पुस्तक समीक्षाः हेम चंद्र सकलानी की पुस्तक- अंतर्मन की अनुभूतियां (समीक्षक- सोमवारी लाल सकलानी)
दो दिन की काट खाने वाली ठंड के बाद जब चटक धूप खिली। यह पहाड़ी धूप है। जिसमें धुंध नहीं होती। चौक में दरी बिछाकर पीठ सेकने लगा। गुनगुनी धूप पीठ से सरक कर तंत्रिका तंत्र में समा गई। बस! इतना आनंददाई आलस्य छा गया कि कहीं जाने का मन नहीं किया। गिरीश बडोनी जी का फोन आया था। हडम ढोल- सागर के उस्ताद उत्तम के घर जाने को कह रहे थे, लेकिन धूप से उठ नहीं पाया। जीवन भी एक पहेली है और शरीर सुविधाओं का गुलाम। दो दिन ठंड के कारण जकड़ा रहा, तो आज धूप का पकड़ा रहा।
जब पीठ खूब गर्म हो गई तो कुछ पुराना साहित्य टटोलने लगा। अलमारी के एक कोने में एक सजीव किताब मिल गई। बाह्य कड़ियां पृष्ठ पर ही बुनकर चिड़िया का घोंसला और बाहर झांकता नन्हा जीव। उत्सुकता बढ़ गई ।आनन-फानन में किताब निकाली। अरे ! यह तो भाई साहब की पुस्तक है ! “अंतर्मन की अनुभूतियां ” (कहानी संग्रह) बस! फिर क्या था, गुनगुनी धूप का आनंद और भी बढ़ गया।
भगवान भास्कर की तरफ पीठ कर हेम चंद्र सकलानी जी की किताब पढ़ने लगा। 13 सितंबर सन 2013 को हिंदी दिवस पर हल्द्वानी में कवि सम्मेलन के अवसर पर हेम चंद्र सकलानी जी द्वारा यह पुस्तक भेंट की गई थी। 07 साल तक इस कहानी संग्रह को पढ़ने का समय नहीं मिला। दरअसल यह पुस्तक कहीं पुस्तकों में छिप गई थी। 07 साल बाद सजीव रूप में बाहर आई। खुशी भी हुई और आश्चर्य भी।
13 सितंबर सन 2013 हल्द्वानी में अनेक लब्ध- प्रतिष्ठित कवियों के साथ मै भी था । डॉ.मंगलेश डबराल, डॉ.अशोक अग्रवाल, गोल्डी , डॉ राम प्रसाद डोभाल, डॉ. मुनि राम सकलानी, केपी धौंडियाल, गढ़वाली, डॉ. प्रभा पंत जैसे नामचीन 20 कवियों का जमवाड़ा था ।
अनेक भाषा शास्त्री और साहित्य प्रेमी भी उस दिन वहां कार्यक्रम में उपस्थित थे। स्वर्गीय रमेश सिंह मटियानी जी की धर्मपत्नी भी मंच पर थी। हां! और ठेठ पहाड़ी अंदाज में माननीय संस्कृति मंत्री श्री दुर्गापाल जी भी। उस कार्यक्रम में बास्कट (सदरी) पहने हम दो ही जीव थे। एक श्री दुर्गा पाल जी और दूसरा मै।
एमबी कॉलेज, हल्द्वानी का सभागार। भाषा विज्ञान, राजभाषा पर चर्चा । विद्वानों के विचार और साहित्य की समरसता। संध्या समय कवि- दरबार सजा। जैसे कल ही की तो बात है ! डॉ. डोभाल और डॉ डबराल जैसे मूर्धन्य विद्वान अब नक्षत्र लोक के निवासी हैं लेकिन उनके साहित्य परछाई सदा साथ रहने वाली है।
भाई हेमचंद्र सकलानी की किताब के बहाने डॉ. रामप्रसाद डोभाल की “धुंधली यादें”, “बसंत के किनारे”, के पी ढौंडियाल साहब का कविता संग्रह -“विरह वेदना, राष्ट्र चेतना” डॉ मुनि राम सकलानी का समग्र साहित् , डॉ मंगलेश का “पहाड़ पर लालटेन” सब मानस पटल पर थपेड़े मारने लग गए। चैतन्य- अचेतन के आगोश में चला गया। स्मृतियों के पट एक-एक कर खुलने लगे। डॉक्टर मंगलेश, एक युग दृष्टा कवि के जाने का दर्द ,पीड़ा पहुंचाने लगा। साथ ही डॉक्टर राम प्रसाद डोभाल और उनका साहित्य भी मस्तिष्क में मंडराने लगा ।
अचानक दिवास्वप्न टूट गया। बैठा था “अंतर्मन की अनुभूतियां (कहानी संग्रह) को पढ़ने, लेकिन चला गया किसी दूसरी दुनिया में । इसीलिए परिवार वाले मुझे सनकी भी कहते होंगे! अंतर्मन की अनुभूतियां”( कहानी संग्रह) श्री हेमचंद्र सकलानी की लघु कहानियों का संग्रह है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी प्रकाशित कहानियां का पुन: मुद्रण है। पुस्तका रूप देने से कहानियां जीवंत हो गई हैं ।
समसामयिक जीवन पर आधारित कहानियां, मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत हैं। कहानी संग्रह का आमुख ही सब कुछ बयां कर देता है। कहानियों में कहानीकार का दर्शन अकाल्पनिक रूप से उभर आता है। गिरते हुए मानवीय मूल्यों की पीड़ा रह रह कर उनके कहानियों में परिलक्षित होती है। प्रकट होती है। स्पष्ट रूप से कहानीकार में अपने परिवेश के अनुरूप, कहानी कला के तत्वों के आधार पर उद्देश्य परक कहानियों को गढ़ा है ।
यह कहानियां वर्तमान परिदृश्य को आईना दिखाती हैं। श्री हेम चंद्र सकलानी की कहानियों में प्रकृति, संस्कृति तथा निवृत्ति का स्वरूप है। यह कहानियां स्वप्निल संसार में न ले जाकर, हकीकत की दुनिया और उसकी प्रसंगिकता से रूबरू कराती हैं।
” लौट आओ गौरया” केवल चिड़िया की चहचहाट, सुंदरता की कहानी नहीं है, बल्कि कहानीकार की मर्मस्पृता का प्रमाण है। समस्त 13 कहानियां, वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप शिक्षाप्रद और दिल को छूने वाली हैं। “मेरी अपनी कहानी”, “आम का पेड़”, माटी के मोल तथा एकाकीपन का एहसास कराती है। आपकी कहानियों में एक गजब का है सौंदर्य का बोध है। अनुपम सौंदर्य है। अद्भुत मनोभाव है। आपकी कहानियां ,भय और आतंक पैदा नहीं करती, बल्कि मानवीय जीवन की असलियत का भावनात्मक रूप से उजागर करती हैं।
जैसे- ” दोनों बेटों और बेटी के शादी क्या हुई, अपने खून के रिश्ते ही खत्म हो गए । कभी आते भी हैं तो खाना पूर्ति के लिए। उनके और बच्चों के चले जाने के बाद जैसे पतझड़ का मौसम उतर आता है घर में” (लौट आओ गौरिया से) या “अपने महानगर की कंपनी में ज्वाइन करने के बाद उसे घर गांव जाने की इच्छा हुई। 20 वर्ष बाद गाड़ी से उतरा था तो कोई पहचान नहीं पाया था उसे । पहचानता भी कैसे? 20 वर्ष का समय बहुत लंबा होता है। गांव के बच्चे, बूढ़े पहली बार गांव की कच्ची सड़क पर खड़ी लंबी गाड़ी को देख रहे थे आश्चर्य से”( ला को मात से) या “वर्मा जी के मोहल्ले में किसी हंसते -खेलते चेहरे पर तनाव लाना हो तो बस पानी की बात छोड़ दो। अच्छे खासे का मूड खराब हो जाता है “(कहीं सूख गया पानी से)
समय अभाव के कारण विराम देता हूं। चाहता तो था की कहानियों की विस्तृत समीक्षा करूं, लेकिन गृह मंत्रालय से बार-बार पुकार लग रही है। कहीं ऐसा ना हो कि ‘करछी की मार’ पड़ जाए । समय कट गया। श्री हेमचंद्र सकलानी जी और उनके कहानी संग्रह “अंतर्मन की अनुभूतियां” को सलाम।
लेखक का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
सुमन कॉलोनी, चंबा, टिहरी गढ़वाल।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।