भाजपा नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने थामा टीएमसी का दामन, अटल युग को किया याद, जानिए राजनितिक सफर
भारतीय जनता पार्टी के पूर्व नेता वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके यशवंत सिंहा पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले आज टीएमसी का दामन थाम लिया। वह कोलकाता स्थित टीएमसी के दफ्तर पहुंचे और उन्हें टीएमसी में शामिल किया गया। पश्चिम बंगाल चुनाव से ठीक पहले यशवंत सिन्हा ने यह फैसला लिया है।
इस मौके पर डेरेक ओ ब्रायन, सुदीप बंदोपाध्याय और सुब्रत मुखर्जी मौजूद रहे। सिन्हा के बीजेपी में शामिल होने के बाद टीएमसी ने प्रेस कांफ्रेंस कर इसकी जानकारी दी। सुब्रत मुखर्जी ने यशवंत सिन्हा के शामिल होने पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि हमें गर्व है कि यशवंत हमारे साथ आए। अगर ममता बनर्जी पर साजिश के तहत नंदीग्राम में हमला नहीं होता तो वो खुद यहां मौजूद होती।
सुदीप बंधोपाध्याय ने बताया कि यशवंत सिन्हा कोलकाता स्थित पार्टी मुख्यालय में TMC में शामिल होने से पहले ममता बनर्जी से उनके आवास पर मुलाकात करने गए थे। वहीं सिन्हा ने कहा कि देश में इस वक्त संकट में है, संवैधानिक सस्थाओं को कमजोर करने की साजिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि प्रजातंत्र की ताकत प्रजातंत्र की संस्थाएं होती हैं। आज लगभग हर संस्था कमजोर हो गई है, उसमें देश की न्यायपालिका भी शामिल है। हमारे देश के लिए ये सबसे बड़ा खतरा पैदा हो गया है।
लंबे समय तक बीजेपी के नेता रहे यशवंत सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी के समय को याद करते हुए कहा कि अटल जी के समय बीजेपी सर्वसम्मति में विश्वास करती थी। आज की मौजूदा सरकार सिर्फ कुचलने और जीतने में विश्वास करती है। उन्होंने सवाल किया आज बीजेपी के साथ कौन खड़ा है। अकालियों और बीजद तक ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया है।
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा 2014 के बाद से ही मोदी सरकार के आलोचकों में से एक रहे हैं। ऐसे में इस बात की संभावना है कि वह टीएमसी से जुड़ने के बाद पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार करेंगे। वह कई बार वह आर्थिक मामलों को लेकर मोदी सरकार की आलोचना कर चुके हैं। 2014 से 2019 के दौरान उनके बेटे जयंत सिन्हा वित्त राज्यमंत्री थे, लेकिन उस दौरान भी उन्होंने कई बार पार्टी नेतृत्व की आलोचना की थी।
पश्चिम बंगाल में आठ चरणों में है मतदान
294 विधानसभा सीटों वाले पश्चिम बंगाल में 8 चरणों में मतदान कराया जाना है। पहले चरण का मतदान 27 मार्च को होगा। इसके बाद एक अप्रैल को दूसरे राउंड की वोटिंग होनी है। छह अप्रैल को तीसरे राउंड की वोटिंग होगी। चौथे चरण की वोटिंग 10 अप्रैल को होनी है। 17 अप्रैल को पांचवें चरण की वोटिंग होगी। इसके बाद 22 अप्रैल को पश्चिम बंगाल में छठे राउंड की वोटिंग होगी। सातवें राउंड का मतदान 26 अप्रैल को कराया जाएगा और फिर दो मई को वोटों की गिनती होगी।
यशवंत सिन्हा का जीवन परिचय
यशवंत सिन्हा का जन्म 6 नवंबर 1937 को पटना में हुआ। वह एक भारतीय राजनीतिज्ञ और अब तक भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता थे। वे भारत के पूर्व वित्त मंत्री रहने के साथ-साथ अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री भी रह चुके हैं। बिहार के पटना में जन्मे और शिक्षित हुए सिन्हा ने 1958 में राजनीति शास्त्र में अपनी मास्टर्स (स्नातकोत्तर) डिग्री प्राप्त की। इसके उपरांत उन्होंने पटना विश्वविद्यालय में 1960 तक इसी विषय की शिक्षा दी। उन्होंने यह कहते हुए भाजपा के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया कि वे 2009 के आम चुनावों में हार के पश्चात पार्टी द्वारा की गई कार्रवाई से असंतुष्ट थे।
भारतीय प्रशासनीक सेवा में भी रहे शामिल
यशवंत सिन्हा 1960 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए और अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्त्वपूर्ण पदों पर असीन रहते हुए सेवा में 24 से अधिक वर्ष बिताए। 4 वर्षों तक उन्होंने सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट और जिला मजिस्ट्रेट के रूप में सेवा की। बिहार सरकार के वित्त मंत्रालय में 2 वर्षों तक अवर सचिव तथा उप सचिव रहने के बाद उन्होंने भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में उप सचिव के रूप में कार्य किया।
दूतावास में रहे सचिव
1971 से 1973 के बीच उन्होंने बॉन, जर्मनी के भारतीय दूतावास में प्रथम सचिव (वाणिज्यिक) के रूप में कार्य किया था। इसके पश्चात उन्होंने 1973 से 1974 के बीच फ्रैंकफर्ट में भारत के कौंसुल जनरल के रूप में काम किया। इस क्षेत्र में लगभग सात साल काम करने के बाद उन्होंने विदेशी व्यापार और यूरोपीय आर्थिक समुदाय के साथ भारत के संबंधों के क्षेत्र में अनुभव प्राप्त किया।
तत्पश्चात उन्होंने बिहार सरकार के औद्योगिक आधारभूत सुविधाओं के विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर) तथा भारत सरकार के उद्योग मंत्रालय में काम किया। जहां वे विदेशी औद्योगिक सहयोग, प्रौद्योगिकी के आयात, बौद्धिक संपदा अधिकारों और औद्योगिक स्वीकृति के मामलों के लिए जिम्मेदार थे। 1980 से 1984 के बीच भारत सरकार के भूतल परिवहन मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में सड़क परिवहन, बंदरगाह और जहाजरानी (शिपिंग) उनके प्रमुख दायित्वों में शामिल थे।
राजनीतिक जीवन
यशवंत सिन्हा ने 1984 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया और जनता पार्टी के सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीति से जुड़ गए। 1986 में उनको पार्टी का अखिल भारतीय महासचिव नियुक्त किया गया और 1988 में उन्हें राज्य सभा (भारतीय सांसद का ऊपरी सदन) का सदस्य चुना गया।
जनता दल
1989 में जनता दल का गठन के बाद उनको पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया। उन्होंने चन्द्र शेखर के मंत्रिमंडल में नवंबर 1990 से जून 1991 तक वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया।
भाजपा
जून 1996 में वे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने। मार्च 1998 में उनको वित्त मंत्री नियुक्त किया गया। उस दिन से लेकर 22 मई 2004 तक संसदीय चुनावों के बाद नई सरकार के गठन तक वे विदेश मंत्री रहे। उन्होंने भारतीय संसद के निचले सदन लोक सभा में बिहार (अब झारखंड) के हजारीबाग निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि, 2004 के चुनाव में हजारीबाग सीट से यशवंत सिन्हा की हार को एक विस्मयकारी घटना माना जाता है। उन्होंने 2005 में फिर से संसद में प्रवेश किया। 13 जून 2009 को उन्होंने भाजपा के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
वित्त मंत्री
यशवंत सिन्हा 1 जुलाई 2002 तक वित्त मंत्री बने रहे, तत्पश्चात विदेश मंत्री जसवंत सिंह के साथ उनके पद की अदला-बदली कर दी गयी। अपने कार्यकाल के दौरान सिन्हा को अपनी सरकार की कुछ प्रमुख नीतिगत पहलों को वापस लेने के लिए बाध्य होना पड़ा था। जिसके लिए उनकी काफी आलोचना भी की गयी।
आर्थिक सुधारों के प्रयास का श्रेय
फिर भी, सिन्हा को व्यापक रूप से कई प्रमुख सुधारों को आगे बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है। जिनके फलस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था दृढ़तापूर्वक विकास पथ पर अग्रसर हुई है। इनमें शामिल हैं वास्तविक ब्याज दरों में कमी, ऋण भुगतान पर कर में छूट, दूरसंचार क्षेत्र को स्वतंत्र करना, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के लिए धन मुहैया करवाने में मदद और पेट्रोलियम उद्योग को नियंत्रण मुक्त करना।
ब्रिटिश राज के जमाने की तोड़ी पुरानी परंपरा
सिन्हा ऐसे प्रथम वित्त मंत्री के रूप में भी जाने जाते हैं, जिसने भारतीय बजट को स्थानीय समयानुसार शाम 5 बजे प्रस्तुत करने की 53 वर्ष पुरानी परंपरा को तोड़ा। यह प्रथा ब्रिटिश राज के जमाने से चली आ रही थी। इसमे भारतीय बजट को भारतीय संसद की सुविधा की बजाय ब्रिटिश संसद (11.30 एएम, जीएमटी) की सुविधानुसार पेश करने की कोशिश की जाती थी।