दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली कविता-ब्रिक्रम संवत नै ताल
बिक्रम संवत – नै साल
ब्रह्मा जी ना- श्रृष्टि रच , दगड़म बड़ै विधान.
आर्यव्रत का श्रृषियौंन, लिखि ग्रंथ-बढै मान..
सप्त श्रृषियौं न- रचि बेद, ज्ञान भंडार भ्वार.
राजाओं न- राज चलै, धरम- बड़ै आधार..
श्रृष्ठी-युगाब्ध-युधिष्ठिर, तब शक संवत चाल.
प्रतापी – राजा नौ पर, बिक्रम संवत- ब्वाल..
सन् चलै अंग्रेजौं ना, ह्वे- द्वि हजार इक्कीस.
संवत बड़ीं पुरणौ बटि, रै – सबकू आसीस..
सत्तावन वर्ष-बणु बिक्रम, ईसवी त-नै चाल.
अंग्रेजौं न-तिकड़म करि, ईसवि करि नै साल..
सुकल पक्ष की- प्रतिपदा , चैत्रा की- नवरात्र.
नव संवत्सर- नयूं साल , सबकू मंगल पात्र..
अहा ! भली – हेमंत ऋतु, श्रृष्ठि- रंगमत ह्वाय.
चुचांण लगि कप्फू-हिलांस, भौंरौं ना-रस प्याय..
‘दीन’ ! श्रृषि-मुन्यु संतान, माना ऊंकी बांणि.
बिक्रम संवत बटि हूंद, हमरु नै साल-जांणि..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बिक्रम संवत हिंदू नववर्ष पर मेरी रचना