कोरोना बढ़ा तो डिजिटली होगा चुनाव प्रचार, सवाल-क्या भाजपा को टक्कर दे पाएगी आप और कांग्रेस, ये है दलों की हकीकत
पांचों चुनावी राज्यों में रोड शो, पदयात्रा, साइकल या वाहन रैली पर रोक लगा दी गई है। यह प्रतिबंध 15 जनवरी तक लागू रहेगा। ये भी संभावना है कि यदि कोरोना के केस लगातार बढ़ते गए तो पूरा चुनाव प्रचार डिजिटल हो सकता है।

ये है चुनाव कार्यक्रम
उत्तर प्रदेश में पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को होगा और अंतिम चरण की वोटिंग सात मार्च को होगी। पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में 14 फरवरी को मतदान होगा। वहीं, मणिपुर में दो चरणों में मतदान होगा। यहां 27 फरवरी को पहले दौर और 3 मार्च को अंतिम दौर का मतदान होगा। सभी राज्यों में 10 मार्च को मतगणना होगी।
उत्तराखंड में डिजिटल प्रचार
उत्तराखंड में डिजिडल प्रचार में एक समस्या और खड़ी हो सकती है। कारण ये है कि पर्वतीय क्षेत्रों में नेटवर्किंग की समस्या रहती है। हालांकि डिजिटल के इस जमाने में मैदान से लेकर पहाड़ तक के लोग सोशल मीडिया में सक्रिय रहते हैं। ऐसे में यदि नेटवर्किंग की समस्या से उम्मीदवारों को जूझना पड़ सकता है। साथ ही अपनी बात को हर मतदाताओं तक पहुंचाने के लिए राजनीतिक दलों के आगे कड़ी चुनौती होगी।
भाजपा की स्थिति
डिजिटल चुनाव प्रचार की यदि बात करें तो बीजेपी सबसे आगे नजर आती है। क्योंकि बीजेपी ऐसे कई प्रयोग कर चुकी है। बीजेपी का सोशल मीडिया नेटवर्क भी काफी मजबूत है। यही नहीं, न्यूज पोर्टलों तक बीजेपी की पहुंच ज्यादा है। पार्टी के हर कार्यक्रम और गतिविधियों की समय से सूचना बीजेपी के सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से मीडिया तो मिल ही जाती है। साथ ही कार्यक्रम पूर्ण होने के बाद पूरी विस्तार से रिपोर्ट भी बीजेपी की ओर से जारी की जाती है। इसके अलावा मोहल्ला स्तर पर कार्यकर्ताओं ने व्हाट्सएप ग्रुप बनाए हुए हैं। इसके अधिकांश लोगों को जोड़ा हुआ है। रिटायर्ड कर्मचारी तो उनके लिए एक टूल के समान हैं। जो सुबह गुड मार्निंग के साथ ही आइटी सेल की ओर से जारी संदेशों को फारवर्ड करने में जुट जाते हैं।
आम आदमी पार्टी की स्थिति
उत्तराखंड में डिजिटली प्लेटफार्म में आप आदमी पार्टी की स्थिति भी काफी मजबूत है। या यूं कह लीजिए कि आम आदमी पार्टी ही ऐसी पार्टी है, जो भाजपा की तरह सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भाजपा को टक्कर देती नजर आती है। पार्टी में अधिकांश युवा जुड़े हैं। जो सोशल मीडिया में काफी एक्टिव रहते हैं। वहीं, पार्टी की ओर से मीडिया को कार्यक्रमों की सूचना जारी करने के साथ ही बड़े कार्यक्रमों का लाइव प्रसारण होता है। कार्यक्रम पूरा होने के बाद फोटो और वीडियो के साथ पूरे कार्यक्रम का बाकायदा प्रेस नोट भी जारी किया जाता है।
प्रदेश में आम आदमी पार्टी ने विभिन्न संवाद कार्यक्रम चलाए। जनसंपर्क अभियान चलाए। पांच गारंटी को लेकर कार्यकर्ता लोगों के बीच पहुंचे। इन गारंटी योजनाओं के बहाने उन्होंने लोगों को व्हाट्सएप ग्रुप से जोड़ा। ऐसे में प्रचार के दौरान इस दल के मोहल्ला स्तर (वार्ड स्तर) के कार्यकर्ताओं के पास भी लोगों के मोबाइल नंबर आदि रहेंगे। क्योंकि गारंटी योजनाओं के रजिस्ट्रेशन के नाम पर आम आदमी पार्टी ने भी बड़ी संख्या में लोगों के मोबाइल नंबर एकत्र किए।
कांग्रेस की स्थिति
कांग्रेस का चुनाव प्रचार अभी भी उसी ढर्रे पर है, जैसा कि पांच साल पहले था। पार्टी का उत्तराखंड स्तर पर फेसबुक पेज है। ट्यूटर अकाउंट है। मीडिया को सूचना के लिए व्हाट्सएप ग्रुप भी है। इन माध्यम से सिर्फ कार्यक्रम सूचना भेजी जाती है। जब कार्यक्रम होता है तो उसकी फोटो या वीडियो जारी कर दी जाती है और हो गया इतिश्री। कार्यक्रम पूर्ण होने के बाद कोई प्रेस नोट तक जारी नहीं किया जाता। कभी कभी कुछ एक अपवाद को छोड़कर।
अब पत्रकारों के ग्रुप भी बनाए गए हैं। इस ग्रुप को छोड़कर भी कांग्रेस के कई नेता चले जाते हैं। जो खबरें उन तक पहुंचती हैं, न तो वे उसे ही पढ़ते हैं और न ही अपनी पार्टी की खबरों को शेयर ही करते हैं। कई नेता तो दो से तीन दिन में व्हाट्सएप को चेक करते हैं। फेसबुक और ट्विटर में भी कम ही नेता सक्रिय हैं। इनमें से भी कई तो एक एक सप्ताह तक कोई पोस्ट तक नहीं डालते हैं। ऐसे में सोशल मीडिया के मामले में कांग्रेस को कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। हालांकि कांग्रेस के पास भी सोशल मीडिया में लंबी चौड़ी टीम है, लेकिन वह क्या करती है, ये रहस्य ही बना हुआ है।
डिजिटली प्रचार के खतरे
डिजिटली प्रचार के खतरे भी हैं। क्योंकि व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर जैसे प्लेटफार्म के जरिये फेक न्यूज का भी खतरा बना रहता है। कई बार तो लोग सूचनाओं और खबरों की पुष्टि किए बगैर ही संदेश को फारवर्ड कर देते हैं। जब तक हकीकत का पता चलता है तो समय निकल चुका होता है और संदेश उससे आगे फारवर्ड होता चला जाता है। कई बार तो ऐसे फेक समाचारों को जरिए लोग जानी मानी हस्तियों के निधन तक की सूचनाएं फारवर्ड कर चुके हैं। इस सब पर निगाह रखना पुलिस, निर्वाचन आयोग के लिए चुनौती साबित होगा।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।