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February 7, 2025

जमकर मनाएं दीपावली और बग्वाल, स्थानीय उत्पादों का रखें ख्यालः रामचंद्र नौटियाल

गढ़वाल में दीपावली को बग्वाल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भैलू खेला जाता है। इस पर्व के साथ ही बाजार में नित नई वस्तुएं आने लगी हैं। पर्व की भी मार्केटिंग हो चुकी है। ऐसे में मेरा मानना है कि दीपावली का पर्व जमकर मनाएं, लेकिन साथ ही स्थानीय उत्पादों का भी ख्याल रखा जाए।

प्रकाश पर्व दीपावली की धूम धनतेरस से शुरू हो गई है। आज छोटी दीपावली है। कल दीपावली और फिर गोवर्धन पूजा। इसके बाद भैया दूज होगा। भारत वर्ष के साथ ही विदेशों में बसे प्रवासी भी दीपावली का पर्व मना रहे हैं। गढ़वाल में दीपावली को बग्वाल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भैलू खेला जाता है। इस पर्व के साथ ही बाजार में नित नई वस्तुएं आने लगी हैं। पर्व की भी मार्केटिंग हो चुकी है। ऐसे में मेरा मानना है कि दीपावली का पर्व जमकर मनाएं, लेकिन साथ ही स्थानीय उत्पादों का भी ख्याल रखा जाए। क्योंकि इससे कई लोगों का रोजगार निर्भर करता है।
कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को छोटी दीपावली मनायी जाती है। कार्तिक अमावस्या बडी दीपावली मनायी जाती है। इस दिन मां लक्ष्मी व गणैश की पूजार्चना की जाती है। आरोग्य सुख समृद्धि की प्राप्ति हेतु हमारे सनातन  धर्मावलम्बी बिघ्न विनायक श्री गणेश व मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं। भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी में दीपावली मनायी जाती है देवासुर संग्राम समुद्र मंथन की कथा भी इससे जुडी है। दीपों के त्यौहार के कारण इसका नाम दीपावली पड़ा। आजकल दीपक को न जलाकर हम विदेशी सामान इत्यादि खरीदते हैं, जोकि उचित नहीं है। हमें प्रत्येक  त्यौहार पर स्वदेशी सामान खरीदना होगा। तभी हमारे वार त्यौहार व दीपावली आदि सार्थक हैं।
इसका कारण ये भी है कि कई देशो की नजर इन त्यौहारों पर हमारे बाजारों पर है। जो हमें  (भारतीयो को) कतई समृद्ध होते हुए नहीं देख सकते हैं। विदेशी सामान का बहिष्कार करने से हमारे भारतीय उत्पादों को बढावा मिलेगा व अर्थव्यवस्था सुधरेगी। हमारे उत्तराखंड  में दीपावली को मनाने का भी अलग प्रकार का अंदाज है। दीपावली को यहां स्थानीय भाषा गढवाली- कुमाऊंनी में बग्वाल कहते हैं। पारम्परिक  तरीके से चीड़ की लकड़ी के छिलके को एकत्र किया जाता है। इसे घुमावदार टहनियों में रखा जाता है। तब इसे जलाया जाता है। जिसे  गढवाली में “बग्वाल्ठा” कहते हैं। तब इसे सिर के ऊपर से घुमाया जाता है। मान्यता है जो अपने सिर के ऊपर से इस बग्वाल्ठे को घुमाते है। उनके बरे कष्ट दूर हो जाते हैं।
उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में इस पावन अवसर पर रासो, तान्दी, झुमैलो आदि नृत्य गीत गाये जाते हैं। गढवाल के पहाडी क्षेत्रों में पुरी- पकोडी इत्यादि बनाये जाते हैं। कहा भी जाता है गढवाली भाषा में “बग्वालि रे भैलो, कति पक्वाडा खैलो, भैलो रे भैलो कति पक्वाडा खैलो”। अर्थात दीपावली (बग्वाल) का त्यौहार है तो कितने पकोड़े खाये ?

लेखक का परिचय
रामचन्द्र नौटियाल राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गड़थ विकासखंड चिन्यालीसौड, उत्तरकाशी में भाषा के अध्यापक हैं। वह गांव जिब्या पट्टी दशगी जिला उत्तरकाशी उत्तराखंड के निवासी हैं। रामचन्द्र नौटियाल जब हाईस्कूल में ही पढ़ते थे, तब से ही लेखन व सृजन कार्य शुरू कर दिया था। जनपद उत्तरकाशी मे कई साहित्यिक मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां दे चुके हैं।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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