ज्ञानवापी परिसर स्थित मां श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन की याचिका पर हिंदुओं के पक्ष में फैसला, होगी सुनवाई
गौरतलब है कि संसद में सन 1991 में ‘प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट’ पारित हुआ था। इसमें निर्धारित किया गया कि सन 1947 में जो इबादतगाहें जिस तरह थीं उनको उसी हालत पर कायम रखा जाएगा। साल 2019 में बाबरी मस्जिद मुकदमे के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अब तमाम इबादतगाहें इस कानून के मातहत होंगी और यह कानून दस्तूर हिंद की बुनियाद के मुताबिक है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पिछले साल दायर की गई थी याचिका
पिछले वर्ष सिविल जज (सीनियर डिविजन) की अदालत में शृंगार गौरी के दर्शन-पूजन व ज्ञानवापी को सौंपने संबंधी मांग को लेकर वादी राखी सिंह सहित पांच महिलाओं ने गुहार लगाई थी। प्रतिवादी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने प्रार्थनापत्र देकर वाद की पोषणीयता पर सवाल उठाया। मुस्लिम पक्ष ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता आदेश 07 नियम 11 के तहत इस मामले पर सुनवाई ही नहीं हो सकती है। मुस्लिम पक्ष की आपत्ति को खारिज करते हुए अदालत ने सुनवाई की और ज्ञानवापी परिसर का सर्वे कर रिपोर्ट तलब कर ली। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जिला जज ने शुरू की थी सुनवाई
इसके बाद अंजुमन इंतजामिया मसाजिद ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मुस्लिम पक्ष की विशेष अनुमति याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जिला जज की अदालत में सुनवाई शुरू हुई। 26 मई से शुरू सुनवाई में चार तिथि पर अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से सिविल प्रक्रिया संहिता आदेश 07 नियम 11 (मेरिट) के तहत केस को खारिज करने के लिए बहस की गई। इसके बाद हिन्दू पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन व अन्य ने बहस की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कब से चल रहा है मामला
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर पहली बार मुकदमा 1991 में वाराणसी की अदालत में दाखिल किया गया था। याचिका में ज्ञानवापी में पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेशर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय इस मामले के याचिकाकर्ता थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
1991 में ही केंद्र सरकार ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट बनाया था। इस कानून के मुताबिक, आजादी के बाद इतिहासिक और पौराणिक स्थलों को उनकी यथास्थिति में बरकरार रखने का विधान है। मस्जिद कमेटी ने इसी कानून का हवाला देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय की याचिका को चुनौती दी थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हाईकोर्ट ने 1993 में विवादित जगह को लेकर स्टे लगा दिया था और यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद स्टे के आदेश की वैधता को लेकर 2019 को वाराणसी कोर्ट में फिर सुनवाई हुई। 18 अगस्त 2021 को राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता शाहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक की ने ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी की पूजा-दर्शन की मांग करते हुए अदालत में याचिका दायर की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग मिलने का दावा
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले सीजेएम की अदालत से जारी आदेश पर सर्वे भी शुरू हो गया था। कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा ने 6-7 मई को ज्ञानवापी परिसर का सर्वे किया था। उनकी रिपोर्ट में परिसर की दीवार पर देवी-देवताओं की कलाकृति, कमल की कुछ कलाकृतियां और शेषनाग जैसी आकृति मिलने का जिक्र किया गया था। रिपोर्ट में तहखाना खोलकर देखे जाने के बारे में नहीं बताया गया था। कोर्ट कमिश्नर विशाल सिंह ने 14 से 16 मई के बीच ज्ञानवापी परिसर का सर्वे किया था। विशाल सिंह की रिपोर्ट में परिसर के भीतर शिवलिंग मिलने का जिक्र किया गया था। इसके अलावा रिपोर्ट में सनातन संस्कृति से जुड़े निशान मिलने की बात कही गई थी। रिपोर्ट में बताया गया था कि परिसर के तहखाने में सनातन धर्म के निशान- कमल, डमरू, त्रिशूल आदि के चिन्ह मिले। सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर ने कथित शिवलिंग वाली जगह को सील करने का आदेश दिया था। वहीं, जिस वस्तु को शिवलिंग कहकर प्रचारित किया गया था, उसे मुस्लिम पक्ष के लोगों ने फव्वारा करार दिया था।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।