जीवन में ये प्रथम अवसर है जब विजय दशमी के सुअवसर पर मेरे मन और मस्तिष्क के बीच एक द्वंद...
युवमंच
लोगों को सिर्फ क्यों दिखती है शहर की चहल पहल, शानों-शौक़त क्यों किसी को नही दिखती वो कूड़ा बिनती लाचार...
मानव मर्यादा चरित्र अपना देखो किस ओर ढ़ल रहा है । मलिनता लिए उर किस ओर बढ़ रहा है तुम...
क्या वो भी.... क्या वो भी मुझे उतना ही याद करती होगी, जितना मैं करता हूं क्या वो भी मुझसे...
मैं थ्वऴु छौं जु बांसा लाठा कु बण्यों छौं चाहे मैं कनु भी छौं पर मैं मजबुत छौं मैं कभी...
एक श्रद्धांजलि भागीरथी के बहाव को, तू सून रहा सुरक सुरक। जानबूझकर मौन होकर, तू देख रहा सुरक सुरक। जन्मभूमि...
अज्ञानान्धकार तिमिर ये कैसा प्रसर रहा है मूढ़ मानव बन रहा है। अवनि भी अब रुठ रही है तरुणी निर्लज्ज...
पैंछु पठ्याळी करा धौं कुठार कु अन्न खवा धौं मातृभुमि छ तुम्हारी भू कानुन लावा धौं माधु कु त्याग समझा...
इंसाफ़ की चाहत में सत्य और इंसाफ पर पड़ जाती है मिट्टी क्योंकि कानून की देवी के आँखों पर बांध...
हम बदल रहे हैं हम कैसे अब बदल रहे हैं मर्यादाएँ तोड़ रहे हैं। भौतिकता में भटक रहे हैं चरित्र...