Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

September 12, 2025

दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली कविता-ब्रिक्रम संवत नै ताल

दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली कविता-ब्रिक्रम संवत नै ताल

बिक्रम संवत – नै साल

ब्रह्मा जी ना- श्रृष्टि रच , दगड़म बड़ै विधान.
आर्यव्रत का श्रृषियौंन, लिखि ग्रंथ-बढै मान..

सप्त श्रृषियौं न- रचि बेद, ज्ञान भंडार भ्वार.
राजाओं न- राज चलै, धरम- बड़ै आधार..

श्रृष्ठी-युगाब्ध-युधिष्ठिर, तब शक संवत चाल.
प्रतापी – राजा नौ पर, बिक्रम संवत- ब्वाल..

सन् चलै अंग्रेजौं ना, ह्वे- द्वि हजार इक्कीस.
संवत बड़ीं पुरणौ बटि, रै – सबकू आसीस..

सत्तावन वर्ष-बणु बिक्रम, ईसवी त-नै चाल.
अंग्रेजौं न-तिकड़म करि, ईसवि करि नै साल..

सुकल पक्ष की- प्रतिपदा , चैत्रा की- नवरात्र.
नव संवत्सर- नयूं साल , सबकू मंगल पात्र..

अहा ! भली – हेमंत ऋतु, श्रृष्ठि- रंगमत ह्वाय.
चुचांण लगि कप्फू-हिलांस, भौंरौं ना-रस प्याय..

‘दीन’ ! श्रृषि-मुन्यु संतान, माना ऊंकी बांणि.
बिक्रम संवत बटि हूंद, हमरु नै साल-जांणि..

कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।

Bhanu Bangwal

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

1 thought on “दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली कविता-ब्रिक्रम संवत नै ताल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *