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March 10, 2025

देहरादून की बस्तियों में बुलडोजर अभियान, विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों का एमडीडीए में प्रदर्शन

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में रिस्पना नदी किनारे के मकानों पर चलाए जा रहे बुलडोजर अभियान के खिलाफ धरने और प्रदर्शन का सिलसिला जारी है। बस्तीवासियों के उत्पीड़न के खिलाफ, सभी प्रभावितों का पक्ष सुनने और पुनर्वास की व्यवस्था की मांग को लेकर आज शुक्रवार 14 जून को विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण के कार्यालय के समक्ष जोरदार प्रदर्शन किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये है प्रकरण
गौरतलब है कि देहरादून में रिस्पना नदी किनारे रिवर फ्रंट योजना की तैयारी है। इसके तहत अवैध भवन चिह्नित किए गए हैं। ये भवन नगर निगम की जमीन के साथ ही मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण की जमीन पर हैं। देहरादून में रिस्पना नदी के किनारे वर्ष 2016 के बाद 27 मलिन बस्तियों में बने 504 मकानों को नगर निगम, एमडीडीए और मसूरी नगर पालिका ने नोटिस जारी किए थे। इसके बाद नगर निगम ने सोमवार 27 मई से मकानों को तोड़ने की कार्रवाई शुरू की गई। 504 नोटिस में से मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण ने 403, देहरादून नगर निगम ने 89 और मसूरी नगर पालिक ने 14 नोटिस भेजे थे। अब बड़े पैमाने पर एमडीडीए की ओर से कार्रवाई होनी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

नगर निगम की सीमा में बने मकानों में 15 लोगों ने ही अपने साल 2016 से पहले के निवास के साक्ष्य दिए हैं। 74 लोग कोई साक्ष्य नहीं दिखा पाए हैं। उन सभी 74 लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। अधिकांश लोगों ने नोटिस के बाद अपने अतिक्रमण खुद ही हटा लिए थे। जिन्होंने नहीं हटाए थे, उनको अभियान के तहत हटाया जा रहा है। इस अभियान के खिलाफ विभिन्न विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ ही सामाजिक संगठनों की ओर से धरने और प्रदर्शन आयोजित किए जा रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बीजेपी सरकार पर लगाए गरीबों को उजाड़ने के आरोप
आज बस्तीवासियों के उत्पीड़न के खिलाफ, प्रभावितों को साक्ष्य प्रस्तुत करने का मौका देने, प्रभावितों का पुनर्वास करने की मांग को लेकर विभिन्न राजनैतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने प्रभावितों के साथ मिलकर एमडीडीए मुख्यालय पर जोरदार प्रदर्शन किया। इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि भाजपा की जनविरोधी नीतियों के परिणामस्वरूप आज आम जनता परेशान है। जगह जगह गरीब लोगों को भाजपा की नीतियों के कारण उजाड़ा जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वक्ताओं ने कहा कि सरकार सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों की अवहेलना कर रही है। न्यायालय के स्पष्ट दिशानिर्देश हैं कि किसी को हटाने से पहले कानूनी प्रक्रिया अपनाकर पहले प्रभावितों की पुनर्वास की व्यवस्था की जानी चाहिए। गरीबों ‌का उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। प्रदर्शन के दौरान एमडीजीए उपाध्यक्ष की अनुपस्थित में अधिशासी अभियंता सुनील कुमार प्रर्दशनकारियों के मध्य पहुंचे। उन्होंने ज्ञापन लिया। साथ ही उन्होंने आवश्यक कार्यवाही का आश्वासन दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ज्ञापन के बिंदु
–  राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के 13.05.2024 के आदेश (पैराग्राफ 20) के अनुसार नगर आयुक्त देहरादून ने प्राधिकरण के समक्ष बेदखली को कानून के अनुसार कराने के लिए प्रतिबद्धता जताई है। इस मामले में बिना कोई क़ानूनी प्रक्रिया अपनाते हुए लोगों को बेदखल किया जा रहा है। अनधिकृत अधिकारी मनमानी तरीकों से तय कर रहे हैं कि किसको बेदखल करना है। प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता नहीं है और व्यक्तिगत सुनवाई और अपील करने का कोई मौका नहीं दिया जा रहा है।
– इस अभियान के दौरान कुछ लोग जो निश्चित रूप से 2016 से पहले रह रहे थे, उनकी सम्पतियों को भी नुकसान पहुंचवाया गया है।
– बेदखली के लिए क़ानूनी प्रक्रिया है। जो उत्तर प्रदेश पब्लिक प्रेमिसेस (एविक्शन ऑफ़ अनअथॉराइज़्ड ऑक्यूपेशन) अधिनियम में अंकित है। इस कानून को ताक पर रखा गया है।
– इसके अतिरिक्त, प्राधिकरण का आदेश केवल मामले से सम्बन्धित पक्षकारों पर ही लागू होता है। ऐसे लोगों को मनमाने तरीके से उजाड़ा जा रहा है, जो इस मामले में  पक्षकार नहीं हैं। उन्हें अपना पक्ष रखने का प्राधिकरण में कोई मौका ही नहीं दिया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

-बिना क़ानूनी प्रक्रिया को अपनाये किसी की सम्पति को नुक़सान पहुँचाना क़ानूनी अपराध है।  प्रभावित लोगों में से कई परिवार अनुसूचित जाति के हैं। उनको गैर क़ानूनी तरीकों से बेदखल करना SC/ST (Prevention of Atrocities) Act के अंतर्गत भी अपराध है।
-हमारे संविधान के अनुसार आश्रय का अधिकार मौलिक अधिकार है।  उच्चतम न्यायलय के अनेक फैसलों में इस सिद्धांत को दोहराया है। (Olga Tellis & Ors v. Bombay Municipal Corporation, 1986 AIR 180, 1985 SCR Supl. (2) 51 (1985) , Shantistar Builders v. Narayan Khimalal Totame, AIR 1990 SC 630 (1990) , इत्यादि)।  इसलिए बिना पुनर्वास की व्यवस्था कर मज़दूर परिवारों को बेघर करना संविधान के मूल्यों के विरुद्ध है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

– देहरादून की नदियों एवं नालियों में होटल, रिसोर्ट, रेस्टोरेंट और अनेक अन्य निजी संस्थानों के साथ ही सरकारी विभागों की ओर से भी अतिक्रमण हुए हैं।  हरित प्राधिकरण के आदेश में कोई ज़िक्र नहीं है कि कार्यवाही सिर्फ मज़दूर बस्तियों के खिलाफ करनी है। इसके बावजूद किसी भी अन्य अतिक्रमणकारी को नोटिस तक नहीं गया है। इसलिए  यह अभियान न केवल गैर क़ानूनी है, बल्कि भेदभावपूर्ण भी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये की गई है मांग
– इस गैर क़ानूनी ध्वस्तीकरण अभियान पर तुरंत रोक लगायी जाय। कोई भी बेदखली की प्रक्रिया कानून के अनुसार हो।
–  तमाम गरीब व भूमिहीन लोगों की पुनर्वास की ब्यवस्था करने के बाद ही यदि आवश्यक हो तो सम्बन्धित स्थान से विस्थापित किया जाये। देश की आजादी  के बाद  हर देशवासी को आवास, शिक्षा व रोजगार पाने का हक है। जनता द्वारा चुनी हुई सरकार का काम अपने दायित्वों का निर्वहन कर इसे पूरा करने का है।
– जिन परिवारों के घरों को बिना कोई क़ानूनी प्रक्रिया अपनाते हुए तोड़े गए हैं, उनको मुआवज़ा उपलब्ध कराया जाये। साथ ही जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की जाये।
– हाल के वर्षो में ग्राम पंचायत स नगरनिगम क्षेत्र से जुड़े लोंगों के नोटिस निरस्त हों। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

प्रदर्शन में ये रहे शामिल
इस मौके पर चेतना आन्दोलन से शंकर गोपाल, सीपीआईएम से राजेन्द्र पुरोहित, अनन्त आकाश, सीआईटीयू के प्रांतीय सचिव लेखराज, आयूपी से नवनीत गुंसाई, आन्दोलनकारी परिषद से सुरेश कुमार, एसएफआई से नितिन मलैठा, हिमान्शु चौहान ने सभा को सम्बोधित किया। प्रदर्शनकारियों में नरेंद्र कुमार, राजेन्द्र शर्मा, रामसिंह भंडारी, सुनीता, रविंद्र नौडियाल, हरिश कुमार, गुरू प्रसाद, अर्जुन रावत, विकास, राजेन्द्र शाह, रमन, शैलेन्द्र परमार, अमित आदि शामिल थे।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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