Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

November 7, 2024

बदला इतिहास, जोड़ी नई जानकारी, पक्षियों के पंख पर बैठकर जेल से बाहर आते थे सावरकर, स्कूल का पाठ

सावरकर को लेकर बीजेपी, आरएसएस जहां बढ़चढ़कर दावे करते हैं, वहीं विरोधी भी उनके तर्क की काट को लेकर तैयार रहते हैं। फिलहाल इन संगठनों के हीरो सावरकर के बारे में ऐसी जानकारी आई, जिससे इतिहास पाठ को ही बदल दिया गया। बच्चों की किताब में ऐसी हास्यास्पद बात पढ़ाई जा रही है, जिसे कोई भी पढ़ेगा तो सिर पकड़कर बैठ जाएगा। यहां अंग्रेज चांद पर ठोकर मारकर आ गया, वहीं, हमारे देश में पढ़ाया जा रहा है कि विनायक दामोदर सावरकर पक्षियों के पर पर बैठकर जेल से बाहर निकलते थे। सावरकार को लेकर कर्नाटक के सरकारी स्कूल की किताब में अजीबो-गरीब दावे किए गए हैं, जिससे विवाद पैदा हो गया है। कर्नाटक की बीजेपी सरकार इतिहास के रि-राइटिंग के आरोपों में पहले ही विवादों में है और अब रिविजन कमेटी के दावे से विवाद और गहरा गए हैं। यहां आठवीं, की एक किताब में कथित रूप से दावे किए गए हैं कि सावरकर पक्षियों के पंख पर बैठकर जेल से बाहर आया करते थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

अंग्रेजों से माफी मांगने वाले सावरकर को महान साबित करने के लिए दोक्षिणपंथी विचारकों द्वारा एक के बाद एक नई और झूठी कहानियां गढ़ी जाती रही है। झूठ के बलबूते सावरकर को महान बनाने के चक्कर कई बार हास्यास्पद और मूर्खतापूर्ण बातें भी फैलाई जाती रही है। ऐसा ही मामला भाजपा शासित कर्नाटक से आया है। यहां आठवीं के पाठ्यक्रम में बताया गया है कि सावरकर बुलबुल के पंख पर बैठकर उड़ान भरते थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पाठ्यपुस्तक में ये नया अध्याय केटी गट्टी के एक यात्रा वृत्तांत से लिया गया है। केटी गट्टी 1911 से 1924 के बीच सेल्युलर जेल गए थे, जहां उस वक्त सावरकर बंद थे। ये कर्नाटक की स्कूल टेक्स्टबुक में सावरकर के जेल के अनुभवों पर लिखा हुआ है। इंडिया टुडे के मुताबिक अध्याय का एक हिस्सा बताता है कि अंडमान निकोबार की जेल में कैद सावरकर हर रोज बाहर निकलते थे और इसके लिए वो पक्षियों की मदद लेते थे। रिपोर्ट के मुताबिक अध्याय के एक हिस्से में हैरतअंगेज दावे के साथ लिखा है कि-सावरकर जिस कमरे में कैद थे वहां कोई छोटा-सा छेद तक नहीं था। हालांकि, कहीं से बुलबुल वहां आ जाती थी, जिस पर बैठकर सावरकर उड़कर बाहर चले जाते थे और रोज मातृभूमि को देखने आते थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

रिपोर्ट के मुताबिक ये चैप्टर कन्नड़ भाषा में लिखा गया है और आठवीं के बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। इसका नाम- कलावन्नू गेडावरू है। इसके लेखक केटी गाटी हैं। इससे पहले किताब में ‘ब्लड ग्रुप’ नाम का अध्याय पढ़ाया जा रहा था, जिसे विजयमाला रंगनाथ ने लिखा था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

दी हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक ये अध्याय सावरकर के जुड़े यात्रा विवरण पर है। इसमें लेखक ने अंडमान की सेल्युलर जेल के बारे में बताया है। ब्रिटिश शासन के दौरान सावरकर को इस जेल में रखा गया था। अब चैप्टर का हिस्सा सामने आया है तो आरोप लग रहे हैं कि अध्याय में सावरकर को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा गया है। दी हिंदू ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि पहले इसे लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई गई, लेकिन सावरकर के बुलबुल पर बैठकर जेल से बाहर जाने वाला हिस्सा वायरल होते ही कर्नाटक टेक्स्टबुक सोसायटी के पास शिकायतें आना शुरू हो गईं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

अब भंग हो चुकी कर्नाटक टेक्स्टबुक रिवीजन कमेटी के अध्यक्ष रोहित चक्रतीर्थ ने एक बयान जारी कर स्पष्ट किया कि यह पंक्ति एक भाषण से ली गई है न कि एक शाब्दिक दावा है कि सावरकर ने बुलबुल पर उड़ान भरी थी। उन्होंने कहा कि मुझे आश्चर्य है कि क्या कुछ लोगों की बुद्धि इतनी कम हो गई है कि वे समझ नहीं पा रहे हैं कि भाषण का मतलब क्या है। इससे पहले कांग्रेस के एक नेता ने ट्वीट कर इस दावे की आलोचना की थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस मूर्खतापूर्ण पाठ्यक्रम के लेकर काफी टीचरों ने आपत्ति जताई भी है। टीचर्स कहना है कि यदि लेखक ने सावरकर की दूसरे तरीके से प्रशंसा की होती तो कोई आपत्ति नहीं थी। यहां तो सरासर झूठ और असंभव कहानी तथ्य के रूप में पेश किया जा रहा है। विद्यार्थियों को यह समझाना बहुत कठिन है। अगर छात्र इस बारे में सवाल पूछते हैं और सबूत मांगते हैं, तो हम उन्हें कैसे चुप कराएंगे? आठवीं क्लास के बच्चे समझदार होते हैं। वे किस तरह से स्वीकार करेंगे कि बुलबुल के पंख पर सावरकर समुद्र पार करते थे और भारत आते थे? (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये है कि कर्नाटक के शिक्षा मंत्री को जब ये बात पता चली तो उन्होंने पाठ्यक्रम में सुधार कराने के बजाय कहा कि ठीक लिखा है। शिक्षा मंत्री नागेश ने अंग्रेजी अखबार द हिंदू से बातचीत के दौरान कहा कि सावरकर एक महान स्वतंत्रता सेनानी हैं। लेखक ने उस पाठ में जो वर्णन किया है वह सटीक है। बता दें कि कर्नाटक में सावरकर को बतौर स्वतंत्रता सेनानी स्थापित करने के लिए तमाम तरीके अपनाए जा रहे हैं।

+ posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page