बीएस येदियुरप्पा ने सीएम के पद से दिया इस्तीफा, विधानसभा में रो पड़े, आज ही पूरे हुए सरकार के दो साल
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने पिछले कई दिनों से चल रहे राजनीतिक अटकलों को पटाक्षेप कर दिया। पद से हटाए जाने की अटकलों के बीच आज उन्होंने इस्तीफे की घोषणा कर दी और इसके कुछ ही देर बाद उनके इस्तीफे की खबर भी आ गई। इससे पहले सीएम येदियुरप्पा सोमवार को कर्नाटक विधानसभा में रो पड़े और अश्रुपूर्ण भावना के साथ कहा कि आज वो लंच के बाद अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। आज उनकी सरकार को दो साल पूरे हो रहे हैं। इसके कुछ ही देर बाद उन्होंने राजभवन पहुंचकर गवर्नर को इस्तीफा सौंप दिया।
विधानसभा में इस दौरान 78 साल के येदियुरप्पा ने एक इमोशनल स्पीच दी। उन्होंने कहा कि उनके दो सालों के कार्यकाल में लगातार उनकी परीक्षा हुई है। जब अटल बिहारी जी प्रधानमंत्री थे, तो उन्होंने मुझसे केंद्र में मंत्री बनने को रहा था, लेकिन मैंने मना कर दिया कि मैंने कर्नाटक में ही रहूंगा। बीजेपी कर्नाटक में बड़ी हुई है। यहां हमेशा मेरी अग्निपरीक्षा होती रही है। पिछले दो सालों में कोविड परीक्षा ले रहा था।
हफ्ते भर से कर्नाटक में सीएम पद को लेकर सियासी ड्रामा चल रहा था। कुछ वक्त पहले येदियुरप्पा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी, जिसके बाद अटकले उठ रही थीं कि दिल्ली की बीजेपी आलाकमान उन्हें पद से हटाना चाहती है।
कर्नाटक के मजबूत लिंगायत समुदाय से आने वाले बीजेपी नेता येदियुरप्पा को लेकर हफ्ते भर से कहा जा रहा था कि उनकी कुर्सी खतरे में है। वो लगातार अप्रत्यक्ष रूप से अपना कद ऊंचा दिखाने की कोशिश भी कर रहे थे और समर्थन बटोर रहे थे, लेकिन आज अब उनकी तरफ से यह बड़ा बयान आ गया है।
बीएस येदियुरप्पा को लेकर दो तरह की बातें कही जा रही थीं। पहली कि उन्हें इस्तीफे के लिए पार्टी आलाकमान ने मना लिया है। दूसरी कि भले ही येदियुरप्पा इस्तीफे के लिए मान गए हों, लेकिन शायद वो अपने फैसले पर न टिके रहें। क्योंकि इधर येदियुरप्पा ने कुछ अहम बयान दिए हैं। जैसे- वो पार्टी संगठन को मजबूत कर अगले चुनाव में बीजेपी को एकबार फिर जीत दिलाना चाहते हैं। यानी उनकी नजर प्रदेश पार्टी अध्यक्ष पद पर है, जिसे फिलहाल नलिन कटील संभाल रहे हैं। इसके साथ-साथ येदियुरप्पा चाहते हैं कि नए मंत्रिमंडल में उनके बेटे बिजेंद्रा को जगह दी जाए।
लिंगायत समुदाय पर मजबूत पकड़
येदियुरप्पा की लिंगायत समुदाय पर मजबूत पकड़ है। ऐसे में उनके इस्तीफे के बाद भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस समुदाय का साधने की होगी। बीते दिन ही विभिन्न लिंगायत मठों के 100 से अधिक संतों ने येदियुरप्पा से मुलाकात कर उन्हें समर्थन की पेशकश की थी। संतों ने भाजपा को चेतावनी दी थी कि अगर उन्हें हटाया गया, तो परिणाम भुगतने होंगे।
कर्नाटक में लिंगायत प्रभाव 100 विधानसभा सीटों पर
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय 17% के आसपास है। राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से तकरीबन 90-100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। राज्य की तकरीबन आधी आबादी पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। ऐसे में भाजपा के लिए येदि को हटाना आसान नहीं होगा। उनको हटाने का मतलब इस समुदाय के वोटों को खोना होगा।
Bhanu Bangwal
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।