनाक है जितनी खुद व्यक्ति के लिए। याचिकाकर्ता द्वारा गलत और बेतुका निष्कर्ष निकालने की कोशिश की गई है।
याचिकाकर्ताओं द्वारा पुलिस अधिकारियों के खिलाफ लगाए गए आरोप कि पुलिस अधिकारियों ने सांप्रदायिक घृणा के अपराधियों के साथ हाथ मिलाया है, निराधार, काल्पनिक हैं और इसका कोई आधार नहीं है। मामला वीडियो टेप साक्ष्य पर आधारित है। जांच एजेंसियों की ओर से सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने या किसी भी तरह से जांच में बाधा डालने की शायद ही कोई गुंजाइश हो।
वहीं उत्तराखंड सरकार की ओर से बताया गया कि इस मामले में चार FIR दर्ज की गई हैं। जिनमें से तीन चार्जशीट दाखिल की गई हैं। हम मामले में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करेंगे। याचिकाकर्ता की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि हिमाचल में रविवार को धर्म संसद होनी है। इस पर भी रोक लगाई जानी चाहिए, लेकिन जस्टिस ए एम खानविलकर ने कहा कि इससे पहले हिमाचल सरकार की बात सुननी होगी। याचिकाकर्ता स्थानीय कलेक्टर के पास जा सकते हैं।
दरअसल, पत्रकार कुरबान अली और पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज जस्टिस अंजना प्रकाश द्वारा दायर रिट याचिका में भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने 12 जनवरी को केंद्र, दिल्ली पुलिस और उतराखंड सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
इसके बाद उत्तराखंड पुलिस ने यति नरसिंहानंद और जितेंद्र नारायण त्यागी (पूर्व में वज़ीम रिज़वी) को धर्म संसद में हेट स्पीच के सिलसिले में गिरफ्तार किया था। हरिद्वार में हुई धर्म संसद के मामले में अब हिंदू सेना भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है और उसने धर्म संसद में हेट स्पीच के लिए कार्यवाही का विरोध किया है। साथ ही कहा कि अगर धर्म संसद मामले में कार्यवाही की जाती है तो मुस्लिम नेताओं को भी हेट स्पीच के लिए गिरफ्तार किया जाए।
इसके अलावा अर्जी में हिंदू सेना को भी पक्षकार बनाने की मांग की गई है। हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से दाखिल इस अर्जी में कहा गया है कि राज्य सरकारों को असदुद्दीन ओवैसी, तौकीर रजा, साजिद रशीदी, अमानतुल्ला खान, वारिस पठान के खिलाफ हेट स्पीच देने के लिए FIR दर्ज करने का निर्देश दिया जाए। अर्जी में कहा गया है, याचिकाकर्ता पत्रकार क़ुर्बान अली मुस्लिम समुदाय से संबंधित हैं। उनको हिंदू धर्म संसद से संबंधित मामलों या गतिविधियों के खिलाफ आपत्ति नहीं उठानी चाहिए। हिंदुओं के आध्यात्मिक नेताओं को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है।
अर्जी में यह भी कहा गया है कि हिंदू आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा धर्म संसद के आयोजन को किसी अन्य धर्म या आस्था के विरुद्ध नहीं माना जा सकता और न ही इसका विरोध किया जाना चाहिए। धार्मिक नेताओं के बयान गैर-हिंदू समुदाय के सदस्यों द्वारा किए गए हिंदू संस्कृति और सभ्यता पर हमलों के जवाब थे और इस तरह के जवाब “हेट स्पीच” के दायरे में नहीं आएंगे।
एक अन्य संगठन हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है। धर्म संसद के भाषणों के खिलाफ जनहित याचिका का विरोध किया है। याचिका में कहा गया है कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट मुसलमानों के खिलाफ हेट स्पीच की जांच करने के लिए सहमत हुआ है तो उसे हिंदुओं के खिलाफ हेट स्पीच की भी जांच करनी चाहिए। याचिका में मुस्लिम नेताओं द्वारा हिंदुओं के खिलाफ कथित हेट स्पीच के 25 उदाहरणों का हवाला दिया गया है।
हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने भी धर्म संसद के भाषणों पर SC में चल रहे हेट स्पीच मामले में पक्षकार बनने की मांग करते हुए याचिका दायर की है। वहीं पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज और पत्रकार ने हरिद्वार में 17-19 दिसंबर को धर्म संसद में हेट स्पीच के खिलाफ याचिका दाखिल की है।
याचिका में कहा गया है कि ये केवल हेट स्पीच नहीं बल्कि पूरे समुदाय की हत्या के लिए एक खुला आह्वान के समान था। हेट स्पीच ने लाखों मुस्लिम नागरिकों के जीवन को खतरे में डाल दिया। करीब 3 हफ्ते बीत जाने के बावजूद पुलिस अधिकारियों द्वारा कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है। पुलिस की निष्क्रियता न केवल हेट स्पीच देने की अनुमति देती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि पुलिस अधिकारी वास्तव में सांप्रदायिक हेट स्पीच के अपराधियों के साथ हाथ मिला रहे हैं। याचिका में दिल्ली में हुए हिंदू युवा वाहिनी के कार्यक्रम की भी जांच की मांग की गई है। याचिका में केंद्रीय गृहमंत्रालय, दिल्ली पुलिस कमिश्नर और उतराखंड के DGP को पक्षकार बनाया गया है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।