सोशल मीडिया के संपर्क में आने से नौनिहाल हो रहे पारंपरिक खेलों से दूर
संचार क्रांति के दौर में आज बचपन महज एक अंगुली की टिक टिक में सिमटकर रह गया है। हाध की जिन दस अंगुलियों की मदद से गिल्ली डंडा खेलना था आज वह सब एक अंगूठे का अजब खेल बनकर रह गया है। बच्चों का बचपन छीन उन्हें जल्दी जवान बना रहा यह अंगूठा फेसबुक ट्वीटर, ह्वाटशप, पबजी आदि के माध्यम से अपने नये नये करतब दिखा रहा है।
नये जमाने के नयी बात के साथ ही आज अभिभावक भी छोटे छोटे बच्चों के हाथ में भारी-भरकम स्क्रीन टच मोबाइल सेट थमा दे रहे हैं। इन सेटों से निकलने वाली हानिकारक किरणें इन नौनिहालों के शरीर पर क्या असर कर रही हैं इस बात की अनभिज्ञता से परे।
अभी हाल ही में सौशल मीडिया के माध्यम से एक बहुत छोटी बच्ची का एक वायरल वीडियो देखने में आया। इस वीडियो में वह बच्ची जो अभी ठीक से चलना तक नहीं जानती मोबाइल की इतनी आदी हो चुकी है कि उसके हाथ से मोबाइल छूटते ही उसके शरीर में कंपन्न शुरू हो जाती है और वह बेचैन सी इधर उधर बदहवास दौड़ती, चिल्लाती भागती दिखाई दे रही है।
इस दौरान वह काफी परेशान हो जाती है जब उसके हाथ में मोबाइल थमा दिया तो वह एकदम नार्मल होती दिखाई दे रही थी। लगता है उस बच्ची को एक खिलौना मिल गया जो जब तक चलता है वह बच्ची सामान्य रहती है। दिखाएं जा रहे वीडियो में शेष समय इस बच्ची का स्वभाव चिड़चिड़ा ही रहता प्रतीत होता है।
विशेषज्ञों की मानें तो बच्चों को परिपक्व होने तक इन भौतिक साधन संसाधनों से अधिक से अधिक दूर रखना ही उचित होगा; जो संभव होता नहीं दिखाई दे रहा। इसीलिए जब तक अभिभावकों को बच्चे मे़ं इसके असर की जानकारी होती है शायद तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। आज कोई घर शायद ही ऐसा होगा जो मोबाइल और इंटरनेट जैसी संचार क्रांति से वंचित हो।
हर एक बच्चे को पढ़ना लिखना नहीं आ रहा है लेकिन फोन चलाने में माहिर हो चुका है। अधिक समय मोबाइल में चिपके रहने से उसके आंखों की रौशनी लगातार कम होती जा रही है। बचपन में ही इन बच्चों को मोटे मोटे चश्मे पहनने पड़ रहे हैं। आज बच्चों को इंटरनेट के तमाम तरह के गेम्स तो पूरा पता हैं पर हमारे पारंपरिक खेलों गिल्ली डंडा, संपोलिया, लुका छिप्पी, घोड़ा पछाड़ आदि के बारे कोई जानकारी नहीं।
इस संबंध में चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों में इंटरनेट और मोबाइल संबंधी आदतों का हावी होना उचित नहीं। खासकर नौनिहालों को इससे जितना हो सके दूर ही रखा जाय तो ठीक है वरना यह बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास में बाधक बन सकता है। अभिभावकों की ओर से अपने पाल्यों को मोबाइल से दूर रखते हुए पारंपरिक खेलों की ओर मोड़ना ही उनके भविष्य के लिए ठीक रहेगा।

लेखक का परिचय
ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।