नहीं रहे कम्युनिष्ट नेता सुनीत चौपड़ा, मेट्रो स्टेशन में गिरने से हुए निधन, जानिए उनके बारे में
सीपीआई (एम) केंद्रीय समिति के पूर्व सदस्य और कला समीक्षक सुनीत चोपड़ा का मंगलवार को गुरुग्राम से दिल्ली जाने वाली मेट्रो ट्रेन में यात्रा के दौरान गुड़गांव के सिकंदरपुर मेट्रो स्टेशन पर गिरने से मौत हो गई। वह 81 वर्ष के थे।चोपड़ा की मृत्यु पर सीपीआई (एम) ने कहा कि सुनीत चोपड़ा 1995 में पार्टी की 15वीं कांग्रेस में केंद्रीय समिति के लिए चुने गए थे और 2015 तक उस पद पर बने रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
चोपड़ा जेएनयू में छात्र आंदोलन में सक्रिय थे और एसएफआई की केंद्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य बने। वह 1972 में पार्टी में शामिल हुए। वह कला के जानकार थे और वे एक प्रसिद्ध कला समीक्षक भी रहे। बताया जा रहा है कि 6 अप्रैल को दिल्ली के बीकानेर हाउस में उनके द्वारा क्यूरेट की गई एक प्रदर्शनी का उद्घाटन होना था। इससे दो दिन पहले, कला समीक्षक और अखिल भारतीय कृषि श्रमिक संघ के सदस्य सुनीत चोपड़ा का 4 अप्रैल को 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
लाहौर में जन्मे, चोपड़ा भारतीय कला जगत का एक अभिन्न हिस्सा थे, जिन्होंने द आर्ट ऑफ़ अर्पणा कौर (2001) और फ्लावरिंग कल्चर्स: कंटेम्पररी आर्टिस्ट्स फ्रॉम इंडिया (2013) सहित कई पुस्तकों का सह-लेखन किया। कला समीक्षक और क्यूरेटर प्रयाग शुक्ला ने कहा कि अंत तक, वह सक्रिय रूप से लिख रहे थे और क्यूरेट कर रहे थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सीपीएम नेता अनंत आकाश ने याद किए संस्मरण
सीपीएम की देहरादून ईकाई के सचिव अनन्त आकाश ने बताया किसुनीत चोपड़ा का अंतिम संस्कार आज पार्टी सम्मान के साथ दिल्ली में शाम 4:30 बजे होगा। वे सीपीएम केन्द्रीय कमेटी सदस्य तथा खेतिहर मजदूर यूनियन के अखिल भारतीय संयुक्त सचिव जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहकर मेहनतकश वर्ग के लिए आजीवन समर्पित रहे । 1972 में वे जवाहर विश्वविद्यालय से जुड़े तथा एस एफ आई केन्द्रीय कमेटी सदस्य बने। बाद में वह भारत की जनवादी नौजवान सभा (डीवाईएफआई) केन्द्रीय कमेटी कोषाध्यक्ष तथा संस्थापक सदस्यों में से एक थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उत्तराखंड में भी छात्र आंदोलनों को दी धार
अनंत आकाश के मुताबिक, उन्होंने देहरादून सहित पर्वतीय जिलों में छात्र आन्दोलन एसएफआई के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह भारत कोरियन कल्चर के अध्यक्ष थे। कला, साहित्यिक क्षेत्र के स्तम्भ थे। सुनीत चोपड़ा को हमारी पार्टी के लिये इसलिए याद करना जरूरी हो जाता है कि तब हम व अन्य साथी छात्र राजनीति से जुड़े ही थे। तब गढ़वाल संसदीय क्षेत्र से हेमवतीनंदन बहुगुणा संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार थे। उस समय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ऐनकेन प्रकारेण कांग्रेस के प्रत्याशी को जिताना चाहती थी, जोकि विपक्षी एकता के चलते सम्भव नहीं हो पाय। उस दौरान हरकिशन सिंह सुरजीत के साथ सुनीत चोपड़ा अन्त तक गढ़वाल क्षेत्र चुनाव में डटे रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ईंट भट्टा मजदूरों के अधिकारियों के लिए किया संघर्ष
उन्होंने बताया कि उन्ही दिनों की बात है कि प्रमुख समाजसेवी आर्य समाजी स्वामी अग्निवेश भट्टा मजदूरों की दयनीय हालात को मद्देनजर उनके अधिकारों के लिये इन्हें संगठित करने के लिए देहरादून एवं आसपास के जिलों में दिन रात एक किये हुऐ थे। सुनीत चौपड़ा भी मजदूरों के अधिकारों की लड़ाई में शामिल हो गए। ईंट भट्टा उधोग जो कि पूर्णतः हाथ का काम था। इस कार्य में मजदूरों का परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी भट्टों में ही खप जाया करता था। उन दिनों बिचोलियों इन मजदूरों के घरवालों को कुछ पैसा एडवांस दे देता था। उसके पश्चात इनका बन्धुवा जीवन शुरू हो जाता था, जो पीढियों तक चलता रहता था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ऐसे हुआ बंधुआ प्रथा का अंत
सुनीत चोपड़ा भट्टा मजदूरों के मध्य कार्य करते हुऐ उनका सामाजिक रूप से अध्ययन भी कर रहे थे। भट्टों में जो मजदूर काम किया करते थे उनमें से अधिकांश मजदूर पश्चिम उत्तर प्रदेश के हुआ करते थे। जो वहाँ भी सामाजिक तथा आर्थिक रूप से कमजोर व उपेक्षित थे। देहरादून जो उस जमाने में भी चकाचौंध का शहर था, किन्तु उसके आसपास उतना ही अंधकार था। अभाव व शोषण का राज था। जिन ईटों से बडे़ बड़े आलीशान भवन खडे़ थे, उसके पीछे कई जिन्दगियां अपना सर्वस्व न्यौच्छावर कर रही थी। मजदूर भूखे, प्यासे 18-18घण्टे काम कर रहे थे। दशकों से भट्टों में बन्धुवा बने हुऐ थे। सुनीत चोपड़ा ने भट्टा मजदूर सलाऊद्दीन को श्रमिकों को संगठित करने की जिम्मेदारी सौंपी। तब कई छोटे बडे़ आन्दोलन हुऐ। चौपड़ा के सतत प्रयासों के बाद भट्टों में बन्धुआ प्रथा का अन्त हुआ ।