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December 19, 2024

आदि काल के बदरीनाथ पैदल मार्ग पर दो नदियों के संगम में उपेक्षित श्मशान घाट, सांसद बलूनी का गांव भी है निकट

राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी एवं उत्तराखंड के कैबिनट मंत्री सतपाल महाराज के क्षेत्र में स्थित एक ऐसा श्मशान घाट है, जो कि उपेक्षित पड़ा हुआ है।

राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी एवं उत्तराखंड के कैबिनट मंत्री सतपाल महाराज के क्षेत्र में स्थित एक ऐसा श्मशान घाट है, जो कि उपेक्षित पड़ा हुआ है। नयार और अलकनंदा नदी के संगम पर स्थित इस श्मशानघाट में आसपास के दक्षिण पूर्वी गढ़वाल के करीब सौ से अधिक गांव के लोग दाह संस्कार के लिए आते हैं, लेकिन यहां किसी के बैठने की व्यवस्था के लिए एक शैड तक नहीं है। ऐसे में अब एक सामाजिक कार्यकर्ता ने यहां घाट निर्माण की मांग उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से की है।
कालाबड़, कालिदास मार्ग, कोटद्वार निवासी सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य विनोद चंद्र कुकरेती के मुताबिक ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला से बदरीनाथ धाम के लिए आदिकाल में पैदल मार्ग की व्यवस्था थी। उस दौरान हर छह से आठ किलमीटर तक एक चट्टी होती थी। चट्टी यानी कि यात्री विश्रामस्थल। यहां चूल्हा बने रहते थे। बर्तन रखे रहते थे। माना जाता था कि पैदल यात्री एक दिन में आठ कोस चलेगा। जब विश्राम करेगा तो इन चट्टियों में रुकेगा। वहीं भोजन बनाएगा।
इस मार्ग पर लक्ष्मण झूला के बाद महादेव चट्टी है। इसके बाद व्यास चट्टी पढ़ती है। व्यास चट्टी पर छोटा बाजार भी विकसित है। यहां अलकनंदा और नयार नदी का संगम है। इसी संगम पर दाह संस्कार भी किया जाता है। यहां आसपास के करीब सौ से अधिक गांव के लोग आते हैं। उन्होंने बताया कि पहले यहां मोटर मार्ग नहीं था तो लोग ऋषिकेश जाते थे। अब मोटरमार्ग होने से इस घाट पर ही अंतिम संस्कार के लिए लोग आने लगे हैं। व्यास चट्टी बाजार में भोजन आदि की व्यवस्था भी हो जाती है। ऐसे में लोग ऋषिकेश की भीड़ से बचना चाहते हैं।
उन्होंने बताया कि इस घाट से करीब दस किलोमीटर की दूरी पर ही राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का पैतृक गांव नकोट भी है। उनके गांव के लोगों का भी यही घाट है। इसी तरह कैबीनेट मंत्री सतपाल महाराज का ये राजनीतिक क्षेत्र है। इसके बावजूद घाट उपेक्षित पड़ा है। इस घाट की तरफ किसी का ध्यान हीं गया। घाट में लकड़ी तक का टाल नहीं है। ग्रामीण साथ ही लकड़ी लेकर आते हैं।
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को भेजे गए पत्र में उन्होंने कहा कि चारों तरफ मोटर मार्ग तो बन गए, लेकिन घाटों का सुधार नहीं हुआ। यह स्थान भारत सरकार की महत्वाकांक्षी ” नमामि गंगे योजना ” अथवा “पर्यटन योजनाओं ” की दृष्टि से नितान्त अछूता रह गया है। गढ़वाल के संपूर्ण दक्षिण पूर्वी भाग की जनता आज भी अपने स्वर्गवासी प्रियजनों के अंतिम संस्कार हेतु व्यास चट्टी आकर (गंगा जी की गोद में ) अपने को धन्य मानती है।
उन्होंने कहा कि उपेक्षित स्थिति में पड़े इस घाट की स्थिति से मन बहुत दुखी हो जाता है। गर्मी और बरिश से बचने के लिए यहां न तो कोई विधिवत बने शवदाह स्थल हैं और न ही अंतिम संस्कार के लिए साथ आए लोगों के लिए कोई सुरक्षित प्रतीक्षा शेड ही बन पाए हैं। नदी तट पर जहां तहां गंदगी रहती है।
यही नहीं, गंगा की मनोहारी गति से लाभान्वित होने आने वाले पर्यटकों और राफ्टिंग के शौकीन लोगों के लिए कोई अच्छी व्यवस्था भी नहीं बन पाई है। निजी क्षेत्र के कुछ उत्साही युवाओं के लिए भी विशेष आकर्षण नहीं सृजित किए गए हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री से क्षेत्र की जनता की परेशानी पर गौर करते हुए इस समस्या के निदान की मांग की।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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